Monday, December 21, 2015

5>Good Advises=By Story ---Part-- (1 )==1 to 14

  5>Myc=Post=7>***Good Advises=By Story-Part (1 )***( 1 to 11 )

1---------------------------कालिदास=आठ पाप इस मटके में है
2---------------------------अकबर ने बीरबल के सामने प्रश्न ( ভগবান এর বিষয়ে )
3----------------------------एक फकीर 50 साल
4----------------------------गुरुस्थान
5----------------------------नकारात्मक परिस्थितियों में सकारात्मक सोच
6----------------------------रतन टाटा का ट्वीट..--//--जर्मनी.
7----------------------------बन्दर की सीख
8----------------------------आच्छा संस्कार
9-----------------------------Belive yourself you can do every thing
10---------------------------संत मलूकदास 
11---------------------------ये कहानी आपके जीने की सोच बदल देगी !
12-------------------------॥শিক্ষণীয় গল্প॥
13>------------600 साल पहले ही तुलसीदास जी ने बता दी थी सूर्य और पृथ्वी के बीच की सटीक दूरी।
14>------------------------सौ ऊंट =समस्या नही......समाधान की सोचें.


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Good Advises By Story-------Part--( 1 )


1>कालिदास=आठ पाप इस मटके में है

एक बार घूमते-घूमते कालिदास बाजार गये वहाँ एक महिला बैठी मिली उसके पास एक मटका था और कुछ प्यालियाँ पड़ी थी 
कालिदास जी ने उस महिला से पूछा :
क्या बेच रही हो ? महिला ने जवाब दिया : महाराज ! मैं पाप बेचती हूँ कालिदास ने आश्चर्यचकित होकर पूछा : पाप और मटके में ? 
महिला बोली :
हाँ महाराज मटके में पाप है कालिदास : कौन-सा पाप है ? महिला : आठ पाप इस मटके में है | मैं चिल्लाकर कहती हूँ की मैं पाप 
बेचती हूँ पाप … और लोग पैसे देकर पाप ले जाते है अब महाकवि कालिदास को और आश्चर्य हुआ : पैसे देकर लोग पाप ले जाते है ?

महिला : हाँ महाराज ! पैसे से खरीदकर लोग पाप ले जाते है

कालिदास : इस मटके में आठ पाप कौन-कौन से है ?

महिला : क्रोध, बुद्धिनाश, यश का नाश, स्त्री एवं बच्चों के साथ अत्याचार और अन्याय, चोरी, असत्य आदि दुराचार, पुण्य का नाश, 
और स्वास्थ्य का नाश … ऐसे आठ प्रकार के पाप इस घड़े में है
कालिदास को कौतुहल हुआ की यह तो बड़ी विचित्र बात है किसी भी शास्त्र में नहीं आया है की मटके में आठ प्रकार के पाप होते है

वे बोले : आखिरकार इसमें क्या है ?

महिला : महाराज ! इसमें शराब है शराब
कालिदास महिला की कुशलता पर प्रसन्न होकर बोले : तुझे धन्यवाद है ! शराब में आठ प्रकार के पाप है यह तू जानती है और "मैं पाप बेचती हूँ" ऐसा कहकर बेचती है फिर भी लोग ले जाते है धिक्कार है ऐसे 
लोगों को

(( वर्तमान मेँ गुटखे तम्बाकू सिगरेट आदि पर चेतावनी लिखी रहती है कि इनसे कैँसर हो सकता है फिर भी लोग दुगने पैसे देकर ब्लैक मेँ खरीदते है ))

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2>अकबर ने बीरबल के सामने  प्रश्न ( ভগবান এর বিষয়ে )

अचानक एक दिन 3 प्रश्न उछाल दिये। प्रश्न यह थे - 1) ' भगवान कहाँ रहता है? 2) वह कैसे मिलता है और 3) वह करता क्या है?'' बीरबल इन प्रश्नों को सुनकर सकपका गये और बोले - ''जहाँपनाह! इन प्रश्नों  के उत्तर मैं कल आपको दूँगा।" जब बीरबल घर पहुँचे तो वह बहुत उदास थे। उनके पुत्र ने जब उनसे पूछा तो उन्होंने बताया - ''बेटा! आज बादशाह ने मुझसे एक साथ तीन प्रश्न: ✅ 'भगवान कहाँ रहता है? ✅ वह कैसे मिलता है? ✅ और वह करता क्या है?' पूछे हैं। मुझे उनके उत्तर सूझ नही रहे हैं और कल दरबार में इनका उत्तर देना है।'' बीरबल के पुत्र ने कहा- ''पिता जी! कल आप मुझे दरबार में अपने साथ ले चलना मैं बादशाह के प्रश्नों के उत्तर दूँगा।'' पुत्र की हठ के कारण बीरबल अगले दिन अपने पुत्र को साथ लेकर दरबार में पहुँचे। बीरबल को देख कर बादशाह अकबर ने कहा - ''बीरबल मेरे प्रश्नों के उत्तर दो। बीरबल ने कहा - ''जहाँपनाह आपके प्रश्नों के उत्तर तो मेरा पुत्र भी दे सकता है।'' अकबर ने बीरबल के पुत्र से पहला प्रश्न पूछा - ''बताओ! ' भगवान कहाँ रहता है?'' बीरबल के पुत्र ने एक गिलास शक्कर मिला हुआ दूध बादशाह से मँगवाया और कहा- जहाँपनाह दूध कैसा है? अकबर ने दूध चखा और कहा कि ये मीठा है। परन्तु बादशाह सलामत या आपको इसमें शक्कर दिखाई दे रही है। बादशाह बोले नही। वह तो घुल गयी। जी हाँ, जहाँपनाह! भगवान भी इसी प्रकार संसार की हर वस्तु में रहता है। जैसे शक्कर दूध में घुल गयी है परन्तु वह दिखाई नही दे रही है। बादशाह ने सन्तुष्ट होकर अब दूसरे प्रश्न का उत्तर पूछा - ''बताओ! भगवान मिलता केैसे है ?'' बालक ने कहा - ''जहाँपनाह थोड़ा दही मँगवाइए। '' बादशाह ने दही मँगवाया तो बीरबल के पुत्र ने कहा - ''जहाँपनाह! क्या आपको इसमं मक्खन दिखाई दे रहा है। बादशाह ने कहा- ''मक्खन तो दही में है पर इसको मथने पर ही दिखाई देगा।'' बालक ने कहा- ''जहाँपनाह! मन्थन करने पर ही भगवान के दर्शन हो सकते हैं।'' बादशाह ने सन्तुष्ट होकर अब अन्तिम प्रश्न का उत्तर पूछा - ''बताओ! भगवान करता क्या है?'' बीरबल के पुत्र ने कहा- ''महाराज! इसके लिए आपको मुझे अपना गुरू स्वीकार करना पड़ेगा।'' अकबर बोले- ''ठीक है, आप गुरू और मैं आप का शिष्य।'' अब बालक ने कहा- ''जहाँपनाह गुरू तो ऊँचे आसन पर बैठता है और शिष्य नीचे। '' अकबर ने बालक के लिए सिंहासन खाली कर दिया और स्वयं नीचे बैठ गये। अब बालक ने सिंहासन पर बैठ कर कहा - ''महाराज! आपके अन्तिम प्रश्न का उत्तर तो यही है।'' अकबर बोले- ''क्या मतलब? मैं कुछ समझा नहीं।'' बालक ने कहा- ''जहाँपनाह! भगवान यही तो करता है। "पल भर में राजा को रंक बना देता है और भिखारी को सम्राट बना देता है।" - 
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3>एक फकीर 50 साल

एक फकीर 50 साल से एक ही जगह बैठकर रोज की 5 नमाज पढता था. एक दिन आकाशवाणी हुई और खुदा की आवाज आई
"हे फकीर.!
तु 50 साल से नमाज पढ रहा है.लेकिन तेरी एक भी नमाज स्वीकार नही हुई"
फकीर के साथ बैठने वाले दुसरे बंदो को भी दु:ख हुआ कि, यह बाबा 50 साल से नमाज पढ रहे है और
इनकी एक भी नमाज कबुल नही हुई.
...
खुदा यह तेरा कैसा न्याय.?
लेकिन फकीर दु:खी होने के बजाय खुशी से नाचने लगा. दुसरे लोगो ने फकीर को देखकर आश्चर्य हुआ.
एक बंदा फकीर से बोला : बाबा,
आपको तो दु:ख होना चाहिए कि आपकी 50 साल कि बंदगी बेकार गई.!
फकीर ने जवाब दिया : " मेरी 50 साल की बंदगी भले ही कबुल ना हुई तो क्या हुआ...!!! लेकिन खुदा को तो पता है ना कि मैँ 50 साल से बंदगी कर रहा हु"
इसिलिए दोस्तो जब आप मेहनत करते हो और फल ना मिले तो निराश मत होना, क्युकिँ बाबा जी को तो पता है ही कि आप मेहनत कर रहे है इसिलिए फल तो जरुर देगें..!!
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4 > गुरुस्थान

एक राजा था. उसे पढने लिखने का बहुत शौक था. एक बार उसने मंत्री-परिषद् के माध्यम से अपने लिए एक शिक्षक की व्यवस्था की. शिक्षक राजा को पढ़ाने के लिए आने लगा. राजा को शिक्षा ग्रहण करते हुए कई महीने बीत गए, मगर राजा को कोई लाभ नहीं हुआ. गुरु तो रोज खूब मेहनत करता थे परन्तु राजा को उस शिक्षा का कोई फ़ायदा नहीं हो रहा था. राजा बड़ा परेशान, गुरु की प्रतिभा और योग्यता पर सवाल उठाना भी गलत था क्योंकि वो एक बहुत ही प्रसिद्द और योग्य गुरु थे. आखिर में एक दिन रानी ने राजा को सलाह दी कि राजन आप इस सवाल का जवाब गुरु जी से ही पूछ कर देखिये. राजा ने एक दिन हिम्मत करके गुरूजी के सामने अपनी जिज्ञासा रखी, ” हे गुरुवर , क्षमा कीजियेगा , मैं कई महीनो से आपसे शिक्षा ग्रहण कर रहा हूँ पर मुझे इसका कोई लाभ नहीं हो रहा है. ऐसा क्यों है ?”  गुरु जी ने बड़े ही शांत स्वर में जवाब दिया, ” राजन इसका कारण बहुत ही सीधा सा है…” ” गुरुवर कृपा कर के आप शीघ्र इस प्रश्न का उत्तर दीजिये “, राजा ने विनती की. गुरूजी ने कहा, “राजन बात बहुत छोटी है परन्तु आप अपने ‘बड़े’ होने के अहंकार के कारण इसे समझ नहीं पा रहे हैं और परेशान और दुखी हैं. माना कि आप एक बहुत बड़े राजा हैं. आप हर दृष्टि से मुझ से पद और प्रतिष्ठा में बड़े हैं परन्तु यहाँ पर आप का और मेरा रिश्ता एक गुरु और शिष्य का है. गुरु होने के नाते मेरा स्थान आपसे उच्च होना चाहिए, परन्तु आप स्वंय ऊँचे सिंहासन पर बैठते हैं और मुझे अपने से नीचे के आसन पर बैठाते हैं. बस यही एक कारण है जिससे आपको न तो कोई शिक्षा प्राप्त हो रही है और न ही कोई ज्ञान मिल रहा है. आपके राजा होने के कारण मैं आप से यह बात नहीं कह पा रहा था. कल से अगर आप मुझे ऊँचे आसन पर बैठाएं और स्वंय नीचे बैठें तो कोई कारण नहीं कि आप शिक्षा प्राप्त न कर पायें.”  राजा की समझ में सारी बात आ गई और उसने तुरंत अपनी गलती को स्वीकारा और गुरुवर से उच्च शिक्षा प्राप्त की . ����इस छोटी सी कहानी का सार यह है कि हम रिश्ते-नाते, पद या धन वैभव किसी में भी कितने ही बड़े क्यों न हों हम अगर अपने गुरु को उसका उचित स्थान नहीं देते तो हमारा भला होना मुश्किल है. और यहाँ स्थान का अर्थ सिर्फ ऊँचा या नीचे बैठने से नहीं है , इसका सही अर्थ है कि हम अपने मन में गुरु को क्या स्थान दे रहे हैं।  क्या हम सही मायने में उनको सम्मान दे रहे हैं या स्वयं के ही श्रेस्ठ होने का घमंड कर रहे हैं ? अगर हम अपने गुरु या शिक्षक के प्रति हेय भावना रखेंगे तो हमें उनकी योग्यताओं एवं अच्छाइयों का कोई लाभ नहीं मिलने वाला और अगर हम उनका आदर करेंगे, उन्हें महत्व देंगे तो उनका आशीर्वाद हमें सहज ही प्राप्त होगा. 
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5>  नकारात्मक परिस्थितियों में सकारात्मक सोच

एक बार की बात है किसी राज्य में एक राजा था जिसकी केवल एक टाँग और एक आँख थी। उस राज्य में सभी लोग खुशहाल थे क्यूंकि राजा बहुत बुद्धिमान और प्रतापी था।
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एक बार राजा के विचार आया कि क्यों खुद की एक तस्वीर बनवायी जाये। फिर क्या था, देश विदेशों से चित्रकारों को बुलवाया गया और एक से एक बड़े चित्रकार राजा के दरबार में आये। राजा ने उन सभी से हाथ जोड़कर आग्रह किया कि वो उसकी एक बहुत सुन्दर तस्वीर बनायें जो राजमहल में लगायी जाएगी।
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सारे चित्रकार सोचने लगे कि राजा तो पहले से ही विकलांग है फिर उसकी तस्वीर को बहुत सुन्दर कैसे बनाया जा सकता है, ये तो संभव ही नहीं है और अगर तस्वीर सुन्दर नहीं बनी तो राजा गुस्सा होकर दंड देगा। यही सोचकर सारे चित्रकारों ने राजा की तस्वीर बनाने से मना कर दिया। तभी पीछे से एक चित्रकार ने अपना हाथ खड़ा किया और बोला कि मैं आपकी बहुत सुन्दर तस्वीर बनाऊँगा जो आपको जरूर पसंद आएगी।
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फिर चित्रकार जल्दी से राजा की आज्ञा लेकर तस्वीर बनाने में जुट गया। काफी देर बाद उसने एक तस्वीर तैयार की जिसे देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और सारे चित्रकारों ने अपने दातों तले उंगली दबा ली।
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उस चित्रकार ने एक ऐसी तस्वीर बनायीं जिसमें राजा एक टाँग को मोड़कर जमीन पे बैठा है और एक आँख बंद करके अपने शिकार पे निशाना लगा रहा है। राजा ये देखकर बहुत प्रसन्न हुआ कि उस चित्रकार ने राजा की कमजोरियों को छिपा कर कितनी चतुराई से एक सुन्दर तस्वीर बनाई है। राजा ने उसे खूब इनाम दिया।
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तो मित्रों, क्यों ना हम भी दूसरों की कमियों को छुपाएँ, उन्हें नजरअंदाज करें और अच्छाइयों पर ध्यान दें। आजकल देखा जाता है कि लोग एक दूसरे की कमियाँ बहुत जल्दी ढूंढ लेते हैं चाहें हममें खुद में कितनी भी बुराइयाँ हों लेकिन हम हमेशा दूसरों की बुराइयों पर ही ध्यान देते हैं कि अमुक आदमी ऐसा है, वो वैसा है। सोचिये अगर हम भी उस चित्रकार की तरह दूसरों की कमियों पर पर्दा डालें उन्हें नजरअंदाज करें तो धीरे धीरे सारी दुनियाँ से बुराइयाँ ही खत्म हो जाएँगी और रह जाएँगी सिर्फ अच्छाइयाँ।
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इस कहानी से ये भी शिक्षा मिलती है कि कैसे हमें नकारात्मक परिस्थितियों में भी सकारात्मक सोचना चाहिए और किस तरह हमारी सकारात्मक सोच हमारी समस्यों को हल करती है।
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6>रतन टाटा का ट्वीट..--//--जर्मनी.

जर्मनी एक उच्च औद्योगिक देश है। इस तरह के एक देश में, कई अपने लोगों आलीशान जिंदगी के बारे में सोचते हैं।
हम हैम्बर्ग पहुंचे, मैं मेरे सहयोगियों के साथ रेस्तरां में चला गया .. हमने वहां  बहुत खाली मेज देखे। हमने एक युवा जोड़े को देखा जो वहां भोजन कर रहा था। उनकी प्लेट में केवल दो व्यंजन और मेज पर juice के दो डिब्बे थे। क्या ऐसा साधारण भोजन रोमांटिक हो सकता है, और लड़की इस कंजूस आदमी को छोड़ जाएगी. मैं सोच रहा था।
एक और टेबल पर कुछ बुढ़ी महिलाएं थी.. उनकी प्लेट में भी भोजन के १-२ बिट्स थे..
हम भूखे थे, तो हमारे सहयोगी ने अधिक भोजन का आदेश दिया.. हमारे द्वारा भोजन कर लेने के बाद मेज पर भोजन का एक तिहाई अभी भी वहाँ झुठा बच गया था..
जब हम रेस्तरां से जाने लगे तोे कुछ बुढ़ी महिलाओं ने हमसे  अंग्रेजी में बात की, हम समझ गए थे कि वे हमें इतना भोजन बर्बाद कर देने के बारे में दुखी थे..
मेरे सहयोगी ने उन बुढ़ी महिलाओं को बताया, "हमने अपने भोजन के लिए भुगतान किया है, यह हम पर छोड़ दो कि हमें कितना खाना है यह तुम्हारा काम नहीं है।"
बुढ़ी महिलाएं गुस्से में थी.. उनमें से एक ने तुरंत अपने हाथ में फोन  लेकर और किसी को फोन किया। थोड़ी देर के बाद, सामाजिक सुरक्षा संगठन से वर्दी में एक आदमी आ गया । विवाद क्या था जानने पर, उसने हम पर 50 यूरो जुर्माना जारी कर दिया.. हम सब चुप रहे।
एक अधिकारी ने कठोर आवाज में हमें बताया, "आप उपभोग कर सकते हैं जो ओर्डर देते हैं, हालांकी पैसा तुम्हारा है लेकिन संसाधनों पर समाज का भी उतना ही हक जितना की आपका..
दुनिया में बहुत से लोग संसाधनों की कमी का सामना कर रहे है..
आप संसाधनों को इस तरह से बर्बाद नहीं कर सकते..
इस समृद्ध देश के लोगों की मानसिकता ने हम सबको शर्म में डाल दिया। हमें वास्तव में इस पर चिंतन करने की जरूरत है।
हमारा देश संसाधनों में बहुत अमीर नहीं है, अपनी शान दिखाने के  लिए हम बड़ी मात्रा में ओर्डर दे देते हैं और हम दूसरों के लिए एक दावत देकर कई लोगों का भोजन बर्बाद कर देते हैं।
यह सही - "पैसा तुम्हारा है लेकिन संसाधन समाज के लिए हैं।"
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7> बन्दर की सीख
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बंदरों का सरदार अपने बच्चे के साथ किसी बड़े से पेड़ की डाली पर बैठा हुआ था . बच्चा बोला , ” मुझे भूख लगी है , क्या आप मुझे खाने के लिए कुछ पत्तियां दे सकते हैं ?”
बन्दर मुस्कुराया , ” मैं दे तो सकता हूँ , पर अच्छा होगा तुम खुद ही अपने लिए पत्तियां तोड़ लो. “ ” लेकिन मुझे अच्छी पत्तियों की पहचान नहीं है .”, बच्चा उदास होते हुए बोला .
“तुम्हारे पास एक विकल्प है , ” बन्दर बोला , ” इस पेड़ को देखो , तुम चाहो तो नीचे की डालियों से पुरानी – कड़ी पत्तियां चुन सकते हो या ऊपर की पतली डालियों पर उगी ताज़ी -नरम पत्तियां तोड़ कर खा सकते हो .”
बच्चा बोला , ” ये ठीक नहीं है , भला ये अच्छी – अच्छी पत्तियां नीचे क्यों नहीं उग सकतीं , ताकि सभी लोग आसानी से उन्हें खा सकें .?”
“यही तो बात है , अगर वे सबके पहुँच में होतीं तो उनकी उपलब्धता कहाँ हो पाती … उनके बढ़ने से पहले ही उन्हें तोड़ कर खा लिया जाता !”, ” बन्दर ने समझाया .
” लेकिन इन पतली डालियों पर चढ़ना खतरनाक हो सकता है , डाल टूट सकती है , मेरा पाँव फिसल सकता है , मैं नीचे गिर कर चोटिल हो सकता हूँ …”, बच्चे ने अपनी चिंता जताई .
बन्दर बोला , “सुनो बेटा , एक बात हमेशा याद रखो , हम अपने दिमाग में खतरे की जो तस्वीर बनाते हैं अक्सर खतरा उससे कहीं कम होता है .“ “पर ऐसा है तो हर एक बन्दर उन डालियों से ताज़ी पत्तियां तोड़कर क्यों नहीं खाता ?” बच्चे ने पुछा .
बन्दर कुछ सोच कर बोला ” क्योंकि , ज्यादातर बंदरों को डर कर जीने की आदत पड़ चुकी होती है , वे सड़ी -गली पत्तियां खाकर उसकी शिकायत करना पसंद करते हैं पर कभी खतरा उठा कर वो पाने की कोशिश नहीं करते जो वो सचमुच पाना चाहते हैं …. पर तुम ऐसा मत करना , ये जंगल तमाम सम्भावनाओं से भरा हुआ है , अपने डर को जीतो और जाओ ऐसी ज़िन्दगी जियो जो तुम सचमुच जीना चाहते हो !”
बच्चा समझ चुका था कि उसे क्या करना है , उसने तुरंत ही अपने डर को पीछे छोड़ा और ताज़ी- नरम पत्तियों से अपनी भूख मिटाई।
Friends, अगर हम अपनी life में झांकें तो हमें भी पता चल जायेगा कि हम कैसी पत्तियां खा रहे हैं …. सड़ी-गली या नयी-ताजा … हमें भी इस बात को समझना होगा की हम अपने दिमाग में खतरे की जो तस्वीर बनाते हैं अक्सर खतरा उससे कहीं कम होता है … आप ही सोचिये खुद खतरे को बहुत बड़ा बना; डर कर बैठे रहना कहाँ की समझदारी है ?
अगर आपके कुछ सपने हैं , कुछ ऐसा है जो आप really करना चाहते हैं तो उसे ज़रूर करिये … आपकी हिम्मत ही आपको अपनी मनचाही ज़िन्दगी दे सकती है , डर कर बैठे रहना नहीं !
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8>आच्छा संस्कार
गाँव के कुएँ पर 3 महिलाएँ पानी भर रही थीं। तभी एक महिला का बेटा वहाँ से गुजरा।
उसकी माँ बोली---" वो देखो, मेरा बेटा, इंग्लिश मीडियम में है। "
थोड़ी देर बाद दूसरी महिला का पुत्र गुजरा। उसकी माँ बोली---" वो देखो मेरा बेटा, सीबीएसई में है। "
तभी तीसरी महिला का पुत्र वहाँ से गुजरा, दुसरे बेटों की तरह ही उसने भी अपनी माँ को देखा
और माँ के पास आया। पानी से भरी गघरी उठाकर उसने अपने कंधे पर रखी, दुसरे हाँथ में भरी हुई बाल्टी सम्हाली और
माँ से बोला---" चल माँ, घर चल। " उसकी माँ बोली---" ये सरकारी स्कूल में पढता है। "
उस माँ के चेहरे का आनंद देख बाकी दूसरी दो महिलाओं की नजरें झुक गईं।
उपरोक्त कथा का तात्पर्य सिर्फ यही है कि, लाखों रुपए खर्च करके भी संस्कार नहीं खरीदे जा सकते...!!
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9>Belive yourself you can do every thing
 👇Nice Story👇

अमेरिका की बात हैं. एक युवक को व्यापार में बहुत नुकसान उठाना पड़ा.
उसपर बहुत कर्ज चढ़ गया, तमाम जमीन जायदाद गिरवी रखना पड़ी . दोस्तों ने भी मुंह फेर लिया,
जाहिर हैं वह बहुत हताश था. कही से कोई राह नहीं सूझ रही थी.
आशा की कोई किरण दिखाई न देती थी.
एक दिन वह एक park में बैठा अपनी परिस्थितियो पर चिंता कर रहा था.
तभी एक बुजुर्ग वहां पहुंचे. कपड़ो से और चेहरे से वे काफी अमीर लग रहे थे.
बुजुर्ग ने चिंता का कारण पूछा तो उसने अपनी सारी कहानी बता दी.
बुजुर्ग बोले -” चिंता मत करो. मेरा नाम John D. Rockefeller है.
मैं तुम्हे नहीं जानता,पर तुम मुझे सच्चे और ईमानदार लग रहे हो. इसलिए मैं तुम्हे दस लाख डॉलर का कर्ज देने को तैयार हूँ.”
फिर जेब से checkbook निकाल कर उन्होंने रकम दर्ज की और उस व्यक्ति को देते हुए बोले, “नौजवान, आज से ठीक एक साल बाद हम ठीक इसी जगह मिलेंगे. तब तुम मेरा कर्ज चुका देना.”
इतना कहकर वो चले गए.
युवक shocked था. Rockefeller
तब america के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक थे.
युवक को तो भरोसा ही नहीं हो रहा था की उसकी लगभग सारी मुश्किल हल हो गयी.
उसके पैरो को पंख लग गये.
घर पहुंचकर वह अपने कर्जो का हिसाब लगाने लगा.
बीसवी सदी की शुरुआत में 10 लाख डॉलर बहुत बड़ी धनराशि होती थी और आज भी है.
अचानक उसके मन में ख्याल आया. उसने सोचा एक अपरिचित व्यक्ति ने मुझपे भरोसा किया,
पर मैं खुद पर भरोसा नहीं कर रहा हूँ.
यह ख्याल आते ही उसने चेक को संभाल कर रख लिया.
उसने निश्चय कर लिया की पहले वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेगा,
पूरी मेहनत करेगा की इस मुश्किल से
निकल जाए. उसके बाद भी अगर कोई चारा न बचे तो वो check use करेगा.
उस दिन के बाद युवक ने खुद को झोंक दिया.
बस एक ही धुन थी,
किसी तरह सारे कर्ज चुकाकर अपनी प्रतिष्ठा को फिर से पाना हैं.
उसकी कोशिशे रंग लाने लगी. कारोबार उबरने लगा, कर्ज चुकने लगा. साल भर बाद तो वो पहले से भी अच्छी स्तिथि में था.
निर्धारित दिन ठीक समय वह बगीचे में पहुँच गया.
वह चेक लेकर Rockefeller की राह देख रहा था
की वे दूर से आते दिखे.
जब वे पास पहुंचे तो युवक ने बड़ी श्रद्धा से उनका अभिवादन किया.
उनकी ओर चेक बढाकर उसने कुछ कहने के लिए मुंह खोल ही था की एक नर्स भागते हुए आई
और
झपट्टा मरकर वृद्ध को पकड़ लिया.
युवक हैरान रह गया.
नर्स बोली, “यह पागल बार बार पागलखाने से भाग जाता हैं
और
लोगो को जॉन डी . Rockefeller के रूप में check बाँटता फिरता हैं. ”
अब वह युवक पहले से भी ज्यादा हैरान रह गया.
जिस check के बल पर उसने अपना पूरा डूबता कारोबार फिर से खड़ा किया,वह
फर्जी था.
पर यह बात जरुर साबित हुई की वास्तविक जीत हमारे इरादे , हौंसले और प्रयास में ही होती हैं.
हम सभी यदि खुद पर विश्वास रखे तो यक़ीनन

किसी भी असुविधा से, situation से निपट सकते है
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10>....संत मलूकदास 
संत महापुरुषों के अनुसार संत मलूकदास जी पूर्व के पुण्य से बाल्यावस्था में तो अच्छे रास्ते पर चले और भक्ति भाव का आश्रय लिया लेकिन जवानी में जरा भटक गये। उनके बँगले के नजदीक ही एक मंदिर था।
एक रात्रि को पुजारी के कीर्तन की ध्वनि के कारण उन्हें ठीक से नींद नहीं आयी। सुबह उन्होंने पुजारी को खूब डाँटा कि ‘‘यह सब क्या?’’ पुजारी बोले: ‘‘एकादशी का जागरण-कीर्तन चल रहा था।’’ ‘‘अरे! क्या जागरण-कीर्तन करते हो? हमारी नींद हराम कर दी। अच्छी नींद के बाद व्यक्ति काम करने के लिए तैयार हो पाता है, फिर कमाता है तब खाता है।’’ पुजारी ने कहा: सेठजी! खिलाता तो वह खिलाने वाला ही है।’’ ‘‘कौन खिलाता है? क्या तुम्हारा भगवान खिलाने आयेगा?’’ ‘‘वही तो खिलाता है।’’
‘‘क्या भगवान खिलाता है? हम कमाते हैं तब खाते हैं।’’ ‘‘निमित्त होता है तुम्हारा कमाना और पत्नी का रोटी बनाना। बाकी सबको खिलाने वाला, सब का पालनहार तो वह जगन्नियंता ही है।’’ ‘‘क्या पालनहार-पालनहार लगा रखा है? बाबा आदम के जमाने की बातें करते हो। क्या तुम्हारा पालने वाला एक-एक को आकर खिलाता है? आखिर हम कमाते है तभी खाते है’’ ‘‘सभी को वही खिलाता है।’’ ‘‘हम नहीं खाते उसका दिया।’’
‘‘पुजारी! अगर तुम्हारा भगवान मुझे चैबीस घंटो में नहीं खिला पाया तो फिर तुम्हें अपना यह भजन- कीर्तन सदा के लिए बंद करना होगा, नहीं तो मैं तुम्हारा सिर उड़ा दूँगा।’’ ‘‘सेठजी! मैं जानता हूँ कि तुम्हारी बहुत पहुँच है लेकिन उसके हाथ लंबे है। जब तक वह नहीँ चाहता, तब तक किसी का बाल भी बाँका नहीं हो सकता।’’ ठीक है, आजमाकर देख लेना।’’ पुजारी कोई सात्त्विक, भगवान में प्रीति वाले भक्त रहे होंगे।
मलूकदास किसी घोर जंगल मेें चले गये और विषालकाय वृक्ष की ऊँची डाल पर चढ़ कर बैठ गये कि ‘अब देखें इधर कौन खिलाने आता है? चैबीस घंटे बीत जायेंगे और पुजारी की हार हो जायेगी। सदा के लिए कीर्तिन की झंझट मिट जायेगी।’ दो-तीन घंटे के बाद अजनबी आदमी वहाँ आया। उसने वृक्ष के नीचे आराम किया। फिर अपना सामान उठाकर चल दिया लेकिन अपना एक थैला वहीं भूल गया। भूल गया कहो, छोड़ गया कहो। भगवान ने किसी मनुष्य को प्रेरणा की थी अथवा मनुष्य रूप में साक्षात् भगवत्सत्ता ही वहाँ आयी थी, यह तो भगवान ही जानें। थोड़ी देर बाद पाँच डकैत वहाँ से पसार हुए। उनमें से एक ने अपने सरदार से कहा: उस्ताद! यहाँ कोई थैला पड़ा है।’’ ‘‘क्या है? जरा देखो।’’ खोलकर देखा तो उसमें गरमागरम भोजन से भरा टिफिन! ‘‘उस्ताद! भूख लगी है, लगता है यह भोजन अल्लाह-ताला ने ही भेजा है।’’ ‘‘अरे! तेरा अल्लाह - ताला यहाँ कैसे भोजन भेजेगा? हमको पकड़ने या फँसाने के लिए किसी शत्रु ने ही जहर-वहर डालकर यह टिफिन यहाँ रखा होगा अथवा पुलिस का कोई षड्यंत्र होगा। इधर-उधर देखो जरा कौन रखकर गया है?’’
मलूकदास सेठ ऊपर बैठे-बैठे सोचने लगे कि ‘अगर मैं कुछ बोलुॅगा तो ये मेरे ही गले पड़ेंगे।’ वे तो चुप रहे लेकिन हृदय की धड़कने चलाता है, भक्त- वत्सल है वह अपने भक्त का वचन पूरा किये बिना शांत कैसे रहता? उसने उन डकैतों को प्रेरित किया कि ‘ऊपर भी देखो।’ उन्होंने ऊपर देखा तो वृक्ष की डाल पर एक आदमी बैठा हुआ दिखा। डकैत चिल्लाये: अरे! नीचे उतर।’’ ‘‘मैं नहीं उतरता।’’ ‘‘क्यों नहीं उतरता, यह भोजन तूने ही रखा होगा।’’ ‘‘मैंने नहीं रखा। कोई यात्री अभी आया था, वही इसे भूलकर चला गया।’’ ‘‘नीचे उतर । तुने ही रखा होगा जहर- वहर मिलाकर और अब बचने के लिए बहाने बना रहा है, तुझे ही यह भोजन खाना पडे़गा।’’ अब कौन-सा काम वह सर्वेष्वर किसके द्वारा किस निमित्त से करवाये अथवा उसके लिए क्या रूप ले यह उसकी मर्जी की बात है । बड़ी गजब की व्यवस्था है उस परमेष्वर की! मलूकचंद बोले: ‘‘मैं नीचे नहीं उतरूँगा और खाना तो मैं कतई नहीं खाऊँगा।’’ ‘‘पक्का तूने खाने में जहर मिलाया है। अरे! नीचे उतर, अब तो तुझे खाना ही होगा।’’ ‘‘मैं नहीं खाऊँगा, नीचे भी नहीं उतरूँगा।’’ ‘‘ अरे! कैसे नहीं उतरेगा?’’
डकैतों के सरदार ने अपने एक आदमी को हुक्म दिया: ‘‘इसको जबरदस्ती नीचे उतारो।’’ डकैत ने मलूकदास को पकड़कर नीचे उतारा। ‘‘ले, खाना खा।’’ ‘‘मैं नहीं खाऊँगा।’’ उस्ताद ने धड़ाक- से उनके मुँह पर तमाचा जड़ दिया। मलूकचंद को पुजारी की बात याद आयी कि ‘ नहीं खाओगे तो मारकर भी खिलायेगा...’ मूलकचंद बोले: ‘‘मैं नहीं खाऊँगा।’’ ‘‘अरे! कैसे नहीं खायेगा? इसकी नाक दबाओ और मुँह खोलो।’’ वहाँ कोई लकड़ी की डंडी पड़ी थी। डकैतों ने उससे उसका मुँह खोला और जबरदस्ती एक कौर ठूँस दिया । वे नहीं खा रहे थे तो डकैत उन्हें पीटने लगे। अब मलूकचंद ने सोचा कि ‘ये पाँच है और मैं अकेला हूँ। नहीं खाऊँगा तो ये मेर हड्डी- पसली एक कर देंगे।’ इसलिए चुपचाप खाले लगे और मन-ही मन कहा ‘मान गये मेरे बाप! मरकर भी खिलाता है। डकैतों के रूप में खिला, चाहे भक्तोें के रूप में खिला लेकिन खिलाने वाला तो तू ही है। अपने पुजारी की बात तूने सत्य साबित कर दिखायी।’ मूलकदास के बचपन की भक्ति की धारा फूट पड़ी । उनको मार-पीटकर डकैत वहाँ से चले गये तो मलूकदास भागे और पुजारी के पास आकर बोले: ‘‘पुजारी जी ! मान गये आपकी बात कि नहीं खायें तो वह मारकर भी खिलाता है।’’
पुजारी बोले: ‘‘वैसे तो तीन दिन तक कोई खाना न खाये तो वह जरूर किसी-न-किसी रूप मे आकर खिलाता है लेकिन मैंने प्रार्थना की थी कि ‘तीन दिन की नहीं एक दिन की शर्त रखी है, तू कृपा करना।’ अगर कोई सच्ची श्रद्धा और विश्वास से हृदयपूर्वक प्रार्थना करता है तो वह अवश्य सुनता है। वह तो सर्वव्यापक, सर्वसमर्थ है। उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं हैं।’’
कर्तु शक्या अकर्तुं शक्यं कर्तु शक्यम्।
मलूकदास ने पुजारी को धन्यवाद दिया। वे सोचने लगे। जिसने मुझे मारकर भी खिलाया, अब उस सर्वसमर्थ की मैं खोज करूँगा।’’ वे उस खिलाने वाले की खोज में घने जंगल में चले गये। वहाँ वे भजन-कीर्तन में लग गए ।
अजगर करे न चाकरी
पंछी करे न काम
दास मलूका कह गए
सबके दाता राम ।
ये यही मलूकदास जी हैं ।
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11>ये कहानी आपके जीने की सोच बदल देगी !
एक दिन एक किसान का बैल कुएँ में गिर गया
वह बैल घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं।
अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि बैल काफी बूढा हो चूका था अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ।
किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी।
जैसे ही बैल कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया।
सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया....
अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह बैल एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था।
जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एक सीढी ऊपर चढ़ आता जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह बैल कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया।
ध्यान रखे
आपके जीवन में भी बहुत तरह से मिट्टी फेंकी जायेगी बहुत तरह की गंदगी आप पर गिरेगी जैसे कि ,
आपको आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही आपकी आलोचना करेगा
कोई आपकी सफलता से ईर्ष्या के कारण आपको बेकार में ही भला बुरा कहेगा
कोई आपसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो आपके आदर्शों के विरुद्ध होंगे...
ऐसे में आपको हतोत्साहित हो कर कुएँ में ही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हर तरह की गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख ले कर उसे सीढ़ी बनाकर बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है।
सकारात्मक रहे
सकारात्मक जिए...
👌🙏🌹👏👏👏🌹
" दुसरो को सुनाने के लिए अपनी आवाज ऊचीं मत करो...!
बल्कि अपना व्यक्तित्व इतना ऊँचा बनाओ,
कि आपको सुनने के लिए लोग मिन्नतें करें...!!
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12>॥শিক্ষণীয় গল্প॥
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একদা গাধা ও শিয়াল বনের মাঝে ঝগড়া শুরু করল।
গাধা বলল - "ঘাস হলুদ..!!!"
শিয়াল বলল - "না, ঘাস সবুজ..!!!"
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যখন এ বিতর্ক চরম আকার ধারন করলো, তারা দু জন বিচারের জন্য বনের রাজা সিংহকে বিচারক নির্ধারণ করল।
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তখন সিংহ শিয়াল কে পূর্ণ একমাস বন্দী রাখার এবং গাধাকে মুক্তির আদেশ করল।
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শিয়াল সিংহকে প্রশ্ন করল - "এটা কি ন্যায় বিচার..? ঘাস কি সবুজ নয়..!!!"
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সিংহ উত্তর দিল - "ঘাস অবশ্যই সবুজ...কিন্তু আমি তোকে বন্দী করার আদেশ করেছি...কেননা তুই গাধার সাথে তর্ক করেছিস..!!!!!"
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*** (আজ কাল আমরা অনেকেই অযথা তর্কে জড়িয়ে পড়ি, এমন মানুষের সাথে আমরা তর্কে লিপ্ত হই যাদের ব্যাপারে আমরা জানি, পৃথিবীর সকল প্রমানও যদি তার মতবাদের বিপক্ষে দাড় করাই তার পরও সে তা মেনে নেবে না।)
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13>600 साल पहले ही तुलसीदास जी ने बता दी थी सूर्य और पृथ्वी के बीच की सटीक दूरी।


भले विज्ञान बहुत तरक्की कर रहा हो और नित नये राज खोल रहा हो पर भारत की भूमि पर हमेशा से ही विज्ञान पर शोध होता रहा है। यही कारण है कि जो ज्ञान आज वैज्ञानिक बताते हैं वे सभी हमें हमारे वेदों में मिलते हैं। विज्ञान को जितान भारतीय मुनियों ने समझा है शायद ही किसी ओर ने जाना हो। इसी बीच हम आपको बताने जा रहे हैं तुलसीदास जी के विज्ञान ज्ञान को कि किस प्रकार उन्होंने सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी को सटीकता से बताया था। उन्हें हुए लगभग 600 साल हो गये हैं पर जब उनकी बात नासा और तमाम संगठन भी सही बताते हैं तो समुचे विश्व को हैरानी होती है, कि भारतीय बहुत वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते थे।

प्राचीन समय में ही गोस्वामी तुलसीदास ने बता दिया था कि सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर है।

यह बात किसी आश्चर्य से कम नहीं है। आखिर कैसे तुलसीदास जी ने यह आकलन किया था। और वह भी पूरी तरह से सही है, तो क्या ऐसा संभव है कि विज्ञान ने धर्म की कॉपी की हो।
आइये इस रहस्य को जानते हैं हनुमान चालीसा के माध्यम से जिसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी थे।।

हनुमान चालीसा में एक दोहा है:

जुग (युग) सहस्त्र जोजन (योजन) पर भानु. लील्यो ताहि मधुर फल जानू..

इस दोहे का सरल अर्थ यह है कि हनुमानजी ने एक युग सहस्त्र योजन की दूरी पर स्थित भानु यानी सूर्य को मीठा फल समझकर खा लिया था।

हनुमानजी ने एक युग सहस्त्र योजन की दूरी पर स्थित भानु यानी सूर्य को मीठा फल समझकर खा लिया था।

एक युग = 12000 वर्ष
एक सहस्त्र = 1000
एक योजन = 8 मील

युग x सहस्त्र x योजन = पर भानु

12000 x 1000 x 8 मील = 96000000 मील

एक मील = 1.6 किमी

96000000 x 1.6 = 153600000 किमी

इस गणित के आधार गोस्वामी तुलसीदास ने प्राचीन समय में ही बता दिया था कि सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर है।

इस गणित में युग बताया गया है कि एक युग कितने वर्ष का होता है, फिर सहस्त्र और अंत में योजन, सभी का कुल जोड़ कर जब उसे किलोमीटर से गुना किया जाता है तब यह दूरी सूर्य और पृथ्वी के बीच की दुरी के बराबर ही निकलती है।

अब इसे आज का मानव कोई संयोग भी बोल सकता है या बोल दे कि यह तुक्का ही है।

लेकिन धर्म के जानकर बताते हैं कि हनुमान जी ने बचपन में ही यह दूरी तय कर ली थी, जब वह सूर्य को फल समझकर खाने के लिए पृथ्वी से ही सूर्य पर पहुँच गये थे।

अब इस सच को आप मानें या ना मानें यह तो आपके ऊपर निर्भर करता है लेकिन इससे यह तो सिद्ध हो जाता है कि आज भी धर्म, विज्ञान से कहीं आगे है। धर्म कहता है कि ब्रह्माण्ड में एक नहीं हजारों सूरज, चन्द्रमा हैं और तो औऱ अनगिनत ब्रह्माण की थ्योरी भी वैज्ञानिक रामायण से लेते हैं।

आसान भाषा में देखा जाये तो भारतीय संस्कृति जिसमें वेदों का समावेश है वह आधुनिक विज्ञान से बहुत ऊपर है और इसी कारण से आज भी वेद की कई रिचायें वैज्ञानिकों को समझ नहीं आती हैं।।
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14>सौ ऊंट =समस्या नही......समाधान की सोचें.

सौ ऊंट 🐪🐪
किसी शहर में, एक आदमी अपनी ज़िन्दगी से खुश नहीं था , हर समय वो किसी न किसी समस्या से परेशान रहता था .
एक बार शहर से कुछ दूरी पर एक महात्मा का काफिला रुका . शहर में चारों और उन्ही की चर्चा थी.
बहुत से लोग अपनी समस्याएं लेकर उनके पास पहुँचने लगे ,
उस आदमी ने भी महात्मा के दर्शन करने का निश्चय किया .
छुट्टी के दिन सुबह -सुबह ही उनके काफिले तक पहुंचा . बहुत इंतज़ार के बाद उसका का नंबर आया .
वह बाबा से बोला ,” बाबा , मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूँ , हर समय समस्याएं मुझे घेरी रहती हैं , कभी ऑफिस की टेंशन रहती है , तो कभी घर पर अनबन हो जाती है , और कभी अपने सेहत को लेकर परेशान रहता हूँ ….
बाबा कोई ऐसा उपाय बताइये कि मेरे जीवन से सभी समस्याएं ख़त्म हो जाएं और मैं चैन से जी सकूँ ?
बाबा मुस्कुराये और बोले , “ पुत्र , आज बहुत देर हो गयी है मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर कल सुबह दूंगा … लेकिन क्या तुम मेरा एक छोटा सा काम करोगे …?”
“हमारे काफिले में सौ ऊंट 🐪 हैं ,
मैं चाहता हूँ कि आज रात तुम इनका खयाल रखो …
जब सौ के सौ ऊंट 🐪 बैठ जाएं तो तुम भी सो जाना …”,
ऐसा कहते हुए महात्मा👳 अपने तम्बू में चले गए ..
अगली सुबह महात्मा उस आदमी से मिले और पुछा , “ कहो बेटा , नींद अच्छी आई .”
वो दुखी होते हुए बोला :
“कहाँ बाबा , मैं तो एक पल भी नहीं सो पाया. मैंने बहुत कोशिश की पर मैं सभी ऊंटों🐪को नहीं बैठा पाया , कोई न कोई ऊंट 🐪 खड़ा हो ही जाता …!!!
बाबा बोले , “ बेटा , कल रात तुमने अनुभव किया कि चाहे कितनी भी कोशिश कर लो सारे ऊंट 🐪 एक साथ नहीं बैठ सकते …
तुम एक को बैठाओगे तो कहीं और कोई दूसरा खड़ा हो जाएगा.
इसी तरह तुम एक समस्या का समाधान करोगे तो किसी कारणवश दूसरी खड़ी हो जाएगी ..
पुत्र जब तक जीवन है ये समस्याएं तो बनी ही रहती हैं … कभी कम तो कभी ज्यादा ….”
“तो हमें क्या करना चाहिए ?” , आदमी ने जिज्ञासावश पुछा .
“इन समस्याओं के बावजूद जीवन का आनंद लेना सीखो …
कल रात क्या हुआ ?
1) कई ऊंट 🐪 रात होते -होते खुद ही बैठ गए ,
2) कई तुमने अपने प्रयास से बैठा दिए ,
3) बहुत से ऊंट 🐪 तुम्हारे प्रयास के बाद भी नहीं बैठे … और बाद में तुमने पाया कि उनमे से कुछ खुद ही बैठ गए ….
कुछ समझे ….??
समस्याएं भी ऐसी ही होती हैं..
1) कुछ तो अपने आप ही ख़त्म हो जाती हैं ,
2) कुछ को तुम अपने प्रयास से हल कर लेते हो …
3) कुछ तुम्हारे बहुत कोशिश करने पर भी हल नहीं होतीं ,
ऐसी समस्याओं को समय पर छोड़ दो … उचित समय पर वे खुद ही ख़त्म हो जाती हैं.!!
जीवन है, तो कुछ समस्याएं रहेंगी ही रहेंगी …. पर इसका ये मतलब नहीं कि तुम दिन रात उन्हीं के बारे में सोचते रहो …
समस्याओं से भी जूझते रहो
और जीवन का आनंद भी लो…


समस्या नही......समाधान की सोचें...!




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