3>Myc=Post=5>***ভারতীয় পরম্পরা=" वैज्ञानिक तर्क"Part-( 1 )***( 1 to 21 )
1----------------------------- अक्सर शादी और विवाह समारोहों में दिखावा
2----------------------------- एक गोत्र में शादी क्यूँ नहीं
3-----------------------------कान छिदवाने की परम्परा:
4-----------------------------माथे पर तिलक लगाने का रहस्य – संस्कृति।
5-----------------------------जमीन पर बैठकर भोजन
6----------------------------- हाथ जोड़कर नमस्ते करना
7------------------------------भोजन की शुरुआत तीखे से और
8------------------------------पीपल की पूजा
9------------------------------दक्षिण की तरफ सिर करके सोना
10-----------------------------सूर्य नमस्कार
11-----------------------------सिर पर चोटी
12----------------------------- व्रत रखना
13-A---------------------------चरण स्पर्श करना
13-B---------------------------चरण स्पर्श की परंपरा के अनुसार कुछ लाभ :-
14------------------------------क्यों लगाया जाता है सिंदूर
15------------------------------पूजा-पाठ में दीपक क्यों जलाया जाता है।
16------------------------------ मंदिर का घंटा" .
17------------------------------मुहूर्त
18------------------------------पूजा में कपूर का खास प्रयोग होता है,
19------------------------------क्यों बजाई जाती है मंदिर में प्रवेश करते समय घंटी ?
20------------------------------आखिर परिक्रमा क्यों करते है देवी-देवताओ की?
21>-----------------------------सिर पर शिखा रखने के पीछे बहुत बड़ीवैज्ञानिकता है
21>-----------------------------सिर पर शिखा रखने के पीछे बहुत बड़ीवैज्ञानिकता है
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ভারতীয় পরম্পরা ------( 1 )
30{ भारतीय परम्पराए "==" वैज्ञानिक तर्क "
1> अक्सर शादी और विवाह समारोहों में दिखावा
अक्सर शादी और विवाह समारोहों में दिखावा और एक दूसरे से ज्यादा पैसे की झूठी शान दिखाने के चक्कर में
हम लोग अंधे होते जा रहे हैं।अभी हाल में गुजरात में एक विवाह समारोह में स्टेज पर दूल्हा और दुल्हन को
लाने के लिये कांच का हीरे के आकार का केप्सूल बना कर क्रेन से स्टेज पर लाते समय क्रेन का सन्तुलन
बिगड़ा और कांच का केप्सूल जमीन पर गिरा और उस पर क्रेन का हिस्सा आ गिरा । नतीजा यह हुआ कि
दूल्हा और दुल्हन की उसी स्थान पर मृत्यु हो गई।
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2> एक गोत्र में शादी क्यूँ नहीं
एक गोत्र में शादी क्यूँ नहीं.. वैज्ञानिक कारण..!
एक दिन डिस्कवरी पर जेनेटिक बीमारियों से सम्बन्धित एक ज्ञानवर्धक कार्यक्रम था
उस प्रोग्राम में एक अमेरिकी वैज्ञानिक ने कहा की जेनेटिक बीमारी न हो
इसका एक ही इलाज है और वो है
"सेपरेशन ऑफ़ जींस"
मतलब अपने नजदीकी रिश्तेदारो में विवाह नही करना चाहिए क्योकि
नजदीकी रिश्तेदारों में जींस सेपरेट (विभाजन) नही हो पाता और
जींस लिंकेज्ड बीमारियाँ जैसे हिमोफिलिया, कलर ब्लाईंडनेस, और
एल्बोनिज्म होने की 100% चांस होती है ..
फिर बहुत ख़ुशी हुई जब उसी कार्यक्रम में ये दिखाया गया की आखिर
"हिन्दूधर्म" में हजारों-हजारों सालों पहले जींस और डीएनए के बारे मे
कैसे लिखा गया है ?
हिंदुत्व में गोत्र होते है और एक गोत्र के लोग आपस में शादी नही कर सकते
ताकि जींस सेपरेट (विभाजित) रहे..
उस वैज्ञानिक ने कहा की आज पूरे विश्व को मानना पड़ेगा की
"हिन्दूधर्म ही" विश्व का एकमात्र ऐसा धर्म है जो
"विज्ञान पर आधारित" है !
हिंदू परम्पराओं से जुड़े ये वैज्ञानिक तर्क:
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3-> कान छिदवाने की परम्परा:
भारत में लगभग सभी धर्मों में कान छिदवाने की परम्परा है।
वैज्ञानिक तर्क-
दर्शनशास्त्री मानते हैं कि इससे सोचने की शक्ति बढ़ती है। जबकि डॉक्टरों का मानना है कि इससे बोली
अच्छी होती है और कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का
रक्त संचार नियंत्रित रहता है।4-> माथे पर कुमकुम/तिलक
महिलाएं एवं पुरुष माथे पर कुमकुम या तिलक लगाते हैं
वैज्ञानिक तर्क-
आंखों के बीच में माथे तक एक नस जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस जगह की ऊर्जा
बनी रहती है। माथे पर तिलक लगाते वक्त जब अंगूठे या उंगली से प्रेशर पड़ता है,
तब चेहरे की त्वचा को रक्त सप्लाई करने वाली मांसपेशी सक्रिय हो जाती है।
इससे चेहरे की कोशिकाओं तक अच्छी तरह रक्त पहुंचता
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4>माथे पर तिलक लगाने का रहस्य – संस्कृति।
सनातन धर्म पर्णत: विज्ञान पर आधारित है। सनातन धर्म में अपनाई जाने वाली हर पद्धति विज्ञान को सही समझाती है। इसी में हम आपको ललाट पर लिलक लगाने का रहस्य बता रहे हैं। शायद भारत के सिवा और कहीं भी मस्तक पर तिलक लगाने की प्रथा प्रचलित नहीं है। यह रिवाज अत्यंत प्राचीन है। माना जाता है कि मनुष्य के मस्तक के मध्य में विष्णु भगवान का निवास होता है, और तिलक ठीक इसी स्थान पर लगाया जाता है।
मनोविज्ञान की दृष्टि से भी तिलक लगाना उपयोगी माना गया है। माथा चेहरे का केंद्रीय भाग होता है, जहां सबकी नजर अटकती है। उसके मध्य में तिलक लगाकर, विशेषकर स्त्रियों में, देखने वाले की दृष्टि को बांधे रखने का प्रयत्न किया जाता है।
स्त्रियां लाल कुंकुम का तिलक लगाती हैं। यह भी बिना प्रयोजन नहीं है। लाल रंग ऊर्जा एवं स्फूर्ति का प्रतीक होता है। तिलक स्त्रियों के सौंदर्य में अभिवृद्धि करता है। तिलक लगाना देवी की आराधना से भी जुड़ा है। देवी की पूजा करने के बाद माथे पर तिलक लगाया जाता है। तिलक देवी के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।
तिलक का महत्व
हिन्दु परम्परा में मस्तक पर तिलक लगाना शूभ माना जाता है इसे सात्विकता का प्रतीक माना जाता है विजयश्री प्राप्त करने के उद्देश्य रोली, हल्दी, चन्दन या फिर कुम्कुम का तिलक या कार्य की महत्ता को ध्यान में रखकर, इसी प्रकार शुभकामनाओं के रुप में हमारे तीर्थस्थानों पर, विभिन्न पर्वो-त्यौहारों, विशेष अतिथि आगमन पर आवाजाही के उद्देश्य से भी लगाया जाता है ।
मस्तिष्क के भ्रु-मध्य ललाट में जिस स्थान पर टीका या तिलक लगाया जाता है यह भाग आज्ञाचक्र है । शरीर शास्त्र के अनुसार पीनियल ग्रन्थि का स्थान होने की वजह से, जब पीनियल ग्रन्थि को उद्दीप्त किया जाता हैं, तो मस्तष्क के अन्दर एक तरह के प्रकाश की अनुभूति होती है । इसे प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है हमारे ऋषिगण इस बात को भलीभाँति जानते थे पीनियल ग्रन्थि के उद्दीपन से आज्ञाचक्र का उद्दीपन होगा । इसी वजह से धार्मिक कर्मकाण्ड, पूजा-उपासना व शूभकार्यो में टीका लगाने का प्रचलन से बार-बार उस के उद्दीपन से हमारे शरीर में स्थूल-सूक्ष्म अवयन जागृत हो सकें । इस आसान तरीके से सर्वसाधारण की रुचि धार्मिकता की ओर, आत्मिकता की ओर, तृतीय नेत्र जानकर इसके उन्मीलन की दिशा में किया गयचा प्रयास जिससे आज्ञाचक्र को नियमित उत्तेजना मिलती रहती है ।
तन्त्र शास्त्र के अनुसार माथे को इष्ट इष्ट देव का प्रतीक समझा जाता है हमारे इष्ट देव की स्मृति हमें सदैव बनी रहे इस तरह की धारणा क ध्यान में रखकर, ताकि मन में उस केन्द्रबिन्दु की स्मृति हो सकें । शरीर व्यापी चेतना शनैः शनैः आज्ञाचक्र पर एकत्रित होती रहे । चुँकि चेतना सारे शरीर में फैली रहती है । अतः इसे तिलक या टीके के माधअयम से आज्ञाचक्र पर एकत्रित कर, तीसरे नेत्र को जागृत करा सकें ताकि हम परामानसिक जगत में प्रवेश कर सकें ।
तिलक का हमारे जीवन में कितना महत्व है शुभघटना से लेकर अन्य कई धार्मिक अनुष्ठानों, संस्कारों, युद्ध लडने जाने वाले को शुभकामनाँ के तौर पर तिलक लगाया जाता है वे प्रसंग जिन्हें हम हमारी स्मृति-पटल से हटाना नही चाहते इन शुशियों को मस्तिष्क में स्थआई तौर पर रखने, शुभ-प्रसंगों इत्यादि के लिए तिलक लगाया जाता है हमारे जीवन में तिलक का बडा महत्व है तत्वदर्शन व विज्ञान भी इसके प्रचलन को शिक्षा को बढाने व हमारे हमारे जीवन सरल व सार्थकता उतारने के जरुरत है ?
तिलक हिंदू संस्कृति में एक पहचान चिन्ह का काम करता है। तिलक केवल धार्मिक मान्यता नहीं है बल्कि कई वैज्ञानिक कारण भी हैं इसके पीछे। तिलक केवल एक तरह से नहीं लगाया जाता। हिंदू धर्म में जितने संतों के मत हैं। जितने पंथ है, संप्रदाय हैं उन सबके अपने अलग-अलग तिलक है।
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5> जमीन पर बैठकर भोजन
भारतीय संस्कृति के अनुसार जमीन पर बैठकर भोजन करना अच्छी बात होती है
वैज्ञानिक तर्क-
पलती मारकर बैठना एक प्रकार का योग आसन है। इस पोजीशन में बैठने से मस्तिष्क शांत रहता है
और भोजन करते वक्त अगर दिमाग शांत हो तो पाचन क्रिया अच्छी रहती है। इस पोजीशन में
बैठते ही खुद-ब-खुद दिमाग से 1 सिगनल पेट तक जाता है, कि वह भोजन के लिये तैयार हो जाये
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6-> हाथ जोड़कर नमस्ते करना
जब किसी से मिलते हैं तो हाथ जोड़कर नमस्ते अथवा नमस्कार करते हैं।
वैज्ञानिक तर्क-
जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क में आते हैं और उन पर दबाव पड़ता है।
एक्यूप्रेशर के कारण उसका सीधा असर हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर होता है,
ताकि सामने वाले व्यक्ति को हम लंबे समय तक याद रख सकें।
दूसरा तर्क यह कि हाथ मिलाने (पश्चिमी सभ्यता) के बजाये अगर आप नमस्ते करते हैं
तो सामने वाले के शरीर के कीटाणु आप तक नहीं पहुंच सकते।
अगर सामने वाले को स्वाइन फ्लू भी है तो भी वह वायरस आप तक नहीं पहुंचेगा।
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7-> भोजन की शुरुआत तीखे से और
अंत मीठे से
जब भी कोई धार्मिक या पारिवारिक अनुष्ठान होता है तो भोजन की शुरुआत तीखे से और
अंत मीठे से होता है।
वैज्ञानिक तर्क-
तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं इससे
पाचन तंत्र ठीक से संचालित होता है अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है
इससे पेट में जलन नहीं होती है
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8-> पीपल की पूजा
तमाम लोग सोचते हैं कि पीपल की पूजा करने से भूत-प्रेत दूर भागते हैं।
वैज्ञानिक तर्क-
इसकी पूजा इसलिये की जाती है, ताकि इस पेड़ के प्रति लोगों का सम्मान बढ़े और उसे काटें नहीं
पीपल एक मात्र ऐसा पेड़ है, जो रात में भी ऑक्सीजन प्रवाहित करता है
पीपल का पूजन क्यों ?
गीता में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं -‘अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम्’
अर्थात् मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूं । इस कथन में उन्होंने अपने आपको पीपल के वृक्ष के समान ही घोषित किया है । पद्मपुराण के अनुसार पीपल का वृक्ष भगवान विष्णु का रूप है । इसलिए इसे धार्मिक श्रेष्ठ देव वृक्ष की पदवी मिली और इसका विधिवत् पूजन आरंभ हुआ । अनेक अवसरों पर पीपल की पूजा का विधान है ।
सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष में साक्षात् भगवान विष्णु एवं लक्ष्मी का वास होता है ।पुराणों में पीपल (अश्वत्थ) का बड़ा महत्त्व बताया गया है -
मूल विष्णु: स्थितो नित्यं स्कंधे केशव एव च ।
नारायणस्तु शाखासु पत्रेषु भगवान हरि: ।।
फलेऽच्युतो न सन्देह: सर्वदेवै: समन्वित: ।।
स एव विष्णुर्द्रुम एव मूर्तो महात्मभि: सेवतिपुष्यमुल: ।यस्याश्रय: पापसहस्त्रहन्ताभवेन्नृणां कामदुघो गुणाढ्य: ।।
नारायणस्तु शाखासु पत्रेषु भगवान हरि: ।।
फलेऽच्युतो न सन्देह: सर्वदेवै: समन्वित: ।।
स एव विष्णुर्द्रुम एव मूर्तो महात्मभि: सेवतिपुष्यमुल: ।यस्याश्रय: पापसहस्त्रहन्ताभवेन्नृणां कामदुघो गुणाढ्य: ।।
अर्थात् :- ‘पीपल की जड़ में विष्णु, तने में केशव. शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान हरि और फल में सब देवताओं से युक्त अच्युत सदा निवास करते हैं । यह वृक्ष मूर्तिमान श्रीविष्णुस्वरूप है । महात्मा पुरुष इस वृक्षके आश्रय मनुष्यों के हजारों पापों का नाश करने वाला है ।
’पद्मपुराण के मतानुसार पीपल को प्रणाम करने और उसकी परिक्रमा करने से आयु लंबी होती है । जो व्यक्ति इस वृक्ष को पानी देता है, वह सभी पापों से छुटकारा पाकर स्वर्ग को जाता है । पीपल में पितरों का वास माना गया है । इसमें सब तीर्थों का निवास भी होता है । इसलिए मुंडन आदि संस्कार पीपल के नीचे करवाने का प्रचलन है ।महिलाओं में यह विश्वास है कि पीपल की निरंतर पूजा अर्चना व परिक्रमा करके जल चढ़ाते रहने से संतान की प्राप्ति होती है, पुत्र उत्पन्न होता है, पुण्य मिलता है।
’पद्मपुराण के मतानुसार पीपल को प्रणाम करने और उसकी परिक्रमा करने से आयु लंबी होती है । जो व्यक्ति इस वृक्ष को पानी देता है, वह सभी पापों से छुटकारा पाकर स्वर्ग को जाता है । पीपल में पितरों का वास माना गया है । इसमें सब तीर्थों का निवास भी होता है । इसलिए मुंडन आदि संस्कार पीपल के नीचे करवाने का प्रचलन है ।महिलाओं में यह विश्वास है कि पीपल की निरंतर पूजा अर्चना व परिक्रमा करके जल चढ़ाते रहने से संतान की प्राप्ति होती है, पुत्र उत्पन्न होता है, पुण्य मिलता है।
अदृष्य आत्माएं तृप्त होकर सहायक बन जाती हैं । कामनापूर्ति के लिए पीपल के तने पर सूत लपेटने की भी परंपरा है । पीपल की जड़ में शनिवार को जन चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है । शनि की जब साढ़ेसाती दशा होती है, तो लोग पीपल के वृक्ष का पूजन और परिक्रमा करते हैं, क्योंकि भगवानकृष्ण के पुराणकथा आदि के लिए श्रेष्ठ मानी गयी है ।
पीपल के पत्तों से शुभकाम में वंदनवार भी बनाए जाते हैं । धार्मिक श्रद्धालु लोग इसे मंदिर परिसर में अवश्य लगाते हैं । सूर्योदय से पूर्व पीपल पर दरिद्रता का अधिकार होता है और सूर्योदय के बाद लक्ष्मी का अधिकार होता है । इसलिए सूर्योदय से पहले इसकी पूजा करना निषेध किया गया है ।
इसके वृक्ष को काटना या नष्ट करना ब्रह्महत्या के तुल्य पाप माना गया है । रात में इस वृक्ष के नीचे सोना अशुभ माना जाता है ।वैज्ञानिक दृष्टि से पीपल रात दिन निरंतर 24 घंटे आक्सीजन देने वाला एकमात्र अद्भुत वृक्ष है । इसके निकट रहने से प्राणशक्ति बढ़ती है । इसकी छाया गर्मियों में ठंडी और सर्दियों में गर्म रहती है । इसके अलावा पीपल के पत्ते, फल आदि में औषधीय गुण रहने के कारण यह रोगनाशक भी होता है ।
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9-> दक्षिण की तरफ सिर करके सोना
दक्षिण की तरफ कोई पैर करके सोता है तो लोग कहते हैं कि बुरे सपने आयेंगे
भूत प्रेत का साया आयेगा आदि इसलिये उत्तर की ओर पैर करके सोयें
वैज्ञानिक तर्क-
जब हम उत्तर की ओर सिर करके सोते हैं, तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है।
शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा दिमाग की ओर संचारित होने लगता है इससे अलजाइमर, परकिंसन,
या दिमाग संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है यही नहीं रक्तचाप भी बढ़ जाता है
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10-> सूर्य नमस्कार
हिंदुओं में सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाते नमस्कार करने की परम्परा है।
वैज्ञानिक तर्क-
पानी के बीच से आने वाली सूर्य की किरणें जब आंखों में पहुंचती हैं तब हमारी आंखों की रौशनी
अच्छी होती है
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11-> सिर पर चोटी
हिंदू धर्म में ऋषि मुनी सिर पर चुटिया रखते थे आज भी लोग रखते हैं
वैज्ञानिक तर्क-
जिस जगह पर चुटिया रखी जाती है उस जगह पर दिमाग की सारी नसें आकर मिलती हैं इससे दिमाग
स्थिर रहता है और इंसान को क्रोध नहीं आता सोचने की क्षमता बढ़ती है।
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12-> व्रत रखना
कोई भी पूजा-पाठ, त्योहार होता है तो लोग व्रत रखते हैं।
वैज्ञानिक तर्क-
आयुर्वेद के अनुसार व्रत करने से पाचन क्रिया अच्छी होती है और फलाहार लेने से शरीर का डीटॉक्सीफिकेशन
होता है यानी उसमें से खराब तत्व बाहर निकलते हैं शोधकर्ताओं के अनुसार व्रत करने से कैंसर का खतरा कम
होता है हृदय संबंधी रोगों,मधुमेह,आदि रोग भी जल्दी नहीं लगते
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13-> A=चरण स्पर्श करना
हिंदू मान्यता के अनुसार जब भी आप किसी बड़े से मिलें तो उसके चरण स्पर्श करें यह हम बच्चों को
भी सिखाते हैं ताकि वे बड़ों का आदर करें
वैज्ञानिक तर्क-
मस्तिष्क से निकलने वाली ऊर्जा हाथों और सामने वाले पैरों से होते हुए एक चक्र पूरा करती है इसे
कॉसमिक एनर्जी का प्रवाह कहते हैं इसमें दो प्रकार से ऊर्जा का प्रवाह होता है या तो बड़े के पैरों से
होते हुए छोटे के हाथों तक या फिर छोटे के हाथों से बड़ों के पैरों तक
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B=चरण स्पर्श की परंपरा के अनुसार कुछ लाभ :-
* चरण स्पर्श से आपसी मेलजोल प्रेम व सहनशिलता बढती है॥
* चरण स्पर्श से पराये भी अपने लगते है॥
* चरण स्पर्श से दुसरो के भावना ओ की कदर होती है ॥
* चरण स्पर्श से छुआछुत के विकार की समाप्ती होती है ॥
* चरण स्पर्श से अहंकार का नाश होता है ॥
* चरण स्पर्श से समद्रष्टी को बढावा मिलता है॥
* चरण स्पर्श से दुसरों के लिए दुआए निकलती है ॥
* चरण स्पर्श से सेवा की भावना जागृत होती है ॥
* चरण स्पर्श से संत महा पुरुषोंका आशिर्वाद मिलता है ॥
* चरण स्पर्श से मन की मलिनता दुर होती है ॥
* चरण स्पर्श से समत्व बुद्धि का विकास होती है ॥
* चरण स्पर्श से मानव मे जागृती आती है ॥
* चरण स्पर्श से सभ्यता और संस्कृती फुलती है ॥
* चरण स्पर्श से आत्मा के विकास व स्वंय की विनम्रता का परिक्षण होता है
हमारी मान्यताओं के मुताबिक जब आप किसी का चरण स्पर्श करते हैं तो अहंकार समाप्त होता है और हृदय में समर्पण एवं विनम्रता का भाव जागृत होता है। आपके शरीर की उर्जा चरण स्पर्श करने वाले व्यक्ति में पहुंचती है। श्रेष्ठ व्यक्ति में पहुंचकर उर्जा में मौजूद नकारात्मक तत्व नष्ट हो जाता है। सकारात्मक उर्जा चरण स्पर्श करने वाले व्यक्ति से आशीर्वाद के माध्यम से वापस मिल जाती है। इससे जिन उद्देश्यों को मन में रखकर आप बड़ों को प्रणाम करते हैं उस लक्ष्य को पाने का बल मिलता है।
अध्यात्मिक दृष्टि से यह माना जाता है कि, जब आप किसी का चरण स्पर्श करते हैं तो यह किसी व्यक्ति के लिए नहीं होता है। चरण स्पर्श से आप उस परमात्मा को प्रणाम करते हैं जो व्यक्ति के शरीर में आत्मा के रूप में मौजूद होता है। चरण स्पर्श करते समय हमेशा दोनों हाथों से दोनों पैरों को छूना चाहिए। एक हाथ से पांव छूने के तरीके को शास्त्रों में गलत बताया गया है।
शास्त्रों में चरण स्पर्श के तीन प्रकार बताये गये हैं। झुककर, घुटनों के बल बैठकर और साष्टांग प्रणाम। वैज्ञानिक दृष्टि से झुककर चरण स्पर्श करने से कमर और रीढ़ की हड्डियों को आराम मिलता है। रक्त का प्रवाह सिर की ओर होता है जिससे मानसिक क्षमता और आंखों की रोशनी बढ़ती है।
घुटनों के बल बैठकर चरण स्पर्श करने से जोड़ों में मौजूद तनाव दूर होता है और शरीर लचीला बनता है। जोड़ों में मौजूद तकलीफों से मुक्ति मिलती है। साष्टांग होकर चरण स्पर्श करने से सभी अंग एक्टिव होते हैं और बुद्धि तीक्ष्ण होती है। शास्त्रों में कहा गया है कि स्त्रियों को साष्टांग होकर किसी का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए।
चरण स्पर्श से आयु भी लंबी होती है। इस संदर्भ में एक बहुत ही सुंदर कथा है। ऋषि मार्कण्डेय जी अल्पायु थे। जब इनके पिता को इस बात की जानकारी हुई तो उनका जनेऊ संस्कार कर दिया और चरण स्पर्श की दीक्षा दी। मार्कण्डेय जी के पिता ने कहा कि पुत्र मार्कण्डेय तुम्हें जो भी व्यक्ति दिखे उनका चरण स्पर्श करना। मार्कण्डेय जी ने ऐसा ही करना शुरू कर दिया। एक दिन उनके सामने सप्तऋषि आए।
मार्कण्डेय जी ने झुककर सप्तऋषियों का चरण स्पर्श किया। अनजाने में सप्तऋषियों ने मार्कण्डेय जी को दीर्घायु का आशीर्वाद दे दिया। जब इन्हें पता चला कि मार्कण्डेय जी अल्पायु हैं तो चिंता में पड़ गये। सप्तऋषि बालक मार्कण्डेय को ब्रह्मा जी के पास ले गये। मार्कण्डेय जी ने ब्रह्मा जी का भी चरण स्पर्श किया। ब्रह्मा जी ने भी मार्कण्डेय को दीर्घायु का आशीर्वाद दिया।
सप्तऋषियों ने ब्रह्मा जी से कहा कि यह बालक तो अल्पायु है। अगर कम उम्र में ही इसकी मृत्यु होती है तो हम दोनों का आशीर्वाद झूठा शाबित होगा। सप्तऋषि की बात सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा कि अब यह बालक दीर्घायु होगा और कई कल्पों तक जीवित रहेगा। मार्कण्डेय जी के प्राण लेने जब यमराज आये तो भगवान शिव ने यमराज को भगा दिया। बालक मार्कण्डेय ऋषि मार्कण्डेय बनकर कई कल्पों तक जीवित रहे।
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14-> क्यों लगाया जाता है सिंदूर=================================================================
शादीशुदा हिंदू महिलाएं सिंदूर लगाती हैं
वैज्ञानिक तर्क-
सिंदूर में हल्दी,चूना और मरकरी होता है यह मिश्रण शरीर के रक्तचाप को नियंत्रित करता है चूंकि
इससे यौन उत्तेजनाएं भी बढ़ती हैं इसीलिये विधवा औरतों के लिये सिंदूर लगाना वर्जित है
इससे स्ट्रेस कम होता है।
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15> पूजा-पाठ में दीपक क्यों जलाया जाता है।
मान्यता है कि अग्नि देव को साक्षी मानकर उसकी मौजूदगी में किए काम जरूर सफल होते हैं। हमारे शरीर की रचना में सहायक पांच तत्वों में से अग्नि भी एक है। दूसरा अग्नि पृथ्वी पर सूर्य का बदला हुआ रूप है।
इसलिए किसी भी देवी- देवता के पूजन के समय ऊर्जा को केंद्रीभूत करने के लिए दीपक प्रज्वलित किया जाता है।
दीपक का और भी महत्व बताया गया है कि प्रकाश ज्ञान का प्रतीक है। परमात्मा प्रकाश और ज्ञान रूप में ही सब जगह व्याप्त है। ज्ञान प्राप्त करने से अज्ञान रूपी मनोविकार दूर होते हैं और सांसारिक शूल मिटते हैं।
इसलिए प्रकाश की पूजा को ही परमात्मा की पूजा कहा गया है। मंदिर में आरती करते समय दीपक जलाने के पीछे उद्देश्य यही होता है कि प्रभु हमारा मन प्रकाश की ओर ले चलें।
दीपक से हमें जीवन के उद्धर्वगामी होने, ऊंचा उठने और अंधकार को मिटा डालने की भी प्रेरणा मिलती है। इसके अलावा दीप ज्योति से पाप खत्म होते हैं। शत्रु का शमन होता है और आयु, आरोग्य, पुण्यमय, सुखमय जीवन में बढ़ोतरी होती है।
दीपक को सही दिशा में भी जलाना चाहिए। सम संख्या में जलाने से ऊर्जा संवहन निष्क्रिय हो जाता है, जबकि विषम संख्या में जलाने से सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है। पश्चिम की ओर लौ रखने से दुख और दक्षिण की ओर लौ रखने से हानि होती है। दीपक की लौ पूर्व और उत्तर की ओर रखने से सुख और समृद्धि आती है।
पूजा-पाठ में दीपक क्यों जलाया जाता है?
भारतीय संस्कृति में हर धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम में दीपक जलाने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि अग्नि देव को साक्षी मानकर उसकी मौजूदगी में किए काम जरूर सफल होते हैं। हमारे शरीर की रचना में सहायक पांच तत्वों में से अग्नि भी एक है। दूसरा अग्नि पृथ्वी पर सूर्य का बदला हुआ रूप है। इसलिए किसी भी देवी- देवता के पूजन के समय ऊर्जा को केंद्रीभूत करने के लिए दीपक प्रज्वलित किया जाताहै।
a= दीपक का जो असाधाण महत्व बताया गया है, उसके पीछे मान्यता यह है कि प्रकाश ज्ञान का प्रतीक है। परमात्मा प्रकाश और ज्ञान रूप में ही सब जगह व्याप्त है। ज्ञान प्राप्त करने सेअज्ञान रूपी मनोविकार दूर होते हैं और सासारिक शूल मिटते हैं। इसलिए प्रकाश की पूजा को ही परमात्मा की पूजा कहा गया है। मंदिर में आरती करते समय दीपक जलाने के पीछे उद्देश्य यही होता है कि प्रभु हमारा मन प्रकाश की ओर ले चलें। मौत सेअमरता की ओर हमें ले चलें। दीपक के प्रकाश से की गई प्रार्थना का उल्लेख ऋगवेद में यूं मिलता है ।
अयं कविकविषु प्रचेता मत्र्येप्वाग्निरमृतो नि धायि।
समानो अत्र जुहुर: स्हस्व: सदा त्व्सुमनस: स्याम।।
यानी हे प्रकाश रूप परमात्मन। तुम अकवियों में कवि होकर, मृत्यों में अमृत बनकर निवास करते हो। हे प्रकाश स्वरूप तुमसे हमारा यह जीवन दुख न पाए हम हमेशा सुखी बने रहें।दीपकसे हमें जीवन के उद्धर्वगामी होने, ऊंचा उठने और अंधकार को मिटा डालने की भी प्रेरणा मिलती है। इसके अलावा दीप ज्योति से पाप खत्म होते है।
b==शत्रु का शमन होता है और आयु, आरोग्य, पुण्यमय, सुखमय जीवन में बढ़ोत्तरी होती है। दीपक जलाने के संबंध में कहा जाता हैकि सम संख्या में जलाने से ऊर्जा संवहन निष्क्रिय हो जाता है, जबकि विषम संख्या में जलाने से सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है। दीपक की लौ के संबंध में यह मान्यता है कि इससे आयु में वृद्धि होती है। पश्चिम की ओर लौ रखने से दुख और दक्षिण की ओर लौ रखने से हानि होती है।
c==दीपक क्या है?
दीपक एक प्रकार का पात्र है जिसमें रुई की बाती लगाकर घी या तेल डालकर ज्योति प्रज्वलित की जाती है। वैसे तो पारंपरिक तौर पर मिट्टी का दिया ज्योति प्रज्वलित होता है परन्तु अब धातु के दीपक भी अत्यधिक प्रचलन में हैं।कई बड़ी-बड़ी अंधेरी गुफ़ाओं में इतनी अद्दभुत एवं अत्तयंत ही सुन्दर चित्रकारी मिलती है जिन्हें बनाना बिना दीपक के असंभव था। हमारे भारतवर्ष में दीपक का इतिहास प्रामाणिक रूप से ‘5000 वर्षों’ से भी अधिक पुराना हैं। कोई भी शुभ काम शुरू करने से पहले हिन्दू धर्म में पहले भगवान के सामनेदीपक प्रज्वलित किया जाता है।
d==दीपक जलाने के धार्मिक कारण-
दीपक को ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक माना जाता है। दीपक को पूजा पाठ में विशेष महत्व दिया जाता है। विषम संख्या में आमतौर पर दीपक जलाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। पूजन के समय हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार दीपक जलाना अनिवार्य माना गया है। घी के दीपक से आरती करने पर घर में सुख समृद्धि आती है। घी के दीपक से आरती करने से घर में लक्ष्मी जी का स्थाई रूप से निवास होता है।
e==दीपक जलाने के वैज्ञानिक कारण-
सकारात्मकता का प्रतीक दीपक को माना जाता है एवं दीपक प्रज्वलित करने से दरिद्रता दूर होती है। गाय के दूध से बनाये गये घी में रोगाणुओं को दूर करने की क्षमता अधिक मात्रा में होती है। यह गाय का घी जब भी दीपक में अग्नि के संपर्क से पूरे वातावरण को पवित्र बना देता है एवं प्रदूषण को दूर करता है।
f== यह मंत्र बोलिए दीपक जलाते समय-
“दीपज्योति: परब्रह्म: दीपज्योति: जनार्दन:।
दीपोहरतिमे पापं संध्यादीपं नामोस्तुते।।
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुखं सम्पदां।
शत्रुवृद्धि विनाशं च दीपज्योति: नमोस्तुति।।
g==”जानिए नियम दीपक जलाने के-
1) पूर्व दिशा की तरफ़ दीपक की लौ रखने से आयु में वृद्धि होती है।
2) पश्चिम दिशा की तरफ़ दीपक की लौ रखने से दुख में बढ़ोतरी होती है।
3) उत्तर दिशा की तरफ़ दीपक की लौ रखने से धन लाभ होता है।
4) कभी भी दक्षिण दिशा की तरफ़ दीपक की लौ को ना रखें इससे जन या धन की हानि होती है।
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16>" मंदिर का घंटा" .
"स्टॅटिक डिस्चार्ज यंत्र" .
किसी भी मंदिर में प्रवेश करते समय आरम्भ में ही एक बड़ा घंटा बंधा होता है।
मंदिर में प्रवेश करने वाला प्रत्येक भक्त पहले घंटानाद करता है और मंदिर में प्रवेश करता है।
क्या कारण है इसके पीछे? इसका एक वैज्ञानिक कारण है..
जब हम बृहद घंटे के नीचे खड़े होकर सर ऊँचा करके हाथ उठाकर घंटा बजाते हैं, तब प्रचंड घंटानाद होता है।
यह ध्वनि 330 मीटर प्रति सेकंड के वेग से अपने उद्गम स्थान से दूर जाती है,
ध्वनि की यही शक्ति कंपन के माध्यम से प्रवास करती है।
आप उस वक्त घंटे के नीचे खडे़ होते हैं। अतः ध्वनि का नाद आपके सहस्रारचक्र
(ब्रम्हरंध्र,सिर के ठीक ऊपर) में प्रवेश कर शरीरमार्ग से भूमि में प्रवेश करता है।
यह ध्वनि प्रवास करते समय आपके मन में (मस्तिष्क में) चलने वाले असंख्य विचार, चिंता, तनाव, उदासी, मनोविकार..
इन समस्त नकारात्मक विचारों को अपने साथ ले जाती हैं, और आप निर्विकार अवस्था में परमेश्वर के सामने जाते हैं।
तब आपके भाव शुद्धतापूर्वक परमेश्वर को समर्पित होते हैं।
व घंटे के नाद की तरंगों के अत्यंत तीव्र के आघात से आस-पास के वातावरण के व हमारे शरीर के सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश
होता है, जिससे वातावरण मे शुद्धता रहती है, हमें स्वास्थ्य लाभ होता है।
इसीलिए मंदिर मे प्रवेश करते समय घंटानाद अवश्य करें, और थोड़ा समय घंटे के नीचे खडे़ रह कर घंटानाद का
इसीलिए मंदिर मे प्रवेश करते समय घंटानाद अवश्य करें, और थोड़ा समय घंटे के नीचे खडे़ रह कर घंटानाद का
आनंद अवश्य लें। आप चिंतामुक्त व शुचिर्भूत बनेगें। आप का मस्तिष्क ईश्वर की दिव्य ऊर्जा ग्रहण करने हेतु तैयार होगा।
ईश्वर की दिव्य ऊर्जा व मंदिर गर्भ की दिव्य ऊर्जाशक्ति आपका मस्तिष्क ग्रहण करेगा।
आप प्रसन्न होंगे और शांति मिलेगी, आत्म जागरण,आत्म ज्ञान
और दिव्यजीवन के परम आनंद की अनुभूति के लिये घंटानाद अवश्य करें ।
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17>मुहूर्त
सुख-समृद्धि का शुभ समय कहते हैं किसी भी वस्तु या कार्य को प्रारंभ करने में मुहूर्त देखा जाता है, जिससे मन को बड़ा सुकून मिलता है। यहाँ हम कोई भी बंगला या भवन निर्मित करें या कोई व्यवसाय करने हेतु कोई सुंदर और भव्य इमारत बनाएँ तो सर्वप्रथम हमें 'मुहूर्त' को प्राथमिकता देनी होगी।
शुभ तिथि, वार, माह व नक्षत्रों में कोई इमारत बनाना प्रारंभ करने से न केवल किसी भी परिवार को आर्थिक, सामाजिक, मानसिक वशारीरिक फायदे मिलते हैं वरन उस परिवार के सदस्यों में सुख-शांति व स्वस्थता की प्राप्ति भी होती है।
यहाँ शुभ वार, शुभ महीना, शुभ तिथि, शुभ नक्षत्र भवन निर्मित करते समय इस प्रकार से देखे जाने चाहिए ताकि निर्विघ्न, कोई भी कार्य संपादित हो सके।
🌸शुभ वार :
सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार (गुरुवार), शुक्रवार तथा शनिचर (शनिवार) सर्वाधिक शुभ दिन माने गए हैं।
🌸मंगलवार एवं रविवार को कभी भी भूमि पूजन, गृह निर्माण की शुरुआत, शिलान्यास या गृह प्रवेश नहीं करना चाहिए।
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18>पूजा में कपूर का खास प्रयोग होता है,
,पूजा में कपूर का खास प्रयोग होता है, हवन कुंड को जलाने के लिए सरसों के तेल का तो इस्तेमाल किया ही जाता है, लेकिन शास्त्रों के अनुसार कपूर का विशेष उपयोग माना गया है। किंतु क्या आप जानते हैं कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह बहुत फायदेमंद है।
जी हां... धर्म कार्यों के लिए विशेष रूप से उपयोग होने वाली वस्तु कपूर का प्रयोग कई बीमारियों को काटता है। कपूर त्वचा एवं मांसपेशियों के लिए काफी फायदेमंद है। यदि किसी को जोड़ों का दर्द है, तब भी कपूर का इस्तेमाल किया जाता है।
इसके प्रयोग से कई प्रकार के मरहम बनाए जाते हैं। यदि आप आयुर्वेदिक संदर्भ से जानें, तो कपूर का प्रयोग करके भिन्न-भिन्न मकसद के लिए मरहम तैयार किए जाते हैं। लेकिन आजकल तो ज़माना एलोपैथिक दवाओं का हो गया है... फिर भी आप घर बैठे ही स्वयं भी कपूर के एक प्रयोग से कई बीमारियों को अलविदा कह सकते हैं।
यदि आप निर्देशानुसार इसका प्रयोग करेंगे, तो यह वाकई चमत्कार दिखाएगा। हम यहां आपको कपूर के कुछ उपयोग बताने जा रहे हैं, जिन्हें इस्तेमाल करके आप कई फायदे पा सकते हैं।
पहला फायदा, यदि किसी को नियमित रूप से पेट दर्द की परेशानी रहती है, तो इसका हल कपूर के एक प्रयोग में छिपा है। पेट दर्द होने पर कपूर, अजवाइन और पिपरमेंट यानी कि पुदीने को शर्बत में मिलाकर पीने से दर्द मिनटों में दूर हो जाता है।
यदि किसी को दस्त की समस्या है, तब भी कपूर बेहद उपयोगी है। इसके लिए कपूर, अजवाइन और पिपरमेंट को पानी में डालकर धूप में रख दें। थोड़े-थोड़े समय में इस घोल को हिलाते रहें ताकि यह अपना आकार ले ले। इसके बाद इसकी कुछ बूंदों को चीनी के पानी में मिलाकर दस्त के रोगी को पिलाएं, जल्द ही आराम मिल जाएगा।
अगला फायदा आपकी स्किन यानी कि त्वचा से जुड़ा है। यदि त्वचा पर कोई संक्रमण है तो संक्रमित स्थान पर कपूर को लगाएं, धीरे-धीरे संक्रमण दूर हो जाएगा। इसके अलावा कपूर के त्वचा पर नियमित उपयोग से निखार भी आता है।
इसके अलावा यदि किसी को मांसपेशियों में दिक्कत या फिर जोड़ों का दर्द है, तो कपूर के तेल से मालिश करें। रोगी को चमत्कारी प्रभाव का अनुभव होगा।
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आप सभी को पता है कि मंदिर में जाने से पहले घंटी बजाई जाती है और हिंदू धर्म से जुड़े हुए हर एक मंदिर और धार्मिक स्थल के बाहर बड़े-बड़े घंटे या घंटियां लटकी तो अवश्य देखी होंगी जिन्हें हम मंदिर में जाने से पहले भक्तगण श्रद्धा के साथ बजाते हैं. पर कभी इस बात को आपने नहीं सोचा होगा कि मंदिर में जाने से पहले आखिर क्यों बजाई जाती है घंटी !! हम बताते है आज आपको कि इसका क्या कारण है,
दरअसल प्राचीन काल से ही देवालयों और मंदिरों के बाहर घंटियों को लगाने की शुरुआत हो गई थी. मान्यता है कि जिन धार्मिक स्थानों पर घंटी की आवाज लगातार आती रहती है वहां का वातावरण हमेशा सुखद और पवित्र बना रहता है और गलत या बुरी शक्तियां पूरी तरह दूर रहती हैं.
इसी वजह से सुबह और शाम को जब मंदिर में आरती होती है तो वहा एक लय और विशेष धुन के साथ घंटियां बजाई जाती हैं जिसके कारण वहां पर मौजूद लोगों को शांति और दैवीय शक्ति का अनुभव होता है.
इसमें कुछ लोगों द्वारा यह माना गया है कि घंटी बजाने से मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्तियों में एक चेतना जागृत होती है जिससे भगवान की पूजा और आराधना अधिक फलमय और प्रभावशाली बन जाती है.
पुराणों में कहा गया है कि मंदिर में घंटी बजाने से मानव के कई जन्म के पापो का नाश हो जाते हैं. जब से सृष्टि का प्रारंभ हुआ तब से जो आवाज गूंजी थी वही आवाज आज मंदिर की घंटी बजाने पर भी आती है. उल्लेखनीय है कि यही आवाज ओंकार के उच्चारण से भी बनती या निकलती है.
हर मंदिर के बाहर लगी घंटी को काल का भी प्रतीक माना गया है. कई जगह यह भी लिखा हुआ है कि जब इस संसार पर प्रलय आएगा उस समय भी ऐसा ही नाद यानि घंटी की आवाज गूंजेगी.
आपको पता होगा और देखा भी होगा विवाह आदि कार्यों के समय अग्नि की सात परिक्रमा या चार परिक्रमा करते है, इसका भी विधान है देवी-देवता की, एवं मंदिर की तीन परिक्रमा करने का बहुमूल्य नियम है। तथा विद्यालय में गुरु की एक परिक्रमा का विधान है।
19>==क्यों बजाई जाती है मंदिर में प्रवेश करते समय घंटी ?
आप सभी को पता है कि मंदिर में जाने से पहले घंटी बजाई जाती है और हिंदू धर्म से जुड़े हुए हर एक मंदिर और धार्मिक स्थल के बाहर बड़े-बड़े घंटे या घंटियां लटकी तो अवश्य देखी होंगी जिन्हें हम मंदिर में जाने से पहले भक्तगण श्रद्धा के साथ बजाते हैं. पर कभी इस बात को आपने नहीं सोचा होगा कि मंदिर में जाने से पहले आखिर क्यों बजाई जाती है घंटी !! हम बताते है आज आपको कि इसका क्या कारण है,
दरअसल प्राचीन काल से ही देवालयों और मंदिरों के बाहर घंटियों को लगाने की शुरुआत हो गई थी. मान्यता है कि जिन धार्मिक स्थानों पर घंटी की आवाज लगातार आती रहती है वहां का वातावरण हमेशा सुखद और पवित्र बना रहता है और गलत या बुरी शक्तियां पूरी तरह दूर रहती हैं.
इसी वजह से सुबह और शाम को जब मंदिर में आरती होती है तो वहा एक लय और विशेष धुन के साथ घंटियां बजाई जाती हैं जिसके कारण वहां पर मौजूद लोगों को शांति और दैवीय शक्ति का अनुभव होता है.
इसमें कुछ लोगों द्वारा यह माना गया है कि घंटी बजाने से मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्तियों में एक चेतना जागृत होती है जिससे भगवान की पूजा और आराधना अधिक फलमय और प्रभावशाली बन जाती है.
पुराणों में कहा गया है कि मंदिर में घंटी बजाने से मानव के कई जन्म के पापो का नाश हो जाते हैं. जब से सृष्टि का प्रारंभ हुआ तब से जो आवाज गूंजी थी वही आवाज आज मंदिर की घंटी बजाने पर भी आती है. उल्लेखनीय है कि यही आवाज ओंकार के उच्चारण से भी बनती या निकलती है.
हर मंदिर के बाहर लगी घंटी को काल का भी प्रतीक माना गया है. कई जगह यह भी लिखा हुआ है कि जब इस संसार पर प्रलय आएगा उस समय भी ऐसा ही नाद यानि घंटी की आवाज गूंजेगी.
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20>==आखिर परिक्रमा क्यों करते है देवी-देवताओ की?
आप सभी को पता ही होगा कि हम जब भी मंदिर जाते है तो वह पर देवी देवताओ की पूजा करने के बाद परिक्रमा लगते है। पर यह नहीं जानते होंगे कि यह क्यों लगाई जाती है और इससे हमें क्या मिलेगा. तो आपको बता दे कि हमारे शास्त्रों में है कि परिक्रमा से पुण्य जितना प्राप्त होता है उतना ही देवी-देवता की आराधना करने से प्राप्त हो जाता है।
परिक्रमा का अर्थ है अपनी मानसिक और शारीरिक भावना को अपने देवता अथवा जिसकी भी आप परिक्रमा कर रहे हैं उसके प्रति अपने आपको समर्पण कर देना।
आपको पता होगा और देखा भी होगा विवाह आदि कार्यों के समय अग्नि की सात परिक्रमा या चार परिक्रमा करते है, इसका भी विधान है देवी-देवता की, एवं मंदिर की तीन परिक्रमा करने का बहुमूल्य नियम है। तथा विद्यालय में गुरु की एक परिक्रमा का विधान है।
इसी तरह किसी भी संकल्पित धार्मिक पूजा-पाठ में आचार्य की तीन परिक्रमा का विधान है। और श्राद्ध आदि कर्म में जो भी मार्जन का जानकार, ब्राह्मण तर्पण, गायत्री जप करने वाला हो, उसको भोजन करने के बाद उसकी चार परिक्रमा का भी विधान है।
इसी प्रकार पीपल वृक्ष की 1, 3, 108, 101 परिक्रमा का विधान है। परिक्रमा लगाने से भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी, पितृदेवों को प्रसन्न किया जाता है। वृंदावन की परिक्रमा करने से भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति प्राप्त होती है और आपको इष्ट कार्य की सिद्धि प्राप्त होती है।
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21>सिर पर शिखा रखने के पीछे बहुत बड़ीवैज्ञानिकता है
21>सिर पर शिखा रखने के पीछे बहुत बड़ीवैज्ञानिकता है
जिसे आधुनिक काल में वैज्ञानिकों द्वारा सिद्ध भी किया जा चुका है। आज हम इस लेख में
सिर पर शिखा की वैज्ञानिक आधार पर विवेचना करेंगे जिससे आप जान सके की हज़ारों
वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज ज्ञान विज्ञान में हम से कितना आगे थे।
1. सर्वप्रमुख वैज्ञानिक कारण यह है कि शिखा वाला भाग,
जिसके नीचे सुषुम्ना नाड़ी होती है, कपाल तन्त्र के अन्य खुली जगह (मुण्डन के समय
यह स्थिति उत्पन्न होती है) की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होता है। जिसके खुली होने के कारण
वातावरण से उष्मा व अन्य ब्रह्माण्डिय विद्युत- चुम्बकीय तरंगो का मस्तिष्क से आदान प्रदान
बड़ी ही सरलता से हो जाता है। और इस प्रकार शिखा ना होने की स्थिति मेँ स्थानीय
वातावरण के साथ साथ मस्तिष्क का ताप भी बदलता रहता है। लेकिन वैज्ञानिकतः मस्तिष्क
को सुचारु, सर्वाधिक क्रियाशिल और यथोचित उपयोग के लिए इसके ताप को
नियंन्त्रित रहना अनिवार्य होता है। जो शिखा न होने की स्थिति मेँ एकदम असम्भव है।
क्योँकि शिखा (लगभग गोखुर के बराबर) इस ताप को आसानी से सन्तुलित कर जाती है और उष्मा
की कुचालकता की स्थिति उत्पन्न करके वायुमण्डल से उष्मा के स्वतः आदान प्रदान को
रोक देती है। आज से कई हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज इन सब वैज्ञानिक कारणों से भली भाँति
परिचित थे ।
2. - जिस जगह शिखा (चोटी) रखी जाती है,
यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान भी है। शिखा एक धार्मिक
प्रतीक तो है ही साथ ही मस्तिष्क के संतुलन का भी बहुत बड़ा कारक है। आधुनिक युवा इसे
रुढ़ीवाद मानते हैं लेकिन असल में यह पूर्णत: वैज्ञानिक है। दरअसल, शिखा के कई रूप हैं।
3. - आधुनकि दौर में अब लोग सिर पर
प्रतीकात्मक रूप से छोटी सी चोटी रख लेते हैं लेकिन इसका वास्तविक रूप यह नहीं है। वास्तव में
शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होना चाहिए। इसका सबसे बड़ा कारण यह है
कि हमारे सिर के बीचों बीच सहस्राह चक्र होता है। शरीर में पांच चक्र होते हैं,मूलाधार
चक्र जो रीढ़ के नीचले हिस्से में होता है और आखिरी है सहस्राह चक्र जो सिर पर होता है।
इसका आकार गाय के खुर के बराबर ही माना गया है। शिखा रखने से इस सहस्राह चक्र का
जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है। शिखा का हल्का
दबाव होने से रक्त प्रवाह भी तेज रहता है और मस्तिष्क को इसका लाभ मिलता है।
4.- ऐसा भी है कि मृत्यु के समय आत्मा शरीर के
द्वारों से बाहर निकलती है (मानव शरीर में नौ द्वार बताये गए है दो आँखे, दो कान, दो
नासिका छिद्र, दो नीचे के द्वार, एक मुह )और दसवा द्वार यही शिखा या सहस्राह चक्र जो
सिर में होता है , कहते है यदि प्राण इस चक्र से निकलते है तो साधक की मुक्ति निश्चत है, और
सिर पर शिखा होने के कारण प्राण बड़ी आसानी से निकल जाते हैं,और मृत्यु हो जाने के
बाद भी शरीर में कुछ अवयव ऐसे होते हैं जो आसानी से नहीं निकलते, इसलिए जब व्यक्ति को
मरने पर जलाया जाता है तो सिर अपने आप फटता है और वह अवयव बाहर निकलता है यदि
सिर पर शिखा होती है तो उस अवयव को निकलने की जगह मिल जाती है.
5. शिखा रखने से मनुष्य प्राणायाम,
अष्टांग योग आदि यौगिक क्रियाओं को ठीक-ठीक कर सकता है। शिखा रखने से मनुष्य
की नेत्रज्योति सुरक्षित रहती है। शिखा रखने से मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और
दीर्घायु होता है।
1. सर्वप्रमुख वैज्ञानिक कारण यह है कि शिखा वाला भाग,
जिसके नीचे सुषुम्ना नाड़ी होती है, कपाल तन्त्र के अन्य खुली जगह (मुण्डन के समय
यह स्थिति उत्पन्न होती है) की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होता है। जिसके खुली होने के कारण
वातावरण से उष्मा व अन्य ब्रह्माण्डिय विद्युत- चुम्बकीय तरंगो का मस्तिष्क से आदान प्रदान
बड़ी ही सरलता से हो जाता है। और इस प्रकार शिखा ना होने की स्थिति मेँ स्थानीय
वातावरण के साथ साथ मस्तिष्क का ताप भी बदलता रहता है। लेकिन वैज्ञानिकतः मस्तिष्क
को सुचारु, सर्वाधिक क्रियाशिल और यथोचित उपयोग के लिए इसके ताप को
नियंन्त्रित रहना अनिवार्य होता है। जो शिखा न होने की स्थिति मेँ एकदम असम्भव है।
क्योँकि शिखा (लगभग गोखुर के बराबर) इस ताप को आसानी से सन्तुलित कर जाती है और उष्मा
की कुचालकता की स्थिति उत्पन्न करके वायुमण्डल से उष्मा के स्वतः आदान प्रदान को
रोक देती है। आज से कई हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज इन सब वैज्ञानिक कारणों से भली भाँति
परिचित थे ।
2. - जिस जगह शिखा (चोटी) रखी जाती है,
यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान भी है। शिखा एक धार्मिक
प्रतीक तो है ही साथ ही मस्तिष्क के संतुलन का भी बहुत बड़ा कारक है। आधुनिक युवा इसे
रुढ़ीवाद मानते हैं लेकिन असल में यह पूर्णत: वैज्ञानिक है। दरअसल, शिखा के कई रूप हैं।
3. - आधुनकि दौर में अब लोग सिर पर
प्रतीकात्मक रूप से छोटी सी चोटी रख लेते हैं लेकिन इसका वास्तविक रूप यह नहीं है। वास्तव में
शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होना चाहिए। इसका सबसे बड़ा कारण यह है
कि हमारे सिर के बीचों बीच सहस्राह चक्र होता है। शरीर में पांच चक्र होते हैं,मूलाधार
चक्र जो रीढ़ के नीचले हिस्से में होता है और आखिरी है सहस्राह चक्र जो सिर पर होता है।
इसका आकार गाय के खुर के बराबर ही माना गया है। शिखा रखने से इस सहस्राह चक्र का
जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है। शिखा का हल्का
दबाव होने से रक्त प्रवाह भी तेज रहता है और मस्तिष्क को इसका लाभ मिलता है।
4.- ऐसा भी है कि मृत्यु के समय आत्मा शरीर के
द्वारों से बाहर निकलती है (मानव शरीर में नौ द्वार बताये गए है दो आँखे, दो कान, दो
नासिका छिद्र, दो नीचे के द्वार, एक मुह )और दसवा द्वार यही शिखा या सहस्राह चक्र जो
सिर में होता है , कहते है यदि प्राण इस चक्र से निकलते है तो साधक की मुक्ति निश्चत है, और
सिर पर शिखा होने के कारण प्राण बड़ी आसानी से निकल जाते हैं,और मृत्यु हो जाने के
बाद भी शरीर में कुछ अवयव ऐसे होते हैं जो आसानी से नहीं निकलते, इसलिए जब व्यक्ति को
मरने पर जलाया जाता है तो सिर अपने आप फटता है और वह अवयव बाहर निकलता है यदि
सिर पर शिखा होती है तो उस अवयव को निकलने की जगह मिल जाती है.
5. शिखा रखने से मनुष्य प्राणायाम,
अष्टांग योग आदि यौगिक क्रियाओं को ठीक-ठीक कर सकता है। शिखा रखने से मनुष्य
की नेत्रज्योति सुरक्षित रहती है। शिखा रखने से मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और
दीर्घायु होता है।
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