17>|| তুলসীদাসজীর জীবনী ও হনুমান চাল্লিশা ||
হিন্দি ও বাংলা।
|| हनुमान चालीसा की कहानी ||
<--अद्यनाथ-->
1600 ईसबी की अकबर और तुलसीदास जी की एक स्तय कहानी ।
कहानी इस प्रोकर--
एक बार तुलसीदास जी मथुरा जा रहे थे। रस्था में रात होने से पहले उन्होंने अपना पडाव आगरा में डाला।
ऐ समाचार चारो और फेला, लोगो को पता लगा की तुलसी दास जी आगरा में पधारे है।
यह सुन कर उनके दर्शनों के लिए लोगो का ताँता लग गया। थोड़ेही देर में यह बात जब बादशाह अकबर को पता लगी तो उन्होंने वीरबल से तुलसीदास के बारे पुंछा की यह तुलसीदास कौन हैं.....?
वीरबल ने बताया, इन्होंने तुलसीदास जी।
इन्होंने ही रामचरितमानस का अनुवाद किया है यह रामभक्त तुलसीदास जी है।
"में भी इनके दर्शन करके आया हूँ।"
इतना सुनकर सम्राट अकबर ने भी उनके दर्शन की इच्छा व्यक्त की और कहा "में भी उनके दर्शन करना चाहता हूँ।"
अतः बादशाह अकबर ने अपने सिपाहि को तुलसीदास जी के पास भेजा। और सिपाहि, तुलसीदास जी को बादशाह का पैगाम सुनाया, की "आप लाल किले में हाजिर हों।" यह पैगाम सुन कर तुलसीदास जी ने कहा की "मैं भगवान श्रीराम का भक्त हूँ, मुझे बादशाह और लाल किले से मुझे क्या लेना देना,"
और लाल किले जाने की साफ मना कर दिया। जब यह बात बादशाह अकबर को पता चला तो अकबर की बहुत बुरी लगी और बादशाह अकबर गुस्से में आग बबूला हो गई ,
और उन्होंने तुलसीदास जी को पकड़ कर
लाल किला लाने का आदेश दिया।
जब तुलसीदास जी लाल किला पहुंचे तो अकबर ने कहा की "आप कोई करिश्माई व्यक्ति लगते हो, कोई करिश्मा करके दिखाओ।" तुलसी दास ने कहा " मैं तो सिर्फ भगवान श्रीराम जी का भक्त हूँ कोई जादूगर नही हूँ जो आपको कोई करिश्मा दिखा सकूँ।" अकबर यह सुन कर और भी गुस्से में आदेश दिया की" इनको जंजीरों से जकड़ कर काल कोठरी में डाल दिया जाये।"
दूसरे दिन सबेरे आगरा के लाल किले पर लाखो बंदरो, हनुमान ने एक साथ हमला बोल दिया पूरा किला तहस नहस कर डाला। लाल किले में त्राहि त्राहि मच गई।
तब अकबर ने वीरबल को बुला कर पूंछा की "वीरबल यह क्या हो रहा है....?"
वीरबल ने कहा
"हुज़ूर आप करिश्मा देखना चाहते थे तो देखिये। एहि एक करिश्मा।"
अकबर ने तुरंत तुलसी दास जी को कल कोठरी से निकल कर उनकी जंजीरे खोल दी ।
तब तुलसीदास जी ने वीरबल से कहा---
"मुझे बिना अपराध के सजा मिली है। मैने काल कोठरी में भगवान श्रीराम और हनुमान जी का स्मरण किया में रोता जा रहा था। और मेरे हाथ अपने आप कुछ लिख रहे थे यह 40 चौपाई, हनुमान जी की प्रेरणा से लिखी गई इस चौपाई
जो भी व्यक्ति कष्ट में या संकट में होगा और इसका पाठ करेगा ,उसके कष्ट और सारे संकट दूर होंगे। इसको हनुमान चालीसा के नाम से जाना जायेगा।"
अब अकबर बहुत लज्जित हुए और तुलसीदास जी से माफ़ी मांगी, और पूरी इज़्ज़त और पूरी हिफाजत और लाव लश्कर के साथ तुलसीदास जी को मथुरा भिजवाया।
आज लोग हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं। और सभी पर हनुमान जी की कृपा बर्षते हैं।
और सभी के संकट दूर हो रहे है। हनुमान जी को इसीलिए "संकट मोचन" भी कहा जाता है।
।। जय श्री राम, जय श्री हनुमान ।।
<--©--➽-ए एन राय चौधुरी-->
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|| হনুমান চালিশার কাহিনী ||
সম্রাট আকবর এবং তুলসীদাস।
আজ অনেকেই রোজ নিয়ম করে
হনুমান চালিশা পাঠ করেন।
কিছু মানুষ বিপদে পড়লেই হনুমান চালিশা পাঠ করেন এবং হনুমানজীর সরনাপন্ন হন।
আমরা এও জানি যে এই হনুমান চালিশার রচয়িতা গোস্বামী তুলসীদাসজী।
কেন এবং কোন পরিস্থিতিতে তুলসীদাসজী এই হনুমান চালিশা রচনা করেছিল সেই সম্পর্কে জানতে চেষ্টা করে কিছু বই খুঁজে, কিছু ইন্টারনেট খুঁজে যেটুকু জেনেছি ::------
গোস্বামী তুলসীদাস জী এই রচনা হয়েছিল ষোড়শ শতকে মুঘল সম্রাট আকবরের সময়কালে সম্ভবত 1582 সালে। তবে হনুমান চালিশা রচনার সময়কাল নিয়ে পন্ডিতদের মধ্যে নানান মত বিরোধ রয়েছে।
কেউ কেউ মনে করেন যে হনুমান চালিশা অনেক পরে রচনা করা হয়েছিল।
আবার কেউ মনে করেন যে তুলসীদাসজী শৈশবেই এটি রচনা করেছিলেন।
তবে বেশির ভাগ পণ্ডিতগণের
মত হল হনুমান চালিশা তুলসীদাসজী রচনা করেন আঠার শতকের আটের দশকে।
মূল হনুমান চালিশা রচিত হয়েছিল অবধি ভাষায়। অবধি হল হিন্দি ভাষার একটি রুপ।
এটি তুলসীদাস রচিত রামচরিতমানসের একটি অংশ বিশেষ।
এখানে তুলসীদাসজীর একটু পরিচিতি
জানা উচিত বলে মনে করি।
তুলসীদাসজীর জন্ম হয় প্রয়াগের কাছে চিত্রকূট জেলার রাজপুর গ্রামে। তার জন্ম সাল নিয়ে পন্ডিতদের মধ্যে যথেষ্ট মতোবিরোধ রয়েছে। তবে বাল্মিকী সম্বত অনুযায়ী তার জন্ম 1554সালে।
পিতা আত্মারাম দুবে ও মাতা হুলসির ঘরে 12 মাস মাতৃ গর্ভে থাকার পর জন্ম নেয় 32 টি দাঁত যুক্ত সাড়ে পাঁচ বছরের বালকের মত আকৃতি যুক্ত এক নবজাতক। সন্তানের অমঙ্গলের কথা ভেবে মা হুলসী তার পিতার বাড়ির এক দাসী চুনিয়ার কাছে ছেলেকে গচ্ছিত রাখেন। কিছু দিন পরে চুনিয়াও মারা যায় ও বালক অনাথ হয়ে যায়। এরপরে অনাথ খুব দুঃখ কষ্টের মধ্যে ভিক্ষে করে দিন কাটায়।
এরপরে অনন্তনন্দজীর শিষ্য শ্রীনরহরি আনন্দজী এই বালকে খুঁজে পান এবং অযোধ্যা নিয়ে আসেন এবং নাম রাখেন রামবোলা। সেই অযোধ্যাতেই তিনি রাম মন্ত্রে দীক্ষা নেন এবং বিদ্যা অধ্যয়ন করেন। সেখান থেকে কাশী চলে যান এবং দীর্ঘ 15 বছর বেদ বেদাঙ্গ অধ্যয়ন করেন। তারপর আবার ফিরে আসেন জন্ম ভূমিতে।
সম্ভবত 1583 সালে বিবাহ হয় রত্নাবলীর সঙ্গে। একদিন রত্নাবলী তার পিতৃ গৃহে গেলে তুলসীদাসজীও পেছন পেছন তার শ্বশুর বাড়ি চলে যান। সেই সময় তার স্ত্রী তাকে তীব্র ভৎসনা করে বলেন আমার মত রক্ত মাংসের শরীরের মোহ ছেড়ে রঘুবীরের নামে জীবনকে সপে দাও। জীবন তোমার মুক্ত হবে। এই কথা শোনা মাত্র তুলসীদাসজীর অন্তরে সম্বিত ফিরে আসে এবং তখনই সাংসারিক জীবন ত্যাগ করে প্রয়াগে চলে আসেন এবং শ্রীরামের নামে জীবন সপে দেনা।
অযোধ্যাতে তিনি দেখা পান হনুমানজীর এবং তিনি শ্রীরঘুনাথের দর্শন পাওয়ার ইছা প্রকাশ করেন। হনুমানজী বলেন শ্রীরামের দর্শন পেতে গেলে চিত্রকূট যেতে হবে। তিনি সেখানে গেলেও শ্রীরামজীকে তিনি চিনতে পারেন নি। পরবর্তীতে শ্রীরাম এক শিশুর বেশে এলে হনুমানজীর ইশারায় তুলসীদাসজী শ্রীরামের দর্শন পান।
তুলসীদাসজী দেহত্যাগ করেন 1623 সালে শ্রাবন মাসে গঙ্গার অসী ঘাটে। কথিত আছে তিনি 126 বছর জীবিত ছিলেন।
রামচরিত মানস তুলসীদাসজীর এক অমর কীর্তি যাকে তুলসীদাসী রামায়ন বলা হয়। গোটা রামচরিত মানস তিনি শেষ করেন 2 বছর 7 মাস 26 দিনে। এছাড়া তিনি তুলসীদাসী দোহাবলী, কবিতাবলী, গীতাবলী,কৃষ্ণাবলী এবং বিনয় পত্রিকা রচনা করেন। বারানসীর সঙ্কট মোচন হনুমান মন্দিরও তারই সৃষ্টি।
হনুমান চালিশা রচনার ইতিহাস :
ভারতে তখন মুঘল সম্রাট আকবরের রাজত্বকাল। ততদিনে তুলসীদাসজী এক সিদ্ধ পুরুষ হয়ে উঠেছেন। একবার তিনি এক গাছের নীচে বসে ধ্যান করছিলেন। এক মহিলা এসে তাকে প্রণাম করেন। তুলসীদাসজী তাকে সুখী হবার আশীর্বাদ করেন। আশীর্বাদ পেয়ে মহিলা কান্নায় ভেঙ্গে পড়েন। তিনি মহিলাকে কান্নার কারন জিজ্ঞেস করাতে মহিলা বলেন এই মাত্র তার স্বামী মারা গেছেন। তুলসীদাসজী বিন্দুমাত্র বিচলিত না হয়ে রাম নাম নেবার পরামর্শ দেন। মহিলা বাড়ি গিয়ে রাম নাম শুরু করেন সঙ্গে উপস্থিত সকলেই রাম নাম করতে থাকেন। কিছুক্ষন পরেই মৃত ব্যক্তি জীবিত হয়ে ওঠেন। এই রকম তিনি এর আগেও এক দৃষ্টি হীন ব্যক্তিকে দৃষ্টি ফিরিয়ে দেন। তার কীর্তি দাবানলের মত চারিদিকে ছড়িয়ে পড়ে।
এই খবর সম্রাট আকবরের কান পর্যন্ত পৌছায়। আকবর বীরবল ও টোডরমলকে পাঠায় খবরের সত্যতা যাঁচাইয়ের জন্য। তারা খবর নিয়ে এসে সম্রাটকে বলেন যে ঘটনা সত্য। আকবর তুলসীদাসজীকে রাজ সভায় ডেকে পাঠান এবং কিছু চমৎকার দেখাতে বলেন। তুলসীদাসজী সেটা করতে অস্বীকার করে বলেন "আমি কোন চমৎকারী বাবা নই যে চমৎকার দেখাব। চমৎকার দেখানেওয়ালাতো স্বয়ং শ্রীরাম। আমি নই।"
এই কথা শুনে সম্রাট আকবর প্রচণ্ড ক্রোধিত হয়ে তুলসীদাসজীকে আটক করবার নির্দেশ দেন এবং সেপাইরা তাকে ফতেপুরসিক্রিতে আটক করে রাখেন। তুলসীদাসজী বিন্দু মাত্র বিচলিত না হয়ে শ্রী হনুমান চালিশার রচনা শুরু করেন। হনুমান চালিশার রচনা যখন প্রায় শেষ তখন ফতেপুরসিক্রি সমেত গোটা রাজধানীতে কয়েক লক্ষ বানর হামলা করেন। বানরের অত্যাচারে সম্রাট সহ রাজধানীর সকল নাগরিক অতিষ্ট হয়ে ওঠে। বিচক্ষন সম্রাট আকবরের নিজের ভুল বুঝতে সময় লাগে নি। তিনি দ্রুত তুলসীদাসজীকে কয়েদ থেকে মুক্ত করেন এবং তার কাছে ক্ষমা প্রার্থনা করেন। তুলসীদাসজী মুক্ত হতেই বানরের উপদ্রব বন্ধ হয়ে যায়। সম্রাট আকবর আমৃত্যু তুলসীদাসের সঙ্গে মিত্রতার সম্পর্ক রেখেছিলেন।
হনুমান চালিশার উদ্দেশ্য :
বলা হয় হনুমান চালিসা পাঠ করলে সমস্ত সঙ্কট দূর হয়ে যায়। এই হনুমান চালিশায় হনুমানজীর ক্ষমতার গুণকীর্তন করা হয়। এরও কারন রয়েছে। হনুমানজী ছোট বেলায় ধ্যান মগ্ন মুণি ঋষিদের খুব বিরক্ত করতেন। তাই তাকে মুণি ঋষিরা অভিশাপ দিয়ে ছিলেন যে তার ক্ষমতা বা শক্তি সম্পর্কে তিনি ভুলে যাবেন। অন্য কেও তাকে তার ক্ষমতা না মনে করিয়ে দিলে তিনি তা প্রয়োগ করতে ভুলে যাবেন। তাই হনুমান চালিশার অধিকাংশ চৌপাইতে তার ক্ষমতার কথা উল্লেখ রয়েছে।
" সংগ্রহ"
<--©➽-আদ্যনাথ রায় চৌধুরী--->
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