Monday, December 21, 2015

4>ভারতীয় পরম্পরা ------( 2 )=1 to 6



4>Myc=Post=6>***ভারতীয় পরম্পরা Part=( 2 )***(1 to 6 )

1>“स्वस्तिक” का प्रयोग क्योँ और क्या है इसकी वैज्ञानिकता?
        (a)”अर्थ और निहित विश्वबन्धुत्व एवं कल्याण”:-
        (b)वैज्ञानिकता और शोध:-
        (c)मानक दर्शन:-
        (d)प्राचीन काल में राजा महाराज द्वारा किलों का निर्माण 
        (e)निष्कर्ष:-
2>जानिए किन 15 बातों की निशानी है तिलक -संस्कृति।
3>जानिए सूर्य पर जल चढ़ाने का वैज्ञानिक कारण।
4>जानिए हिन्दू धर्म के सोलह संस्कार – संस्कृति
5>ধর্মীয় রীতি কুসংস্কার না বিজ্ঞান?
6>हिंदू धर्म में किसी के मरने और जन्म लेने के बाद क्यों मनाया जाता है सूतक
7>हिंदू परम्पराओं से जुड़े वैज्ञानिक तर्क:
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ভারতীয় পরম্পরা ------( 2 )

1>“स्वस्तिक” का प्रयोग क्योँ और क्या है इसकी वैज्ञानिकता?

सनातन धर्म में स्वास्तिक का प्रयोग हर त्यौहार पर होता है। दीपावली हो या होली सभी इस को बनातें है और इसकी पूजा करते हैं। स्वस्तिक चिन्ह परमात्मा को भी बहुत प्रिय है। आज हम आपको इस अनमोल चिन्ह का प्रयोग और वैज्ञानिकता बताने वाले हैं, ध्यान से पढ़े।

(a)”अर्थ और निहित विश्वबन्धुत्व एवं कल्याण”:-

स्वस्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। इसीलिए किसी भी शुभकार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्व अंकित करके उसका पूजन किया जाता है। स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। ‘सु’ का अर्थ अच्छा, ‘अस’ का अर्थ ‘सत्ता’ या ‘अस्तित्व’ और ‘क’ का अर्थ ‘कर्त्ता’ या करने वाले से है। इस प्रकार ‘स्वस्तिक’ शब्द का अर्थ हुआ ‘अच्छा’ या ‘मंगल’ करने वाला। ‘अमरकोश’ में भी ‘स्वस्तिक’ का अर्थ आशीर्वाद, मंगल या पुण्यकार्य करना लिखा है। अमरकोश के शब्द हैं – ‘स्वस्तिक, सर्वतोऋद्ध’ अर्थात् ‘सभी दिशाओं में सबका कल्याण हो।’ इस प्रकार ‘स्वस्तिक’ शब्द में किसी व्यक्ति या जाति विशेष का नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व के कल्याण या ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना निहित है।

‘स्वस्तिक’ शब्द की निरुक्ति है – ‘स्वस्तिक क्षेम कायति, इति स्वस्तिकः’ अर्थात् ‘कुशलक्षेम या कल्याण का प्रतीक ही स्वस्तिक है।

(b)वैज्ञानिकता और शोध:-

यदि आधुनिक दृ्ष्टिकोण से देखा जाए तो अब तो विज्ञान भी स्वस्तिक, इत्यादि माँगलिक चिन्हों की महता स्वीकार करने लगा है । आधुनिक विज्ञानने वातावरण तथा किसी भी जीवित वस्तु,पदार्थ इत्यादि के उर्जा को मापने के लिए विभिन्न उपकरणों का आविष्कार किया है ओर इस उर्जा मापने की इकाई को नाम दिया है—“बोविस” । मृत मानव शरीर का बोविस शून्य माना गया है और मानव में औसत ऊर्जा क्षेत्र 6,500 बोविस पाया गया है। स्वस्तिक में इस उर्जा का स्तर 1,00,0000 बोविस है। यदि इसे उल्टा बना दिया जाएतो यह प्रतिकूल ऊर्जा को इसी अनुपात में बढ़ाता है। इसी स्वस्तिक को थोड़ा टेड़ा बना देने पर इसकी ऊर्जा मात्र 1,000 बोविस रह जाती है। इसके साथ ही विभिन्न धार्मिक स्थलों यथा मन्दिर,गुरूद्वारा इत्यादि का ऊर्जा स्तर काफी उंचा मापा गया है जिसके चलते वहां जाने वालों को शांति का अनुभव और अपनी समस्याओं,कष्टों से मुक्ति हेतु मन में नवीनआशा का संचारहोता है। यही नहीं हमारे घरों,मन्दिरों,पूजा पाठ इत्यादि में प्रयोग किए जाने वाले अन्य मांगलिक चिन्हों यथा ॐ इत्यादि में भी इसी तरहकी ऊर्जा समाई है। जिसका लाभ हमें जाने अनजाने में मिलता ही रहता हैं।

(c)मानक दर्शन:-

इसके अनुसार स्वस्तिक दक्षिणोन्मुख दाहिने हाथ की दिशा (घडी की सूई चलने की दिशा) का संकेत तथा वामोन्मुख बाईं दिशा (उसके विपरीत) के प्रतीक हैं। दोनों दिशाओंके संकेत स्वरूप दो प्रकार के स्वस्तिक स्त्री एवं पुरूष के प्रतीक के रूप मे भी मान्य हैं । किन्तु जहाँ दाईं ओर मुडी भुजा वाला स्वस्तिक शुभ एवं सौभाग्यवर्द्धक हैं ,वहीं उल्टा (वामावर्त) स्वस्तिक को अमांगलिक, हानिकारक माना गया है।

(d)प्राचीन काल में राजा महाराज द्वारा किलों का निर्माण स्वस्तिक के आकार में किया जाता रहा हैताकि किले की सुरक्षा अभेद्य बनी रहे। प्राचीन पारम्परिक तरीके से निर्मित किलों में शत्रु द्वारा एक द्वार पर ही सफलता अर्जित करने के पश्चात सेना द्वारा किले में प्रवेश कर उसके अधिकाँश भाग अथवा सम्पूर्ण किले पर अधिकार करने के बाद नर संहार होता रहाहै । परन्तु स्वस्तिक नुमा द्वारों के निर्माण के कारण शत्रु सेना को एक द्वार पर यदि सफलता मिल भी जाती थी तो बाकी के तीनों द्वार सुरक्षित रहते थे। ऎसी मजबूत एवं दूरगामी व्यवस्थाओं के कारण शत्रु के लिए किले के सभी भागों को एक साथ जीतना संभव नहीं होताथा । यहाँ स्वस्तिक किला/दुर्ग निर्माण के परिपेक्ष्य में “सु वास्तु” था । स्वस्तिक का महत्व सभी धर्मों में बताया गया है। इसे विभिन्न देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। चार हजार साल पहले सिंधु घाटी की सभ्यताओंमें भी स्वस्तिक के निशान मिलते हैं। बौद्ध धर्म में स्वस्तिक का आकार गौतमबुद्ध के हृदय स्थल पर दिखाया गया है।मध्य एशिया के देशों में स्वस्तिक चिन्ह मांगलिक एवं सौभाग्य सूचक माना जाता रहा है। नेपाल में हेरंब , मिस्रमें एक्टोन तथा बर्मा में महा पियेन्ने के नाम से पूजित हैं। आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैण्ड के मावरी आदिवासियों द्वारा आदिकाल से स्वस्तिक को मंगल प्रतीक के रूप में प्रयुक्त किया जाता रहा हैं।

(e)निष्कर्ष:-

हिन्दू धर्म जितना विशाल और गहन है,उसकी मान्यताएं और प्रक्रियाएं भी उतनी ही विशद और विस्तृ्त हैं । आज हम देखते हैं कि जागरूकता की अधिकता के चलते बहुत से व्यक्ति विशेष रूप से पश्चिमी सभ्यता से अति प्रभावित लोग, अपने धर्म से संबंधित मान्यताओं,रीति- रिवाजों एवं कर्मकांडों पर शंका व्यक्त करने लगे हैं ।बहुत ही बातों को बिना जाने-समझे सिर्फ उन्हे ढकोसला एवं अनावश्यक समझने लगे हैं । जब कि यदि वे इन सब चीजों,प्रक्रियाओं के बारें में गहराई से मनन करें तो पाएंगें कि हिन्दू धर्म विश्व का एकमात्र ऎसा धर्म है जो कि अपने प्रत्येक कर्म, संस्कार और परम्परा में पूर्णत: वैज्ञानिकता समेटे हुए है। साभार
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2>जानिए किन 15 बातों की निशानी है तिलक -संस्कृति।

तिलक लगाना सनातन संस्कृति का एक प्रचीन हिस्सा रहा है। हमने अपने पिछले लेख में तिलक का महत्व बताया था । आब हम आपको औऱ भी सहज भाषा में उन बातों के बारे में बतायेंगे जिनसे तिलक लगाने से शुभ होता है।

1.खुशी के अवसर की तिलक देने की परम्परा चली आती है।

2.तिलक भाग्य की निशानी है। सौभाग्यशाली कि निशानी है। तिलक लगाने से हम परमात्मा के करीब होते हैं इसलिए हमारे भाग्य का उदय होना निश्चित होता है।

3.नकारात्मक ऊर्जा को भगाता है। जब ललाट पर तिलक शुशोभित होता है तो हमारे मन में सकारात्मक्ता का प्रवाह होता है। हमे हर समय खुशी का अनुभव होता है।

4.संकट को दूर करने कि निशानी है। संकट के समय पूजारी लोग तिलक लगाते है।

5.सफलता प्राप्त करने के लिए तिलक देने की परम्परा है। चाहे किसी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करे। घर से रवाना होने से पहले तिलक अवश्य देते हैं।

6.तिलक पवित्रता की निशानी है। किसी की बुरी नजर नहीं लगे। इसलिए ही शादी के बाद बहनें तिलक अर्थात बिन्दी लगाती है।

7.बुरी नजर नहीं लगे इस के लिए मातायें छोटे बच्चों को मस्तक पर काला तिलक लगा देती है। ताकि कोई टोक नहीं हो जाये। गाँव में आज भी यह परम्परा प्रचलित है। यहां तक कि मुझ पर भी बालपन पर नजर उतराने के लिए काला टीका लगाया गया था।

8.युद्ध के मैदान में जाते समय बहन अपने भाई को तथा माँ अपने बच्चे को विजयी होने का तिलक देकर घर से रवाना करती है।

9.तीसरे नैत्र की निशानी भी तिलक देते है। भृकुटी के मध्य में आज्ञा चक्र होता है। योगी लोग अपना ध्यान यहाँ पर केद्रित करते है।

10.तिलक देना हिन्दू संस्कृति अर्थात देवी देवता धर्म की मुख्य तथा सर्वोच्च परम्परा है। तिलक लगाना ही हिन्दू धर्म की मुख्य पहचान है। सनातन धर्म की यह बहुत प्राचीन परम्परा है।

11.सुहाग की निशानी की तिलक देना है सुहागिन मातायें बहनें अपने सुहागिन होने की निशानी भी तिलक देती हैं।

12.आत्म स्मृति की निशानी भी चन्दन का तिलक मन्दिर में देते है। हम आत्मा भाई -भाई है इस की निशानी भी तिलक देते है।

13.अपनी चेतना की जागृति के लिए, मन की एकाग्रता को बढ़ाने के लिए भक्ति मार्ग में तिलक लगाते है।

14.तिलक धारण करने में अनामिका अंगुली मानसिक शांति प्रदान करती है। मध्यमा अंगुली मनुष्य की आयु वृद्धि करती है। अंगूठा प्रभाव, ख्याति और आरोग्य प्रदान करता है, इसलिए विजय तिलक अंगूठे से ही करने की परम्परा है।

15.मस्तिष्क में सेराटोनिन व बीटाएंडोरफिन नामक रसायनों का संतुलन होता है। इनसे मेघाशक्ति बढ़ती है तथा मानसिक थकावट के विकार नहीं होते हैं। मस्तक पर चंदन का तिलक सुगंध के साथ-साथ शीतलता देता है। ईश्वर को चंदन अर्पण करने का भाव यह है कि हमारा जीवन आपकी कृपा रूपी सुगंध से भर जाए एवं हम व्यवहार से शीतल रहें अर्थात् ठंडे दिमाग से कार्य करें। अधिकतर उत्तेजना में कार्य बिगड़ता है और चंदन लगाने से उत्तेजना नियंत्रित होती है। चंदन का तिलक लगाने से दिमाग में शांति, तरावट एवं शीतलता बनी रहती है।

हम अपने पुर्व लेख में तिलक का वैज्ञानिक महत्व बता चुके हैं। इस लेख में हम आपके लिए कुछ महत्वपुर्ण तिलक की जानकारियां दे रहे थे। यह लेख सनातान संस्कृति के एक ब्लाग से लिया गया है। इसे साझा करके आप तक पहुँचाना ही हमारा धर्म है।

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3>जानिए सूर्य पर जल चढ़ाने का वैज्ञानिक कारण।

सनातन संस्कृति अत्यंत प्रचीन संस्कृति है, माना जाता है कि हमारे पुर्व के श्रषि-मुनि खुद शोध किया करते थे। उन्हीं शोधो को फिर लिखकर मानव जीवन को बताते थे। वेद, पुराण, और सभी ग्रंथ इसी का एक सार हैं। मनुष्य अपने कर्तव्यों को कभी ना छोड़े इसलिए इन ग्रंथो का निर्माण किया गया था। आज हमारे यही ग्रंथ हमें सदबुद्धि प्रदान करते हैं, और हमें अपना निहित कर्तव्य बताते हैं। वेदों में एक और बात कही गई है कि हमें हर रोज प्रातकाल: सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए। हम सभी यह करते हैं पर बहुत से कम लोग ही इसका वैज्ञानिक कारण जानते होंगे। इसलिए आज फिर हम आपको इसका वैज्ञानिक कारण बताने जा रहे हैं।

सूर्य हमारे लिए वैज्ञानिक दृष्टि में एक तारा है जो हमेशा अग्नि से दधकता रहता है। सूर्य के आने वाले प्रकाश से ही हमारा दिन शुरू होता है, सूर्य हमारे लिए बहुत महत्व रखता है , हर प्राणी औऱ प्रजाति को सूर्य की किसी ना किसी रूप में आवश्यकता होती है।

पेंड-पौधे सूर्य से अपना भोजन पाते हैं, इंसान सूर्य की रोशनी में प्रफुल्लित होकर नये दिन का अारंभ करता है। सभी प्रकार के काम सूर्य से ही होते हैं। सूर्य का प्रकाश हमारे लिए इतना महत्व रखता है कि बिना इसके हमारी पृथ्वी की कल्पना भी नहीं करी जा सकती है। प्राचीन मुनियों ने इसी दान को ध्यान में रखते हुए सूर्य को जल चढ़ाने की विधि आरंभ की थी।
सूर्य पर जल चढाने का कारण(वैज्ञानिक तर्क)

अगर सूर्य को जल देने की बात करें तो इसके पीछे छिपा है रंगो का विज्ञान।मानव शरीर में रंगो का संतुलन बिगड़ने से भी कई रोगों के शिकार होने का खतरा होता है।

सुबह के समय सूर्यदेव को जल चढाते समय शरीर पर पड़ने वाले प्रकाश से ये रंग संतुलित हो जाते हैं। (प्रिज़्म के सिद्दांत से) जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति बढ़ जाती है।

इसके आलावा सूर्य नमस्कार की योगमुद्रा होने से एकाग्रता बढ़ती है। मेरुदंड (रीढ़ की हड्डी) की कई बीमारी सही होती हैं।आँखों की कई समस्या दूर होती हैं।

सूर्य की रौशनी से मिलने वाला विटामिन D शरीर में पूरा होता है। आपका मुखमंडल ओजस्वी होता है त्वचा के रोग कम होते हैं। प्राकृतिक संतुलन भी बनता है।(यही जल वाष्पीकृत हो कर, वर्षाजल का अमृत बनकर वापस मिलता है)

इन्ही कारणों से हम सूर्य देव का जल चढ़ाकर अभिनंदन करते हैं , और वह हमें आशीर्वाद देते हैं।
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4>जानिए हिन्दू धर्म के सोलह संस्कार – संस्कृति

संस्कार मनुष्यों के लिए परम आवश्यक होते हैं। संस्कार ही एक साधारण मनुष्य तॉशास्त्रों के अनुसार मनुष्य जीवन के लिए कुछ आवश्यक नियम बनाए गए हैं जिनका पालन करना हमारे लिए आवश्यक माना गया है। मनुष्य जीवन में हर व्यक्ति को अनिवार्य रूप से सोलह संस्कारों का पालन करना चाहिए। यह संस्कार व्यक्ति के जन्म से मृत्यु तक अलग-अलग समय पर किए जाते हैं।

प्राचीन काल से इन सोलह संस्कारों के निर्वहन की परंपरा चली आ रही है। हर संस्कार का अपना अलग महत्व है। जो व्यक्ति इन सोलह संस्कारों का निर्वहन नहीं करता है उसका जीवन अधूरा ही माना जाता है।

ये सोलह संस्कार क्या-क्या हैं –

1.गर्भाधान संस्कार ( Garbhaadhan Sanskar) – यह ऐसा संस्कार है जिससे हमें योग्य, गुणवान और आदर्श संतान प्राप्त होती है।

शास्त्रों में मनचाही संतान प्राप्त के लिए गर्भधारण संस्कार किया जाता है। इसी संस्कार से वंश वृद्धि होती है।

2.पुंसवन संस्कार (Punsavana Sanskar) – गर्भस्थ शिशु के बौद्धिक और मानसिक विकास के लिए यह संस्कार किया जाता है।

पुंसवन संस्कार के प्रमुख लाभ ये है कि इससे स्वस्थ, सुंदर गुणवान संतान की प्राप्ति होती है।

3.सीमन्तोन्नयन संस्कार ( Simanta Sanskar) – यह संस्कार गर्भ के चौथे, छठवें और आठवें महीने में किया जाता है। इस समय गर्भ में पल रहा बच्चा सीखने के काबिल हो जाता है। उसमें अच्छे गुण, स्वभाव और कर्म का ज्ञान आए, इसके लिए मां उसी प्रकार आचार-विचार, रहन-सहन और व्यवहार करती है।

4.जातकर्म संस्कार (Jaat-Karm Sansakar) – बालक का जन्म होते ही इस संस्कार को करने से शिशु के कई प्रकार के दोष दूर होते हैं। इसके अंतर्गत शिशु को शहद और घी चटाया जाता है साथ ही वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है ताकि बच्चा स्वस्थ और दीर्घायु हो।

5.नामकरण संस्कार (Naamkaran Sanskar)– शिशु के जन्म के बाद 11वें दिन नामकरण संस्कार किया जाता है।
ब्राह्मण द्वारा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बच्चे का नाम तय किया जाता है।

6.निष्क्रमण संस्कार (Nishkraman Sanskar) – निष्क्रमण का अर्थ है बाहर निकालना। जन्म के चौथे महीने में यह संस्कार किया जाता है। हमारा शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश जिन्हें पंचभूत कहा जाता है, से बना है। इसलिए पिता इन देवताओं से बच्चे के कल्याण की प्रार्थना करते हैं। साथ ही कामना करते हैं कि शिशु दीर्घायु रहे और स्वस्थ रहे।

7.अन्नप्राशन संस्कार ( Annaprashana) – यह संस्कार बच्चे के दांत निकलने के समय अर्थात 6-7 महीने की उम्र में किया जाता है।इस संस्कार के बाद बच्चे को अन्न खिलाने की शुरुआत हो जाती है।

8.मुंडन संस्कार ( Mundan Sanskar)– जब शिशु की आयु एक वर्ष हो जाती है तब या तीन वर्ष की आयु में या पांचवे या सातवे वर्ष की आयु में बच्चे के बाल उतारे जाते हैं जिसे मुंडन संस्कार कहा जाता है। इस संस्कार से बच्चे का सिर मजबूत होता है तथा बुद्धि तेज होती है। साथ ही शिशु के बालों में चिपके कीटाणु नष्ट होते हैं जिससे शिशु को स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।

9.विद्या आरंभ संस्कार ( Vidhya Arambha Sanskar )– इस संस्कार के माध्यम से शिशु को उचित शिक्षा दी जाती है। शिशु को शिक्षा के प्रारंभिक स्तर से परिचित कराया जाता है।

10.कर्णवेध संस्कार ( Karnavedh Sanskar) – इस संस्कार में कान छेदे जाते है । इसके दो कारण हैं, एक- आभूषण पहनने के लिए।
दूसरा- कान छेदने से एक्यूपंक्चर होता है। इससे मस्तिष्क तक जाने वाली नसों में रक्त का प्रवाह ठीक होता है। इससे श्रवण शक्ति बढ़ती है और कई रोगों की रोकथाम हो जाती है।

11.उपनयन या यज्ञोपवित संस्कार (Yagyopaveet Sanskar) – उप यानी पास और नयन यानी ले जाना। गुरु के पास ले जाने का अर्थ है उपनयन संस्कार। आज भी यह परंपरा है। जनेऊ यानि यज्ञोपवित में तीन सूत्र होते हैं। ये तीन देवता- ब्रह्मा, विष्णु, महेश के प्रतीक हैं। इस संस्कार से शिशु को बल, ऊर्जा और तेज प्राप्त होता है।

12.वेदारंभ संस्कार (Vedaramba Sanskar) – यह संस्कार व्यक्ति के पाठन और पढ़न के लिए ही है। इसके अंतर्गत व्यक्ति को वेदों का ज्ञान दिया जाता है।

13.केशांत संस्कार (Keshant Sanskar) – केशांत संस्कार अर्थ है केश यानी बालों का अंत करना, उन्हें समाप्त करना। विद्या अध्ययन से पूर्व भी केशांत किया जाता है। मान्यता है गर्भ से बाहर आने के बाद बालक के सिर पर माता-पिता के दिए बाल ही रहते हैं।
इन्हें काटने से शुद्धि होती है। शिक्षा प्राप्ति के पहले शुद्धि जरूरी है, ताकि मस्तिष्क ठीक दिशा में काम करें। पुराने में गुरुकुल से शिक्षा प्राप्ति के बाद केशांत संस्कार किया जाता था।

14.समावर्तन संस्कार (Samavartan Sanskar)– समावर्तन संस्कार अर्थ है फिर से लौटना। आश्रम या गुरुकुल से शिक्षा प्राप्ति के बाद व्यक्ति को फिर से समाज में लाने के लिए यह संस्कार किया जाता था। इसका आशय है ब्रह्मचारी व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक रूप से जीवन के संघर्षों के लिए तैयार किया जाना।

15.विवाह संस्कार ( Vivah Sanskar) – यह धर्म का साधन है। विवाह संस्कार सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। इसके अंतर्गत वर और वधू दोनों साथ रहकर धर्म के पालन का संकल्प लेते हुए विवाह करते हैं। विवाह के द्वारा सृष्टि के विकास में योगदान दिया जाता है। इसी संस्कार से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है।

16.अंत्येष्टी संस्कार (Antyesti Sanskar)– अंत्येष्टि संस्कार इसका अर्थ है अंतिम संस्कार। शास्त्रों के अनुसार इंसान की मृत्यु यानि देह त्याग के बाद मृत शरीर अग्नि को समर्पित किया जाता है। आज भी शवयात्रा के आगे घर से अग्नि जलाकर ले जाई जाती है।
इसी से चिता जलाई जाती है। आशय है विवाह के बाद व्यक्ति ने जो अग्नि घर में जलाई थी उसी से उसके अंतिम यज्ञ कीअग्नि जलाई जाती है।
कहने का एक तात्पर्य यह भी है कि सनातन धर्म एक मात्र ऐसा धर्म है जिसमें व्यक्ति को जन्म से लेकर मरण तक संस्कारो पर चलना ही सिखाया जाता है। सनातन धर्म अत्यंत प्रचीन होते हुए भी आज भी वैज्ञानितका से भरपूर है।
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5>ধর্মীয় রীতি কুসংস্কার না বিজ্ঞান?

মন্দিরে ঘণ্টা বাজানো থেকে শুরু করে নদীতে কয়েন ফেলা, এমনকি নমস্কার করা, এ সবই আমরা হিন্দুধর্মের রীতি মেনে করে থাকি। অনেকে হিন্দু ধর্মের রীতি..

ধর্মীয় রীতি কুসংস্কার না বিজ্ঞান?

মন্দিরে ঘণ্টা বাজানো থেকে শুরু করে নদীতে কয়েন ফেলা, এমনকি নমস্কার করা, এ সবই আমরা হিন্দুধর্মের রীতি মেনে করে থাকি। অনেকে হিন্দু ধর্মের রীতিনীতিকে কুসংস্কার বলে মনে করেন। কিন্তু আপনারা কী জানেন হিন্দু ধর্মের এই সমস্ত প্রথা বা রীতিনীতির বৈজ্ঞানিক ভিত্তি রয়েছে? আর তাই যুগ-যুগ ধরে এই ঐতিহ্য পালিত হচ্ছে। কী এই ঐতিহ্য বা প্রথাগুলি, যার পিছনে বৈজ্ঞানিক কারণ রয়েছে? আজ প্রথম পর্ব।

নদীতে কয়েন ফেলা: আমাদের ধারণা, নদীতে কয়েন ফেললে, তা আমাদের জন্য গুড লাক নিয়ে আসবে। কিন্তু এর একটি বিজ্ঞানভিত্তিক কারণও রয়েছে। প্রাচীন কালে তামার মুদ্রা প্রচলিত ছিল, আজকের যুগের মতো স্টেইনলেস স্টিলের মুদ্রা নয়। মানবশরীরের জন্য তামা খুব উপকারি ধাতু। জলের মাধ্যমে আমাদের শরীরে যাতে পর্যাপ্ত পরিমাণে তামা যায়, তা নিশ্চিত করার জন্যই আমাদের পূর্বপুরুষরা এই প্রথা চালু করেন। কারণ, নদীই পানীয় জলের একমাত্র উত্‍‌স।

হাতজোড় করে নমস্কার করা: কাউকে অভ্যর্থনা জানানোর জন্য আমরা সাধারণত হাতজোড় করে নমস্কার করে থাকি। এই প্রথার প্রচলিত ব্যাখ্যা হল, কাউকে নমস্কার করার অর্থ তাঁকে সম্মান প্রদর্শন। কিন্তু বিজ্ঞান বলছে, হাতজোড় করার ফলে আমাদের দুই হাতের পাঁচটি আঙুলের ডগা পরস্পরের সঙ্গে মিলে যায়। যার ফলে আমাদের চোখ, কান এবং মস্তিষ্কের প্রেশার পয়েন্টে চাপ পড়ে। এই চাপই ওই ব্যক্তিকে দীর্ঘ দিনের জন্য মনে রাখতে আমাদের সাহায্য করে।

পায়ের আঙুলে আংটি পড়া: বিবাহিত মহিলারা হিন্দু প্রথা মেনে পায়ের আঙুলে আংটি পড়লেও, এর পিছনে বিজ্ঞান রয়েছে। সাধারণত পায়ের দ্বিতীয় আঙুলে এই আংটি পড়া হয়। ওই দ্বিতীয় আঙুলের একটি স্নায়ু জরায়ু হয়ে হৃদযন্ত্রের সঙ্গে যুক্ত। এই আঙুলে আংটি পড়লে, তা জরায়ুকে সুস্থ, সবল রাখে। এর ফলে রক্তপ্রবাহ নিয়ন্ত্রিত হয় এবং নিয়মিত মাসিক হয়। রুপো ভালো কনডাক্টর হওয়ায় তা পৃথিবী থেকে পোলার এনার্জি আত্মসাত্‍‌ করে শরীরে ছড়িয়ে দেয়।

তিলক করা: কপালে, দু'টি ভুরুর মাঝখানে তিলক করি। দুই ভুরুর মাঝখানের অংশে মানবশরীরের গুরুত্বপূর্ণ স্নায়ু বর্তমান। মনে করা হয়, তিলক শক্তি অপচয় রোধ করে। লাল রঙের কুমকুম মানবশরীরে শক্তি বজায় রাখে এবং মনোযোগের বিভিন্ন স্তর নিয়ন্ত্রণ করে। কপালে কুমকুম লাগানোর সময়ে ভুরুর মাধখানের অংশ এবং আদ্য-চক্রে চাপ পড়ে। এর ফলে মুখের পেশিতে রক্ত চলাচল সুচারু ভাবে সম্পন্ন হয়।

মন্দিরে ঘণ্টা বাজাই কেন? মন্দিরের গর্ভগৃহে ঢোকার আগে আমরা ঘণ্টা বাজাই। আগামা শাস্ত্রে বলা গয়েছে, ঘণ্টাধ্বনি সেখান থেকে অশুভ শক্তিকে দূরে রাখে এবং সেই ধ্বনি ঈশ্বরের প্রিয়। কিন্তু বিজ্ঞান বলছে, ঘণ্টাধ্বনি আমাদের মস্তিষ্ক পরিষ্কার করে। ঘণ্টা বাজানোর সঙ্গে সঙ্গে আমাদের মস্তিষ্কের ডান এবং বাম অংশ এক হয়ে যায়। ইকো মোডে ৭ সেকেন্ড পর্যন্ত ঘণ্টাধ্বনি বজায় থাকে। এই সাত সেকেন্ডে আমাদের শরীরের সাতটি আরোগ্য কেন্দ্র সক্রিয় হয়। যার ফলে আমাদের মস্তিষ্কে বর্তমান সমস্ত নেগেটিভ চিন্তাধারা মুছে যায় এবং ঈশ্বর আরাধনায় আমাদের সম্পূর্ণভাবে মনোযোগী করে তোলে।

বছরে দু'বার নবরাত্রি কেন হয়? এই ২ মাসে ঋতু পরিবর্তন হয়। আবার এই দুই মাসের খাদ্যাভ্যাসও একে অপরের থেকে আলাদা। পরিবর্তিত ঋতুর সঙ্গে মানিয়ে নিতে সময়ের প্রয়োজন। নবরাত্রি মানবশরীরকে সেই সময় দেয়, যাতে মানুষ পরিবর্তিত ঋতুর সঙ্গে নিজেকে মানিয়ে নিতে পারে। এই ৯ দিনের উপবাসে মানুষ অত্যধিক পরিমাণে নুন বা চিনি খায় না। যা মানুষের শরীর পরিষ্কার করে দেয়। এর ফলে মানুষের পজিটিভ এনার্জি, আত্মবিশ্বাস এবং আত্মনির্ধারণ ক্ষমতা বৃদ্ধি পায়। অবশেষে ব্যক্তি পরিবর্তিত ঋতুর চ্যালেঞ্জের মুখোমুখি হওয়ার জন্য প্রস্তুত হয়।

তুলসি পুজো কেন করি? হিন্দু ধর্মে তুলসিকে মা মনে করা হয়। বৈদিক যুগের সাধুরা তুলসির উপযোগিতা সম্পর্কে সচেতন ছিলেন, তাই তাঁরা সকলের মনে ধারণা গড়ে তোলেন যে তুলসি ঈশ্বরসম এবং সমগ্র সমাজের কাছে তুলসি সংরক্ষণের বার্তা পৌঁছে দেন। তুলসি মানবজাতির জন্য সঞ্জিবনী। তুলসির একাধিক ঔষধি গুণ রয়েছে। এটি অসাধারণ অ্যান্টিবায়োটিক। চা বা অন্য কোনও ভাবে তুলসি খেলে তা মানবশরীরের অনাক্রম্যতা বৃদ্ধি করে এবং মানুষকে রোগমুক্ত করে। এমনকি আয়ুও বাড়িয়ে তোলে। বাড়িতে তুলসি গাছ রাখলে, তা কীটপতঙ্গ বা মশা ঘরে ঢুকতে দেয় না। কথিত আছে, সাপ তুলসি গাছের ধারে-কাছে যেতে সাহস করে না। হয়তো তাই, প্রাচীন কালে বাড়ির সামনে তুলসি গাছ লাগানো থাকত।

অশ্বত্থ গাছের পুজো কেন করি? সাধারণ মানুষের কাছে অশ্বত্থ গাছের কোনও উপকারিতা নেই। ছায়া প্রদান করা ছাড়া এই গাছটি না সুস্বাদু ফল দেয় আর না এর কাঠ এত শক্তপোক্ত, যে তা অন্য কাজে ব্যবহার করা যাবে। তা সত্ত্বেও অশ্বত্থ গাছের পুজো কেন করি আমরা? আমাদের পূর্বপুরুষরা জানতেন যে, অশ্বত্থ নির্দিষ্ট কয়েকটি গাছের মধ্যে অন্যতম (বা সম্ভবত একমাত্র গাছ) যা রাত্রিবেলাতেও অক্সিজেন উত্‍‌পন্ন করে। তাই এই গাছকে বাঁচানোর জন্য এর পুজো চালু করা হয়।

ঝাল দিয়ে খাওয়া শুরু, মিষ্টি দিয়ে শেষ: খেতে বসে মশলাদার বা ঝাল খাওয়ার আগে খেতে হয় এবং শেষে মিষ্টি। ছোটবেলা থেকেই আমাদের এই খাদ্যাভ্যাস তৈরি করা হয়েছে। এ ধরনের খাদ্যাভ্যাস তৈরির কারণ হল, মশলাদার বা ঝাল খাদ্য হজম পদ্ধতিকে সহজ করে দেয়। কিন্তু মিষ্টি বা কার্বোহাইড্রেট হজম পদ্ধতিকে ধীরগতিতে চালিত করে। তাই সব সময় খাবারের শেষে মিষ্টি খাওয়া উচিত।

মাথায় টিকি রাখা: শুশ্রুত ঋষি মাথায় মুখ্য স্পর্শকাতর অংশটিকে অধিপতি মর্ম হিসেবে ব্যাখ্যা করেছেন। যা সমস্ত স্নায়ুর যোগসূত্র। শিখা বা টিকি ওই অংশটিকে নিরাপত্তা প্রদান করে। শরীরের নিম্নাংশ থেকে মস্তিষ্কের নীচে, ব্রহ্মরন্ধ্রে সুশুম্না স্নায়ু পৌঁছয়। যোগ অনুসারে ব্রহ্মরন্ধ্র ১০০০ পাপড়ি বিশিষ্ট পদ্ম এবং এটি শীর্ষ সপ্তমচক্র। এটি জ্ঞানের কেন্দ্র। গিঁঠ বাধা শিখা বা টিকি কেন্দ্রটিকে উত্‍‌সাহিত করে এবং ওজস নামে পরিচিত এর সূক্ষ্ম শক্তিকে সংরক্ষিত করে।

মেহেন্দি কেন লাগানো হয়: মেহেন্দি খুবই শক্তিশালী ঔষধি। বিয়ের সময় চাপ এবং চিন্তা বেড়ে যায়, যার ফলে মাথাব্যথা, এমনকি জ্বর পর্যন্ত হওয়ার সম্ভাবনা থাকে। মেহেন্দি শরীর ঠান্ডা করে। ফলে চাপ কমে এবং স্নায়ুকে চিন্তাগ্রস্ত হতে দেয় না। তাই হাতে এবং পায়ে মেহেন্দি লাগানোর প্রথা প্রচলিত।

দীপাবলির আগে ঘর পরিষ্কার: সাধারণত অক্টোবর বা নভেম্বরে দীপাবলি উত্‍‌সব পালিত হয়। দীপাবলির আগে বর্ষাকাল শেষ হয় এবং শীতকাল শুরু হয়। ভারী বৃষ্টির ফলে অনেকের ঘর-বাড়িই সারাই এবং পরিষ্কার করার প্রয়োজন হয়। তাই দিওয়ালির আগে ঘরদোর পরিষ্কার এবং সৌন্দর্যায়নের কাজ করা হয়ে থাকে। মাটিতে বসে খাদ্যগ্রহণ: মাটিতে বসে খাদ্যগ্রহণের সময়ে আমরা সাধারণত সুখাসনে বসি। সুখাসনে বসে খাবার খেলে তা আমাদের হজমশক্তি বাড়িয়ে দেয়। সংবহনতন্ত্র হজমের ওপর দৃষ্টি দেয়। যা চেয়ারে বসে বা দাঁড়িয়ে খেলে হয় না।
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6>हिंदू धर्म में किसी के मरने और जन्म लेने के बाद क्यों मनाया जाता है सूतक

धर्म डेस्क: हर इंसान के जीवन में खुशी और गम आता जाता रहता है। इस दुनिया में किसी कोने में कोई खुश होता है तो वही दूसरें कोने में गमगीन। अगर हमें कोई खुशी मिलती है तो हमें लगता है कि यह पल कभी न जाए और गम हो तो सोचते है कि यह पल जल्दी से निकल जाए। गम में तो एक-एक दिन भी काटना बहुत कठिन हो जाता है। हमारे जीवन में ऐसे कई पड़ाव आते है। कोई छोटा पड़ाव होता है तो कोई गम का तो कोई खुशी का।

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जिंदगी के इन्ही पड़ावों में दो पड़ाव आते है वो है जन्म और मृत्यु। हमारा जीवन जन्म के साथ शुरु होता और मृत्यु से खत्म हो जाता है। बस फर्क इतना होता है कि जन्म में खुशी वहीं मृत्यु में गम होता है।

हिंदू धर्म में जन्म और मृत्यु बहुत अधिक महत्व रखते है। हिंदू धर्म एक ऐसा धर्म है जहां पर हजारों रीति-रिवाज और परंपराएं है। जिसके कारण इस धर्म की अपनी एक पहचान है। इस परंपरा में एक है सूतक की परंपरा यानी कि किसी बच्चें के जन्म लेने और किसी व्यक्ति के मरने के बाद के वो दिन जब कोई भी शुभ काम नहीं होता है।

हमारे समाज में इससे जुड़े कई परंपराए है जैसे कि कोई शुभ काम न करना यानी कि अगर आपको कोई व्यापार करना है तो उसे इस समय में नहीं कर सकते है। इसे आप अंधविश्वास भी कह सकते है। लेकिन आप जानते है कि इसके पीछें वैज्ञानिक कारण भी है। जानिए आखिर क्यों यह सूतक मनाया जाता है।

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जन्म के बाद

हमारे समाज में जब किसी के घर में किसी का जन्म होता है तो उसके घर में 10 दिन तक सूतक और जन्म देने वाली मां के लिए एक महीने के लिए सूतक होता है। इस समय में वह महिला उसी कमरे में रहेगी जहां पर वह विश्राम करती है और वह घर के कोई काम नहीं कर सकती है साथ ही किचन में भी नहीं जा सकती है। साथ ही इस समय में घर का कोई भी सदस्य किसी भी धार्मिक कामों में भाग नहीं ले सकता है।

वह किसी मंदिर में भी नहीं जा सकता है। इसे आप अंधविश्वास का नाम भी दे सकते है, लेकिन आप जानते है कि इस पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी है। इसके अनुसार पहले के जमाने में जो परिवार होते थे। वह सयुंक्त रुप में रहते थे। जिसके कारण एक महिला के लिए अधिक काम हो जाता था। और डिलीवरी के बाद वह महिला बहुत ही कमजोर हो जाती थी। जिसके कारण उसे आराम करने की आवश्यकता होती थी। जिसे सूतक का नाम दिया गया। जिसके की वह अपने कमजोर शरीर को फिर से ठीक कर सके।

इसके साथ ही दूसरा कारण था कि बच्चें को संक्रमण से बचाना। क्योंकि जन्म से लेकर एक महीने तक एक बच्चें में प्रतिरोधक क्षमता शून्य के बराबर होती है। जिसके कराण उनको कोई भी बीमारी हो सकती है। जिसके कारण उसे बाहरी लोगों से दूर रखा जाता था। जिससे कि उसे किसी भी प्रकार का संक्रमण न हो।

आज इस सूतक को एक अंधविश्वास मान लिया गया है, लेकिन इसके पीछे जो कारण है वो है मां और बच्चें दोनों को आराम और दोनों के सेहत में अच्छा प्रभाव पड़े।

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मृत्यु के बाद

हम अपने समाज में देखते है कि आज के समय में भी जिस तरह जन्म के समय सूतक मनाया जाता है। उसी तरह किसी व्यक्ति के मरने में भी सूतक मनाया जाता है। इसमें भी उस परिवार का कोई भी सदस्य किसी भी धार्मिक कामों के साथ-साथ किसी मंदिर में जाना वर्जित हो जाता है। इस बारें में हिंदू धर्म के एक ग्रंथ गरुड़ पुराण में कहा गया है कि जब भी परिवार के किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो परिवार पर सूतक लग जाता है। परिवार के सदस्यों को पुजारी को बुलाकर गरुण पुराण का पाठ करवाकर पातक के नियमों को समझना चाहिए।

किसी व्यक्ति के मरने के 13वें दिन क्रिया कराई जाती है। जिसके बाद अपने क्षमतानुसार ब्राह्मणों को बुलाकर उनको भोजन कराने के साथ-साथ उन्हे दक्षिणा दी जाती है। इसके बाद घर को अच्छी तरह से शुद्ध किया जाता है। और उस मृत व्यक्ति से जुड़ी चीजें जैसे कि कपड़े और उसका समान किसी जरुरतमंद को दे दिया जाता है।

आपने देखा होगा कि किसी व्यक्ति का अंतिन संस्कार करने के बाद वही तट पर सभी लोग स्नान भी करते है। माना जाता है कि इससे मृत व्यक्ति की आत्मा आपके साथ नहीं जाएगी। उसका आपसे लगाव हट जाएगा, लेकिन इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है।

इसके अनुसार माना जाता है कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो वह किस तरह मरा यह सबसे बड़ी बात होती है। जिसके कारण उससे आपको संक्रमण हो सकता है। इस संक्रमण से बचने के लिए हम स्नान करते है। जिससे कि हामरे साथ वहां पर मौजूद कोई भी किटाणु आप के साथ आपके घर न जाएं। जिससे कि आपके बीच कोई संक्रमण फैले।

13वें दिन आपने देखा होगा कि घर में पूजा-पाठ और हवन का आयोजन किया जाता है। इसे पीछे मान्यता है कि इससे मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलती है। वही इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है। इसके अनुसार घर में पूजा-पाठ और हवन से हामरे घर का वातावरण ठीक हो जाता है साथ ही शुद्ध हो जाता है। जिससे हमारे घर में मौजूद सभी बैक्टेरिया भी मर जाते है। इसके साथ ही सूतक की समाप्ति हो जाती है।
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7>हिंदू परम्पराओं से जुड़े वैज्ञानिक तर्क:

👉1- कान छिदवाने की परम्परा:

भारत में लगभग सभी धर्मों में कान छिदवाने की परम्परा है।

वैज्ञानिक तर्क-

दर्शनशास्त्री मानते हैं कि इससे सोचने की शक्ति बढ़ती है।जबकि डॉक्टरों का मानना है कि इससे बोली अच्छी होती है और कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का रक्त संचार नियंत्रित रहता है।

👉2- माथे पर कुमकुम/तिलक

महिलाएं एवं पुरुष माथे पर कुमकुम या तिलक लगाते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- आंखों के बीच में माथे तक एक नस जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस जगह की ऊर्जा बनी रहती है। माथे पर तिलक लगाते वक्त जब अंगूठे या उंगली से प्रेशर पड़ता है, तब चेहरे की त्वचा को रक्त सप्लाई करने वाली मांसपेशी सक्रिय हो जाती है। इससे चेहरे की कोशिकाओं तक अच्छी तरह रक्त पहुंचता

👉3-जमीन पर बैठकर भोजन:

भारतीय संस्कृति के अनुसार जमीन पर बैठकर भोजन करना अच्छी बात होती है।

वैज्ञानिक तर्क- पालथी मारकर बैठना एक प्रकार का योग आसन है। इस पोजीशन में बैठने से मस्तिष्क शांत रहता है और भोजन करते वक्त अगर दिमाग शांत हो तो पाचन क्रिया अच्छी रहती है। इस पोजीशन में बैठते ही खुद-ब-खुद दिमाग से एक सिगनल पेट तक जाता है, कि वह भोजन के लिए तैयार हो जाये।

👉4- हाथ जोड़कर नमस्ते करना:

जब किसी से मिलते हैं तो हाथ जोड़कर नमस्ते अथवा नमस्कार करते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क में आते हैं और उन पर दबाव पड़ता है। एक्यूप्रेशर के कारण उसका सीधा असर हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर होता है, ताकि सामने वाले व्यक्ति को हम लंबे समय तक याद रख सकें।

दूसरा तर्क यह कि हाथ मिलाने (पश्चिमी सभ्यता) के बजाये अगर आप नमस्ते करते हैं तो सामने वाले के शरीर के कीटाणु आप तक नहीं पहुंच सकते। अगर सामने वाले को स्वाइन फ्लू भी है तो भी वह वायरस आप तक नहीं पहुंचेगा।

👉5-: भोजन की शुरुआत तीखे से अंत मीठे से:

जब भी कोई धार्मिक या पारिवारिक अनुष्ठान होता है तो भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से होता है।

वैज्ञानिक तर्क- तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं। इससे पाचन तंत्र ठीक तरह से संचालित होता है। अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है। इससे पेट में जलन नहीं होती है।

👉6- पीपल की पूजा:

तमाम लोग सोचते हैं कि पीपल की पूजा करने से भूत-प्रेत दूर भागते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- इसकी पूजा इसलिये की जाती है, ताकि इस पेड़ के प्रति लोगों का सम्मान बढ़े और उसे काटें नहीं। पीपल एक मात्र ऐसा पेड़ है, जो रात में भी ऑक्सीजन प्रवाहित करता है।

👉7- दक्षिण की तरफ सिर करके सोना:

दक्षिण की तरफ कोई पैर करके सोता है, तो लोग कहते हैं कि बुरे सपने आयेंगे, भूत प्रेत का साया आ जायेगा, आदि। इसलिये उत्तर की ओर पैर करके सोयें।

वैज्ञानिक तर्क-: जब हम उत्तर की ओर सिर करके सोते हैं, तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है। शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा दिमाग की ओर संचारित होने लगता है। इससे अलजाइमर, परकिंसन, या दिमाग संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। यही नहीं रक्तचाप भी बढ़ जाता है।

👉8-सूर्य नमस्कार:

हिंदुओं में सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाते हुए नमस्कार करने की परम्परा है।

वैज्ञानिक तर्क- पानी के बीच से आने वाली सूर्य की किरणें जब आंखों में पहुंचती हैं, तब हमारी आंखों की

रौशनी अच्छी होती है।

👉9-सिर पर चोटी या शिखा:

हिंदू धर्म में ऋषि मुनि चुटिया रखते थे। आज भी लोग रखते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- जिस जगह पर चुटिया रखी जाती है उस जगह पर दिमाग की सारी नसें आकर मिलती हैं। इससे दिमाग स्थिर रहता है। इंसान को क्रोध नहीं आता, सोचने की क्षमता बढ़ती है।

👉10-व्रत रखना

कोई भी पूजा-पाठ या त्योहार होता है, तो लोग व्रत रखते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- आयुर्वेद के अनुसार व्रत करने से पाचन क्रिया अच्छी होती है और फलाहार लेने से शरीर का डीटॉक्सीफिकेशन होता है, यानी उसमें से खराब तत्व बाहर निकलते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार व्रत से कैंसर का खतरा कम होता है। हृदय रोगों, मधुमेह, आदि रोग भी जल्द नहीं लगते।

👉11-चरण स्पर्श करना:

हिंदू मान्यता के अनुसार जब भी आप किसी बड़े से मिलें, तो उसके चरण स्पर्श करें। हम बच्चों को भी सिखाते हैं, ताकि वे बड़ों का आदर करें।

वैज्ञानिक तर्क- मस्तिष्क से निकलने वाली ऊर्जा हाथों और सामने वाले पैरों से होते हुए एक चक्र पूरा करती है। इसे कॉसमिक एनर्जी का प्रवाह कहते हैं। इसमें दो प्रकार से ऊर्जा का प्रवाह होता है, या तो बड़े के पैरों से होते हुए

छोटे के हाथों तक या फिर छोटे के हाथों से बड़ों के पैरों तक।

👉12- शादीशुदा हिंदू महिलाएं सिंदूर लगाती हैं।

वैज्ञानिक तर्क- सिंदूर में हल्दी, चूना और मरकरी होता है।यह मिश्रण शरीर के रक्तचाप को नियंत्रित करता है। चूंकि इससे यौन उत्तेजनाएं भी बढ़ती हैं, इसीलिये विधवा औरतों के लिये सिंदूर लगाना वर्जित है। इससे स्ट्रेस कम होता है।

👉13- तुलसी के पेड़ की पूजा

तुलसी की पूजा करने से घर में समृद्धि आती है। सुख शांति बनी रहती है।

वैज्ञानिक तर्क- तुलसी इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है। लिहाजा अगर घर में पेड़ होगा, तो इसकी पत्तियों का इस्तेमाल भी होगा और उससे बीमारियां दूर होती हैं।
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