Tuesday, January 12, 2016

9>জেনে রাখা ভালো Part-(2) :---কিছু মূল্যবান কথা==1 to 7

9>Myc=Post=9>***জেনে রাখা ভালো Part-(2)--কিছু মূল্যবান কথা***( 1 to 6 )

1------------------------------झुठ क्यों बनाई
2------------------------------आत्मविश्वास
3-------------------------------ईश्वर हामारे मन के भाव मे
4-------------------------------सुमन और नमन
5-------------------------------श्रीविद्या-आत्मविद्या-आत्मसमर्पण
6>a-जीवन का असलियत
    b- गरीब दूर तक चलता है..... खाना खाने के लिए......।
    c-रोज सिर्फ इतना करो
    d-जिबन के सत्य ता
    e-"रिश्ता" दिल से होना चाहिए, शब्दों से नहीं,
    f-सड़क कितनी भी साफ हो
    g-आइना और परछाई के
    h-खाने में कोई 'ज़हर' घोल दे तो
    i-"मैं अपनी 'ज़िंदगी' मे हर किसी को
    j-अगर लोग केवल जरुरत पर
7---------------------घरेलु परेशानियों के निवारण हेतु सामान्य/घरेलु ---उपाय/समाधान---
8---------------------जीवन में संघर्ष आवश्यक है
9>------------" द " शब्द वाली वस्तु " स " शब्द में बहुत ही जल्दी बदलती है
10>------------a>33 करोड नहीँ 33 कोटी देवी देवता हैँ हिँदू

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1>झुठ क्यों बनाई


आखिर भगवान ने झुठ क्यो बनाई ?

क्या है इसका वायो वैज्ञानिक रहश्य ?

भगवान का विज्ञान बहुत अदबुद है । इसको जानना बहुत कठिन है । सारे संसार के सभी बिदवान झूठ न बोलने की सलाह देते है फिर वो स्वयं भी झूठ बोलते है । इसके बिना मनुष्य का गुजारा भी नहीं है । यह भोजन की भांति है जैसे बिना भोजन के जीवन नहीं चल सकता है वैसे झूठ के बिना जीवन नहीं चल सकता है । आखिर कैसे झूठ काम करता है ?
मनुष्य के शरीर मे 5 उपप्राण होते है ये 5 उपप्राण स्वचालित क्रिया मे शरीर की रक्षा करते है । इनको कमांड देने की आवश्यकता नहीं होती है । ये स्वतः ही दुर्घटना होने पर अपने आप शरीर को बचाते है । जब शरीर पर कोई अचानक आपदा आती है तो ये अपना काम शुरू कर देते है । जिसमे नाग प्राण क्रोध उत्पन्न करता है । देवव्रत उपप्राण व्यान प्राण के साथ गालियां और झूठ उत्पन्न करता है ।

जब आपके उपर कोई हमला करता है तो आपके अंदर डर और क्रोध उत्पन्न हो जाता है । ये डर और क्रोध की परिस्थित नाग प्राण के द्वारा मन के साथ संपर्क से पैदा होती है । अगर आपका मनोबल मजबूत है तो आपका नाग प्राण क्रोध मे आकर शस्त्रु पर हमला कर देता है । और शरीर को शस्त्रु से बचा देता है । अगर आपका मनोबल कमजोर हुआ तो देवव्रत उपप्राण के साथ संपर्क स्थापित करके झूठ उत्पन्न कर देता है ।

ऐसे स्थिति मे झूठ हमे शरीर को शस्त्रु के आघात से बचाती है । झूठ का संबंध देवव्रत और नाग उपप्राण के साथ साथ चित , बुद्धि , मन और अहंकार के साथ संबंध होता है । जब मन मे विकृति आती है तथा जब मन इंद्रियो मे रमण करता है तो उस समय मन झूठ के ऊपर सवार होकर कार्य करता है ।

शरीर मे झूठ एक बहुत जिद्दी तत्व है जो अद्रश्य है लेकिन इसकी प्राण शक्ति बहुत मजबूत होती है । क्योकि यह प्राणो के साथ जुड़ा होता है । इसलिए झूठे आदमी से झूठ उगलवाना आसान काम नहीं होता है । इसलिए आजकल पुलिस किसी भी अपराधी से इंजेक्सन के द्वारा नार्को टेस्ट से प्राण शक्ति को कमजोर करके सच पूछा जाता है ।

लेकिन भगवान को प्राप्त करने के लिए झूठ वर्जित होती है क्योकि झूठ बोलने से शरीर मे विष पैदा होता है जिसके कारण ध्यान विधि

वाधित होती है । इसलिए अष्टांग योग मे झूठ वर्जित है ।
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2>आत्मविश्वास

जीवन में लक्ष्य-प्राप्ति व संकटों से पार पाने हेतु आत्मविश्वास जरूरी है।

यह स्वयं की सामर्थ्य का सूचक है। जब आत्मविश्वास कोरे आशावाद पर आधारित होता है, तो प्राय: मनुष्य को

निराशा सहनी पड़ती है। कोई चमत्कार हो जाएगा, ऐसा सोचना अकर्मण्यता को जन्म देता है।

खासकर भारतीय संस्कृति कर्मशीलता को प्रोत्साहित करने वाली है। जितने भी धर्म, संप्रदाय भारतीय भूभाग में

पनपे, उनमें यह समान तत्व उभरा कि अंतत: श्रेष्ठ कर्म ही मनुष्य को श्रेष्ठता प्रदान करते हैं।

आत्मविश्वास इस कर्मशीलता का एक आयाम है। बहुत से गुण हों और कर्म करने की इच्छाशक्ति न हो, तो उन

गुणों का कोई तात्पर्य नहीं रह जाता।कर्म करने की क्षमता हो, पर संशय भरे हों, तो उन कर्मों की सफलता संदिग्ध

हो जाती है।

सफलता पूर्ण मनोयोग से किए गए प्रयासों से ही मिलती है। सफलता पाने से पहले यह दृढ़ निश्चय करना पड़ता है कि
इसे मैं पाकर ही रहूंगा। यही आत्मविश्वास है।

हर सफलता की पृष्ठभूमि में योग्यता, गुण, क्षमता और कर्मठता निश्चय ही दिख जाती है। जब मनुष्य यह स्वीकार

कर लेगा कि चमत्कार नहीं होते, यह स्वप्नजीवी लोगों के आलस्य भाव की उपज है, तभी वह गुणों को धारण करने

व क्षमताओं में वृद्धि के लिए सोचना शुरू करेगा।

ऐसा करना मनुष्य को व्यावहारिक दृष्टि देता है, जिससे वह अपने लक्ष्य और अपनी योग्यताओं के बीच सापेक्षता

स्थापित करने में सफल रहता है।

यह वह आधार है, जिस पर आत्मविश्वास का दुर्ग खड़ा होता है। इससे लक्ष्यभेद सहज हो जाता है। यदि नाकामी


हाथ लगे, तो निराशा नहीं, विश्लेषण कर स्वयं को अधिक समर्थ बनाने और पुन: प्रयास की इच्छा जन्म लेती है।

चमत्कार जैसी कोई चीज होती तो भगवान राम को चौदह वर्ष के वनवास पर क्यों जाना पड़ता और युद्ध करके


मां सीता को क्यों मुक्त कराना पड़ता।

भगवान कृष्ण का उपदेश ही कर्म से संबंधित था। आज उनकी आराधना उनके गुणों के कारण होती है, जो

उनके कर्मों में संसार के सामने प्रकट हुए।

मनुष्य जिस परमतत्व की अर्चना करता है, वास्तव में उसी का अंश है। खुद पर भरोसा करना उस परमतत्व

पर और उसके गुणों पर विश्वास करना है।

हरि ॐ तत्सत
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3>ईश्वर हामारे मन के भाव मे

न काष्ठे विद्यते देवो, न पाषाणे न मृण्मये।
भावे ही विद्यते देवास्रतमात् भावो ही कारणम्।।

ईश्वर न लकड़ी मेँ न पत्थर मेँ न ही मिट्टी मेँ है
ईश्वर हमारे मन के भाव मेँ है भाव ही समस्त कारकोँ का कारण है
अगर हमारे मन मेँ भाव है तो ईश्वर कण कण मेँ दसो दिशाओँ मेँ उपस्थित है अगर भाव नही है तो ईश्वर कहीँ नही है।
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4>सुमन और नमन

: भगवान को सुमन और नमन दोनों ही बहुत प्रिय है। इसलिए प्रभु को सुमन समर्पित करके नमन किया जाता हैं।
सुमन का अर्थ केवल पुष्प ही नहीं होता। सुमन का तात्पर्य-

सु +मन = सुंदर मन से भी है।
अर्थात- सुन्दर मन ही सुमन है। भगवान धन नहीं माँगते वे हमसे हमारा सुन्दर मन ही माँगते हैं।

जब हम आराध्य के चरणों में सिर झुकाते हैं नमन करते हैं तब

न मन होते हैं हम

न= नहीं मन

अर्थात

उस समय हमारा मन हमारा नहीं होता, प्रभु का होता है।

जब मन प्रभु में होगा तो न हर्ष होगा न शोक होगा, आंनद ही आनंद होगा 11
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5>श्रीविद्या-आत्मविद्या-आत्मसमर्पण


श्री’ अर्थात् देवी और विद्या अर्थात ज्ञान। सीधे-सादे शब्दों में यह देवी की उपासना है। एक ऐसा ज्ञान है जिसे जानने के पश्चात कुछ जानना शेष नहीं रह जाता। मनुष्य के जीवन का परम लक्ष्य आत्म बोध है। अपने निज स्वरूप से अनभिज्ञ मनुष्य स्वयं को असहाय महसूस करता है। कर्म बंधन में फंसा जीवन इसी आत्म बोध के लिए जन्म जन्मांतर तक भटकता रहता है। इसी आत्मबोध के तंत्र का नाम श्री विद्या है। यह शाक्त परंपरा की प्राचीन एवं सर्वोच्च प्रणाली है।

आदि काल से मनुष्य लौकिक और पारलौकिक सुखों के लिए विभिन्न देवी-देवताओ की उपासना करता आया है। ऐसा अक्सर पाया जाता है कि भौतिक सुखों में लिप्त जीवन जीते हुए मनुष्य आत्मिक सुख से वंचित रहता है, कुछ अधूरा सा अनुभव करता है। यह भी माना जाता है कि आत्मिक अनुभूति के लिए भौतिक सुखों का मोह छोड़ना पड़ता है। एक साधारण मनुष्य के लिए यह भी संभव नहीं है। ऐसे संदर्भ में श्री विद्या उपासना एक महत्वपूर्ण साधन है।

यह देवी (शक्ति) की तीन अभिव्यक्तियों पर आधारित है।

>>> भोग, मोक्ष प्रदायिनी मां ललिता त्रिपुर सुंदरी का स्वरूप।
>>> श्री यंत्र
>>> पंचदशाक्षरी मंत्र
श्रीविद्या एक क्रमबद्ध, रहस्यमयी पद्धति है जिसमें ज्ञान, योग (प्राणायाम), भक्ति और देवी के पूजन-अर्चन का सुन्दर समावेश है।
>>>महाशक्ति त्रिपुर सुंदरी:
महाशक्ति त्रिपुरसुंदरी महादेव की स्वरूपा शक्ति हैं।
इन्हीं के सहयोग से शिव सृष्टि में सूक्ष्म से लेकर स्थूल रूपों में उपस्थित हैं। सामान्य मनुष्य के लिए कण-कण में भगवान उपस्थित हैं। जगद् गुरु शंकराचार्य कृत सौंदर्य लहरी के प्रथम श्लोक में यह भाव प्रत्यक्ष दिखाई देता है।

शिवः शक्तया युक्तो यदि भवति शक्तः प्रभवितुं न चेदेवं देवो न खलु कुशलः स्पन्दितुमपि।
अतस्त्वामाराध्यांहरिहरविरन्चयादिभिरपि प्रणन्तुं स्तोतुं वा कथमकृतपुण्यः प्रभवति।।

अर्थात- हे भगवती! जब शिव शक्ति से युक्त होते हैं तभी जगदुत्पन्न करने में समर्थ होते हैं। यदि वे शक्ति से युक्त न हों तो सर्वथा हिलने या चलने में भी अशक्त रहते हैं।
मां त्रिपुर सुंदरी की अलौकिक सुंदरता का वर्णन भी सौंदर्य लहरी में कई स्थानों (श्लोकों) में मिलता है। यूं तो मां शक्ति रूपा हैं, निराकार होकर भी सब में विद्यमान हैं, तो भी साधक के मन की एकाग्रता के लिए उनके स्थूल रूप का प्रयोजन है।

शरदज्योत्सना शुद्धां शशियुत जटासूटमकुटाम्वरत्रासत्राणस्फटिक घटिका पुस्तककराम्।
सकृत्र त्वां नत्वा कथमिव सतां संमिधते मधुक्षीर द्राक्षामधुरिणाः फणितयः।।

शरदपूर्णिमा की चांदनी के समान शुभ्रवर्णा, द्वितीया के चंद्रमा से युक्त जटाजूट रूपी मकुटों वाली, अपने हाथों में वरमुद्रा, अभय मुद्रा, स्फटिक मणि की माला और पुस्तक धारण किए हुए आपको एक बार भी नमन करने वाले मनुष्य के मुख से मधु, क्षीर, द्राक्षा शर्करादि से भी मधुर अमृतमयी वाणी क्यों न झरेगी। आदि। मां की चार भुजाओं में पाश, अंकुश, इक्षुधनु और पंच पुष्पबाणों का ध्यान किया जाता है। पाश अर्थात 36 तत्वों में प्रीति, अंकुश अर्थात क्रोध, द्वेष, इक्षुधनु - संकल्प-विकल्पात्मक क्रियारूप मन ही इक्षुधनु है। शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध पांच पुष्प बाण हैं।

इच्छाशक्तिमयपाशमकुशंज्ञानरूपिणम्।
क्रियाशक्तिमये बाणधनुषी दधदुज्जवलम्।।

अर्थात पाश- इच्छाशक्ति, अंकुश-ज्ञान शक्ति तथा बाण और धनुष क्रियाशक्ति स्वरूप हैं। इन तीनों शक्तियों को अपने में धारण करती हैं मां त्रिपुर सुंदरी।
किसी भी कार्य को संपन्न करने के लिए मनुष्यं को उपरोक्त शक्तियों का प्रयोग करना पड़ता है। प्रथम कार्य करने की इच्छा रखना, दूसरा ज्ञान (कार्य से संबंधित ज्ञान) और तीसरा कार्य को करना। स्पष्ट है कि इन तीनों के लिए आवश्यकता होती है मन की एकाग्रता की। मन की एकाग्रता प्रबल आत्मिक शक्ति और दृढ़ संकल्प के बिना असंभव है।
अर्थात् आत्मिक शक्ति ही मां त्रिपुरा हैं। अदम्य आत्मिक शक्ति का परिचय उपासक को सशक्त बनाता है और वह असंभव को संभव कर देता है। मां की उपासना मां का सीधा-सादा उपदेश है- स्वात्म शक्ति का ज्ञान क्योंकि यही पारसमणि है।

>>> श्री यंत्र: श्री विद्या उपासना चिह्न इसकी रचना जटिल है। यह एक बिंदु के चारों ओर अनेक त्रिकोणों का क्रमबद्ध समागम है। श्री चक्र मानव जीवन के अपने केंद्र ‘‘स्व’’ तक की यात्रा का प्रतीक है। बिंदु स्व का, आत्मशक्ति का- मां त्रिपुर सुंदरी का प्रतीक है। त्रिभुज आवरण हैं। श्री यंत्र की आराधना नव (9) आवरण आराधना कही जाती है। जैसे-जैसे आवरण हटते जाते हैं उपसक अपने ही करीब आता जाता है। अंत में सब आवरण हटते ही उपासक मां त्रिपुर सुंदरी (स्वआत्मिक शक्ति) में लीन हो जाता है। यह बाहर से भीतर की यात्रा कुंडलिनी जागरण से भी संबंध रखती है। आदि शक्ति मूलाधार चक्र में सर्पाकार रूप में सुप्त अवस्था में उपस्थित होती है। कुंडलिनी योग और प्राणायाम से जाग्रत हो षटचक्रों को भेदती हुई सहस्त्राशार में पहुंच जाती है। यहां उपस्थित शिव तत्व में लीन होकर उपासक को परमानंद की अनुभूति देती है।

महीं मूलाधारे कमपि मणिपूरे हुतवहं स्थितं स्वाधिष्ठाने हृदि मरुतमाकाशमुपरि।
मनोऽपिभ्रूमध्ये सकलमपि भित्वा कुलपथं सहस्त्रारे पद्मे सह रहसि पत्या विहरसे।।

अर्थात्- हे भगवती! आप मूलाधार में पृथ्वीतत्व को, मणिपुर में जलतत्व को, स्वाधिष्ठान में अग्नितत्व को, हृदय में स्थित अनाहत में मरुतत्व को, विशुद्धि चक्र में आकाशतत्व को तथा भूचक्र में मनस्तत्व को इस प्रकार सारे चक्रों का भेदन कर सुषुम्ना मार्ग को भी छोड़कर सहस्त्रा पद्म में सर्वथा एकांत में अपने पति सदाशिव के साथ विहार करती हैं।

-सौंदर्य लहरी (9)
पंचदशाक्षरी मंत्र:
शिवःशक्तिः कामः क्षितिरथं रविश्शीत किरणः स्मरो हंसश्शक्रस्तदनु च परामार हरयः
अमी अहव्ल्लेखामिस्तिसृमिरवसानेषु घटिताः भजन्ते वर्णास्ते तव जननि नामावयवताम्

अर्थात क-शिवः, ए- शक्ति, ई-कामः, ल-क्षिति, ह्रीं-ह्रल्लेखा,-ह,-रवि, स-सोम, क- रूमर, ह- हंस ल-शुक्रः हल्लेखा - हृीं, स-परा शक्ति, क-मारः ल-हरि, हल्लेखा-ह्रीं- इस प्रकार तीन कूटबीजों की सृष्टि होती है। हे भगवती ! आपके नामरूप ये तीन कूट हैं। इनका जप करने से साधक का अतिहित होता है। -सौंदर्य लहरी (32)
इस श्लोक में गुप्त रूप से पंचदशाक्षरी मंत्र का वर्णन है। इस मंत्र के तीन भाग हैं- वाग्भव कूट अर्थात् वाहनि कुंडलिनी, कामराजकूट- सूर्य कुंडलिनी और शक्ति कूट- सोम कुंडलिनी।
उपरोक्त सभी विधियां सामान्य मनुष्य के लिए कठिन प्रतीत होती हैं। किसी भी ज्ञान या विद्या का मूल्यांकन उसकी व्यवहारिकता से किया जाता है। यदि किसी विद्या का प्रयोग मनुष्य रोजमर्रा के जीवन में अपने विविध कार्य कलापों के लिए न कर सके तो उसका कोई प्रयोजन नहीं रह जाता। इसके लिए आदि गुरु शंकराचार्य ने अपने ग्रंथ सौंदर्य लहरी में एक सरल विधि बतायी है।

जपो जल्पः शिल्पं सकलमपि मुद्राविरचना गतिः प्रादक्षिण्यक्रमणमशनाद्या हुतविधिः।
प्रणामः संवेशः सुखमखिल मात्मार्पणदुशा सपर्यापर्यायस्तव भवतु यन्मे विलसितम्।।

अर्थात- हे भगवती! आत्मार्पण दृष्टि से इस देह से जो कुछ भी बाह्यन्तर साधन किया हो, वह अपनी आराधना रूप मान लें और स्वीकार करें। मेरा बोलना आपके लिए मंत्र जप हो जाए, शिल्पादि बाह्य क्रिया मुद्रा प्रदर्शन हो जाए, देह की गति (चलना) आपकी प्रदक्षिणा हो जाए, देह का सोना (शयन) अष्टांग नमस्कार हो तथा दूसरे शारीरिक सुख या दुख भोग भी सर्वार्पण भाव में आप स्वीकार करें।

स्पष्ट है कि यह अत्यंत सरल मार्ग है। आत्म समर्पण भाव से यदि श्री विद्या उपासना की जाए तो शीघ्र ही मां त्रिपुरा उपासक के जीवन का संचालन स्वयं करती हैं। उपासक सुख, समृद्धि सफलता तो पाता ही है, सत् चित आनंद भी उसके लिए सुलभ और सहज हो जाते हैं अर्थात् भौतिक और आत्मिक सुख दोनों प्राप्त हो जाते हैं। यही भोग, मोक्ष प्रदायिनी मां की अपने भक्तों से प्रतिज्ञा है।
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6>a-जीवन का असलियत

व्यवहार मीठा ना हों तो हिचकियाँ भी नहीं आती,
बोल मीठे न हों तो कीमती मोबाईलो पर घन्टियां भी नहीं आती।
घर बड़ा हो या छोटा, अग़र मिठास ना हो,
तो ईंसान तो क्या, चींटियां भी नजदीक नहीं आती।
जीवन का 'आरंभ' अपने रोने से होता हैं..,
और
जीवन का 'अंत' दूसरों के रोने से,
इस "आरंभ और अंत" के बीच का समय
भरपूर हास्य भरा हो...
बस यही सच्चा जीवन है...!!!
हे प्रभु
न किसी का फेंका हुआ मिले,
न किसी से छीना हुआ मिले,
मुझे बस मेरे नसीब मे
लिखा हुआ मिले,
ना मिले ये भी तो
कोई ग़म नही
मुझे बस मेरी मेहनत का
किया हुआ मिले..
=============================                  

b- गरीब दूर तक चलता है..... खाना खाने के लिए......।
 अमीर मीलों चलता है..... खाना पचाने के लिए......।
 किसी के पास खाने के लिए..... एक वक्त की रोटी नहीं है.....
 किसी के पास खाने के लिए..... वक्त नहीं है.....।
 कोई लाचार है.... इसलिए बीमार है....।
 कोई बीमार है.... इसलिए लाचार है....।
 कोई अपनों के लिए.... रोटी छोड़ देता है...।
 कोई रोटी के लिए..... अपनों को छोड़ देते है....।
 ये दुनिया भी कितनी निराळी है। कभी वक्त मिले तो सोचना....
 कभी छोटी सी चोट लगने पर रोते थे.... आज दिल टूट जाने पर भी संभल जाते है।
 पहले हम दोस्तों के साथ रहते थे... आज दोस्तों की यादों में रहते है...।
 पहले लड़ना मनाना रोज का काम था.... आज एक बार लड़ते है, तो रिश्ते खो जाते है।
 सच में जिन्दगी ने बहुत कुछ सीखा दिया, जाने कब हमकों इतना बड़ा बना दिया।
जिंदगी बहुत कम है, प्यार से जियो

c-रोज सिर्फ इतना करो 

गम को "Delete"-----------खुशी को "Save"-----------------रिश्तोँ को "Recharge"
दोस्ती को "Download"----दुश्मनी को "Erase"-------------सच को "Broadcast"
झूठ को "Switch Off"-----टेँशन को "Not Reachable"-----प्यार को "Incoming"
नफरत को "Outgoing"----हँसी को "Inbox"----------------आंसुओँ को "Outbox"
गुस्से को "Hold"------------मुस्कान को "Send"--------------हेल्प को "OK"
दिल को करो "Vibrate"----फिर देखो जिँदगी का
-----------"RINGTONE" कितना प्यारा बजता हैं---------------------------------


d-जिबन के सत्य ता 

"जो भाग्य में है , वह
भाग कर आएगा,
जो नहीं है , वह
आकर भी भाग जाएगा...!"

यहाँ सब कुछ बिकता है ,
दोस्तों रहना जरा संभाल के ,
बेचने वाले हवा भी बेच देते है ,
गुब्बारों में डाल के ,

सच बिकता है , झूट बिकता है,
बिकती है हर कहानी ,
तीनों लोक में फेला है , फिर भी
बिकता है बोतल में पानी ,

कभी फूलों की तरह मत जीना,
जिस दिन खिलोगे ,
टूट कर बिखर्र जाओगे ,
जीना है तो पत्थर की तरह जियो;
जिस दिन तराशे गए ,
"भगवान" बन जाओगे....!!
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e-"रिश्ता" दिल से होना चाहिए, शब्दों से नहीं,
"नाराजगी" शब्दों में होनी चाहिए दिल में नहीं!
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f-सड़क कितनी भी साफ हो
"धुल" तो हो ही जाती है,
इंसान कितना भी अच्छा हो
"भूल" तो हो ही जाती है!!!
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g-आइना और परछाई के
जैसे मित्र रखो क्योकि
आइना कभी झूठ नही बोलता और परछाई कभी साथ नही छोङती......
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h-खाने में कोई 'ज़हर' घोल दे तो
एक बार उसका 'इलाज' है..
लेकिन 'कान' में कोई 'ज़हर' घोल दे तो,
उसका कोई 'इलाज' नहीं है।
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i-"मैं अपनी 'ज़िंदगी' मे हर किसी को
'अहमियत' देता हूँ...क्योंकि
जो 'अच्छे' होंगे वो 'साथ' देंगे...
और जो 'बुरे' होंगे वो 'सबक' देंगे...!!
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j-अगर लोग केवल जरुरत पर
ही आपको याद करते है तो
बुरा मत मानिये बल्कि
गर्व कीजिये क्योंकि "
मोमबत्ती की याद तभी आती है,
जब अंधकार होता है।"
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7>घरेलु परेशानियों के निवारण हेतु सामान्य/घरेलु ---उपाय/समाधान---

1 .शुद्ध शहद में सुरमे की पांच डलिया डाल कर घर में अथवा व्यवसायिक स्थान पर रखे कारोबार में वृदि होगी शत्रुता कम होगी

२. जो बच्चे रात को डर कर अथवा चोंक कर उठते है उनके सिरहाने के नीचे लोहे की छोटी सी पत्ती (सब्जी काटने वाली छुरी) रखे ||

३.अगर कोई बड़ा व्यक्ति रात को डर कर उठता है तो उसके सिरहाने के नीचे हनुमान चालीसा रखे और सोने से पहले हाथ पैर अच्छे ढंग से धोकर सोये||

४.घर में अथवा व्यवसायिक स्थान पर नमक मिले पानी का पोचा लगाये तो घर में नकारत्म्कता कम होगी||
५. नकारत्मक सोच वाले लोगो के पास ज्यादा देर मत बैठे अपितु उनसे कोई भी नई योजना सम्बन्धी विचार विमर्श मत करे||
६. कोर्ट कचहरी में जज के समक्ष कभी भी छाती नंगी और मस्तक ढांक कर पेश न होवे||
७. सप्ताह में एक बार पोधो वाले स्थान पर गुड अथवा मीठी चीज बिखेर देवें ||
८. चलते जल में ताम्बे के सिक्के डाले ||
९. घर में देवी देवतायो के कम से कम चित्र लगाए |
१०. किसी भी भी देवी देवता का खंडित चित्र अथवा प्रतिमा मत रखे||
११. रात को घर में बने पूजा स्थल को विधिवत पर्दे से ढांप कर रखे ||
१२. घर में जगह जगह दवाईया एक बक्से में रखे जगह जगह दवाए रखनी घर में बीमारी को बुलावा देने के सामान है||
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8>जीवन में संघर्ष आवश्यक है

एक बार एक व्यक्ति को अपने बगीचे में टहलते हुए किसी टहनी से लटकता हुआ एक तितली का कोकून दिखाई दिया, अब प्रतिदिन वह व्यक्ति उसे देखने लगा , और एक दिन उसने गौर किया कि उस कोकून में एक छोटा सा छेद बन गया है| उस दिन वो वहीं बैठ गया और घंटो उसे देखता रहा| उसने देखा की तितली उस खोल से बाहर निकलने की बहुत कोशिश कर रही है , पर बहुत देर तक प्रयास करने के
बाद भी वो उस छेद से नहीं निकल पायी और फिर वो बिलकुल शांत हो गयी मानो उसने हार मान ली हो|
इसलिए उस आदमी ने निश्चय किया कि वो उस तितली की मदद करेगा, उसने एक कैंची उठायी और कोकून के छेद को इतना बड़ा कर दिया की वो तितली आसानी से बाहर निकल सके और यही हुआ,
वह तितली बिना किसी और संघर्ष के आसानी से बाहर निकल आई, पर उसका शरीर सूजा हुआ था,और पंख सूखे हुए थे|
वह व्यक्ति तितली को यह सोच कर देखता रहा कि वो किसी भी समय अपने पंख फैला कर उड़ने लगेगी, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ| इसके उलट बेचारी तितली कभी उड़ ही नहीं पाई और उसे अपनी बाकी की ज़िन्दगी इधर-उधर घिसटते हुए बितानी पड़ी|
वो आदमी अपनी दया और जल्दबाजी में ये नहीं समझ पाया कि असल में कोकून से निकलने की प्रक्रिया को प्रकृति ने इतना कठिन इसलिए बनाया है ताकि ऐसा करने से तितली के शरीर में मौजूद तरल उसके पंखों में पहुच सके और वो छेद से बाहर निकलते ही उड़ सके|
वास्तव में कभी-कभी हमारे जीवन में संघर्ष ही वो चीज होती जिसकी हमें सचमुच आवश्यकता होती है. यदि हम बिना किसी संघर्ष के सब कुछ पाने लगे तो हम भी एक अपंग के सामान हो जायेंगे| बिना परिश्रम और संघर्ष के हम कभी उतने मजबूत नहीं बन सकते जितना हमारी क्षमता है, इसलिए जीवन में आने वाले कठिन पलों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखिये वो आपको कुछ ऐसा सीखा जायंगे जो आपकी ज़िन्दगी की उड़ान को संभव बना पायेंगे|
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9>" द " शब्द वाली वस्तु " स " शब्द में बहुत ही जल्दी बदलती है

*भगवान के दरबार में
" द " शब्द वाली वस्तु
" स " शब्द में बहुत ही जल्दी बदलती है*🌹


जैसे दुःख बदल जाता है सुख में🌹
दुविधा बदल जाती है सुविधा में 🌹
दुर्गुण बदल जाते हैं सद्‍गुण में
दुर्बलता बदल जाती है सबलता में🌹
दरिद्रता बदल जाती है संपन्नता में-🌹
दुर्विचार बदल जाते हैं सद्विचार में🌹
दुर्व्यव्हार बदल जाता है सद्व्यव्हार में-🌹
दुष्परिणाम बदल जाते हैं सद् परिणाम में🌹
दुराचार बदल जाता है सदाचार में---🌹
दाग बदल जाते हैं साख में🌹
दुर्भावना बदल जाती है सद् भावना में...🌹
🏻 ॐ नमःसवित्रे
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10>a>33 करोड नहीँ 33 कोटी देवी देवता हैँ हिँदू
धर्म मेँ।

कोटि = प्रकार।
देवभाषा संस्कृत में कोटि के दो अर्थ होते है,

कोटि का मतलब प्रकार होता है और एक अर्थ करोड़ भी होता।

हिन्दू धर्म का दुष्प्रचार करने के लिए ये बात उडाई गयी की हिन्दुओ के 33 करोड़ देवी देवता हैं और अब तो मुर्ख हिन्दू खुद ही गाते फिरते हैं की हमारे 33 करोड़ देवी देवता हैं...

कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैँ हिँदू धर्म मे :-

12 प्रकार हैँ
आदित्य , धाता, मित, आर्यमा,
शक्रा, वरुण, अँश, भाग, विवास्वान, पूष,
सविता, तवास्था, और विष्णु...!

8 प्रकार हे :-
वासु:, धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष।

11 प्रकार है :-
रुद्र: ,हर,बहुरुप, त्रयँबक,
अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी,
रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली।

एवँ
दो प्रकार हैँ अश्विनी और कुमार।

कुल :- 12+8+11+2=33 कोटी
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b> तीन ऋण -
देव ऋण ,=पितृ ऋण ,=ऋषि ऋण !

c> चार युग -

सतयुग ,=त्रेतायुग ,=द्वापरयुग ,=कलियुग !

 चार धाम -

द्वारिका ,=बद्रीनाथ ,=जगन्नाथ पुरी ,=रामेश्वरम धाम !

चारपीठ -

शारदा पीठ ( द्वारिका )=ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम )
गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) ,=शृंगेरीपीठ !

चार वेद-

ऋग्वेद ,=अथर्वेद ,=यजुर्वेद ,=सामवेद !

 चार आश्रम -

ब्रह्मचर्य ,=गृहस्थ ,=वानप्रस्थ ,=संन्यास !

 चार अंतःकरण -

मन ,=बुद्धि ,=चित्त ,=अहंकार !

 पञ्च गव्य -

गाय का घी ,=दूध ,=दही ,=गोमूत्र ,=गोबर !

📜😇 पञ्च देव -

गणेश ,=विष्णु ,=शिव ,=देवी ,=सूर्य !

 पंच तत्त्व -

पृथ्वी ,=जल ,=अग्नि ,=वायु ,=आकाश !

 छह दर्शन -

वैशेषिक ,=न्याय ,=सांख्य ,=योग ,
पूर्व मिसांसा ,=दक्षिण मिसांसा !

 सप्त ऋषि -

विश्वामित्र ,=जमदाग्नि ,=भरद्वाज ,=गौतम ,
अत्री ,=वशिष्ठ और= कश्यप!

 सप्त पुरी -

अयोध्या पुरी ,=मथुरा पुरी ,=माया पुरी ( हरिद्वार ) ,=काशी ,
कांची=( शिन कांची - विष्णु कांची ) ,=अवंतिका और=द्वारिका पुरी !

 आठ योग -

यम ,=नियम ,=आसन ,=प्राणायाम ,
प्रत्याहार ,=धारणा ,=ध्यान एवं=समािध !

 आठ लक्ष्मी -

आग्घ ,=विद्या ,=सौभाग्य ,=अमृत ,
काम ,=सत्य ,=भोग ,एवं=योग लक्ष्मी !

नव दुर्गा --

शैल पुत्री ,=ब्रह्मचारिणी ,=चंद्रघंटा ,=कुष्मांडा ,
स्कंदमाता ,=कात्यायिनी ,=कालरात्रि ,=महागौरी एवं
सिद्धिदात्री !

मुख्य ११ अवतार -

मत्स्य ,=कच्छप ,=वराह ,=नरसिंह ,=वामन ,
परशुराम ,=श्री राम ,=कृष्ण ,=बलराम ,=बुद्ध ,
एवं कल्कि !

 बारह ज्योतिर्लिंग -

सोमनाथ ,=मल्लिकार्जुन ,=महाकाल ,=ओमकारेश्वर ,
बैजनाथ ,=रामेश्वरम ,=विश्वनाथ ,=त्र्यंबकेश्वर ,
केदारनाथ ,=घुष्नेश्वर ,=भीमाशंकर ,=नागेश्वर !

  स्मृतियां -

मनु ,=विष्णु ,=अत्री ,=हारीत ,=याज्ञवल्क्य ,=उशना ,=अंगीरा ,=यम ,
आपस्तम्ब ,=सर्वत ,=कात्यायन ,=ब्रहस्पति ,=पराशर ,=व्यास ,
शांख्य ,=लिखित ,=दक्ष ,=शातातप ,=वशिष्ठ ! u

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