दक्षिणावर्ती शंख हिंदू संस्कृति में शंखों का विशेष महत्व है। पूजा अनुष्ठानों तथा अन्य मांगलिक उत्सवों में शंखों का उपयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त इनका उपयोग विभिन्न कामनाओं की पूर्ति हेतु और विभिन्न रोगों की चिकित्सा में भी किया जाता है। वैसे तो शंख अनेक प्रकार के होते हैं, लेकिन उनमें दो मुख्य हैं- दक्षिणावर्ती और वामावर्ती। अनेक चमत्कारी गुणों के कारण दक्षिणावर्ती शंख का अपना विशेष महत्व है। यह दुर्लभ तथा सर्वाधिक मूल्यवान होता है। असली दक्षिणावर्ती शंख को प्राण प्रतिष्ठित कर के उद्योग-व्यवसाय स्थल, कार्यालय, दुकान अथवा घर में स्थापित कर उसकी पूजा करने से दुख-दारिद्र्य से मुक्ति मिलती है और घर में स्थिर लक्ष्मी का वास होता है। इस शंख की स्थापना करते समय निम्नलिखित श्लोक करना चाहिए। दक्षिणावर्तेशंखाय यस्य सद्मनितिष्ठति। मंगलानि प्रकुर्वंते तस्य लक्ष्मीः स्वयं स्थिरा। चंदनागुरुकर्पूरैः पूजयेद यो गृहेडन्वहम्। स सौभाग्य कृष्णसमो धनदोपमः।। यह विशिष्ट शंख शत्रुओं को निर्बल और रोग, अज्ञान तथा दारिद्र्य को दूर करने वाला और आयुवर्धक होता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है- शंख चंद्रार्कदैवत्यं मध्य वरुणदैवतन्। पृष्ठे प्रजापर्ति विद्यादग्रे गंगा सरस्वतीम्।। त्रैलोक्ये यानि तीर्थापि वासुदेवस्य चाज्ञया। शंखे तिष्ठन्ति विप्रेन्द्र तस्मा शंख प्रपुजयेत्।। दर्शनेन हि शंखस्य की पुनः स्पर्शनेन तु। विलयं यातिं पापनि हिमवद् भास्करोदयेः।। यह शंख चंद्र्र और सूर्य के समान देव स्वरूप है। इसके मध्य भाग में वरुण और पृष्ठ भाग में गंगा के साथ-साथ सारे तीर्थों का वास है। इसे कुबेर का स्वरूप भी माना जाता है। अतः इसकी पूजा अवश्य ही करनी चाहिए। इसके दर्शन मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। महर्षि मार्कण्डेय के अनुसार दक्षिावर्ती शंख की पूजा उपासना लक्ष्मी प्राप्ति का सर्वोत्तम उपाय है। भगवत्पाद आद्यगुरु शंकराचार्य के अनुसार दक्षिणावर्ती शंख की स्थापना एक श्रेष्ठ तांत्रिक प्रयोग है, जिसका प्रभाव तुरंत और अचूक होता है। इस तरह हमारे ऋषि मुनियों ने अपनी अपनी संहिताओं में दक्षिणावर्ती शंख का विशद उल्लेख किया है। वांछित फल की प्राप्ति के लिए इस शंख की अष्ट लक्ष्मी और सिद्ध कुबेर मंत्रों से प्राण प्रतिष्ठा कर स्थापना करनी चाहिए। जिस घर मंे यह शंख रहता है वह सदा धन-धान्य से भरा रहता है। इसके अतिरिक्त जिस परिवार में शास्त्रोक्त उपायों द्वारा इसकी स्थापना की जाती है उस पर भूत, प्रेत, पिशाच, ब्रह्म, राक्षस आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। शत्रुपक्ष कितना भी बलशाली क्यों न हो उस घर का कुछ नहीं बिगाड़ सकते। इसके प्रभाव से दुर्घटना, मृत्यु भय, चोरी आदि से रक्षा होती है। शंख को सुख-समृद्धि, यश, कीर्ति तथा लक्ष्मी का साक्षात् प्रतीक माना गया है। धार्मिक कृत्यों, अनुष्ठान-साधना, तांत्रिक-क्रियाओं आदि में सफलता हेतु शंख का प्रयोग किया जाता है। दोषमुक्त शंख को किसी शुभ मुहूर्त में गंगाजल, गोघृत, कच्चे दूध, मधु, गुड़ आदि से अभिषेक करके अपने पूजा स्थल में लाल कपड़े के आसन पर स्थापित करें, घर में लक्ष्मी का वास बना रहेगा। लक्ष्मी जी की विशेष कृपा हेतु दक्षिणावर्ती शंख का जोड़ा, अर्थात् नर और मादा, देव प्रतिमा के सम्मुख स्थापित करें। शास्त्रों में अलग अलग प्रयोजनों हेतु अलग अलग शंखों का उल्लेख मिलता है। इस संदर्भ में एक संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है। अन्नपूर्णा शंख स्थापित करने से घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है। मणि पुष्पक तथा पांच जन्य शंख की स्थापना से घर का वास्तु दोष दूर होता है। इस शंख में जल भरकर घर में छिड़कने से सौभाग्य का आगमन होता है। गणेश शंख जल भर कर उसका सेवन करने से अनेक रोगों का शमन होता है। विष्णु शंख से कार्य स्थल में जल छिड़काव करने से उन्नति के अवसर बनने लगते हैं। दक्षिणावर्ती शंख कल्प करने के इच्छुक साधकों को निम्नलिखित सरल प्रयोग करना चाहिए। पूजन सामग्री - दोषमुक्त तथा पवित्र शंख, शुद्ध घी का दीपक, अगरबत्ती, कुंकुम, केसर, चावल, जलपात्र और दूध। विधि: शंख को दूध तथा जल से स्नान कराकर साफ कपड़े से उसे पोंछ कर उस पर चांदी का बर्क लगाएं। फिर घी का दीपक और जला लें। इसके बाद दूध तथा केसर के मिश्रण से शंख पर श्री एकाक्षरी मंत्र लिखकर उसे तांबे अथवा चांदी के पात्र में स्थापित कर दें।
अब निम्नलिखित मंत्र का जप करते हुए उस पर कुंकुम, चावल तथा इत्र अर्पित करें। फिर श्वेत पुष्प चढ़ाकर भोग के रूप में प्रसाद अर्पित करें।
मंत्र: ¬ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीधर करस्थायपयोनिधि जाताय श्री। दक्षिणावर्ती शंखाय ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीकराय पूज्याय नमः।।
ध्यान मंत्र - ¬ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं श्रीदक्षिणावर्तशंखाय भगवते विश्वरूपाय सर्वयोगोश्वराय त्रैलोक्यनाथाय सर्वकामप्रदाय सर्वऋद्धि समृद्धि वांछितार्थसिद्धिदाय नमः। ¬ सर्वाभरण भूषिताय प्रशस्यांगोपांगसंयुताय कल्पवृक्षाध- स्थितायकामधेनु चिंतामणि-नवनिधिरूपाय चतुर्दश रत्न परिवृताय महासिद्धि-सहिताय लक्ष्मीदेवता युताय कृष्ण देवताकर ललिताय श्री शंखमहानिधिये नमः।
ध्यान मंत्र आवाहन अर्थात् स्तुति मंत्र है। इसके अतिरिक्त बीज मंत्र अथवा पांच जन्य गायत्री शंख मंत्र का ग्यारह माला जप करना भी आवश्यक है।
बीज मंत्र: ¬ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लू दक्षिणमुखाय शंखनिधये समुद्रप्रभावय नमः। शंख का शाबर मंत्र: ¬ दक्षिणावर्ते शंखाय मम् गृह धनवर्षा कुरु-कुरु नमः।।
शंख गायत्री मंत्र: ¬ पांचजन्याय विद्महे। पावमानाय धीमहि। तंन शंखः प्रचोदयात्। ऋद्धि-सिद्धि तथा सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए प्रयोग करें। दोषमुक्त दक्षिणावर्ती शंख का ऊपर वर्णित ध्यान मंत्र से पूजन करें। फिर गायत्री और बीज मंत्र दोनों का शंख के सामने बैठकर जप करते रहें।
एक मंत्र पूरा होने पर शंख में अग्नि में सामग्री होम करने की तरह चावल तथा नागकेसर दाएं हाथ के अंगूठे, मध्यमा तथा अनामिका से छोड़ते रहें। जब शंख भर जाए तो उसे घर में स्थापित कर लें।
ध्यान रखें कि शंख की पूंछ उत्तर -पूर्व दिशा की ओर रहे। किसी शुभ मुहूर्त अथवा दीवाली से पूर्व धन त्रयोदशी के दिन पुराने चावल तथा नागकेसर ऊपर वर्णित विधि से पुनः बदल लिया करें। इस प्रकार सिद्ध किया हुआ शंख लाला कपड़े में लपेटकर धन, आभूषण आदि रखने के स्थान पर स्थापित करने से जीवन के हर क्षेत्र में निरंतर श्री की प्राप्ति होने लगती है।
व है। इस शंख को विधि-विधान पूर्वक घर में रखने से कई प्रकार की बाधाएं शांत हो जाती है और धन की भी कमी नहीं होती। दक्षिणावर्ती शंख के अनेक लाभ हैं, लेकिन इसे घर में रखने से पहले इसका शुद्धिकरण अवश्य करना चाहिए।
लाल कपड़े के ऊपर दक्षिणावर्ती शंख को रखकर इसमें गंगाजल भरें और कुश के आसन पर बैठकर इस मंत्र का जप करें-
1- दक्षिणावर्ती शंख को अन्न भण्डार में रखने से अन्न, धन भण्डार में रखने से धन, वस्त्र भण्डार में रखने से
वस्त्र की कभी कमी नहीं होती। शयन कक्ष में इसे रखने से शांति का अनुभव होता है।
2- इसमें शुद्ध जल भरकर, व्यक्ति, वस्तु, स्थान पर छिड़कने से दुर्भाग्य, अभिशाप, तंत्र-मंत्र आदि का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
3- किसी भी प्रकार के टोने-टोटके इस शंख के आगे निष्फल हो जाते हैं। दक्षिणावर्ती शंख जहां भी रहता है,
5>गुंजा=श्वेत कुच, लाल कुच
गुंजा का प्रयोग अनेक तांत्रिक कार्यों में होता है. यह एक लता का बीज होता है. जो लाल रंग का होता है. सफ़ेद और काले रंग की गुंजा भी मिल सकती है. काली गुंजा बहुत दुर्लभ होती है और वशीकरण के कार्यों में रामबाण की तरह काम करती है. गुंजा के बीजों के अलावा उसकी जड़ को बहुत उपयोगी मन गया है. गुंजा की महिमा कुछ इस प्रकार है
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१. आप जिस व्यक्ति का वशीकरण करना चाहते हों उसका चिंतन करते हुए मिटटी का दीपक लेकर अभिमंत्रित गुंजा के ५ दाने लेकर शहद में डुबोकर रख दें. इस प्रयोग से शत्रुभी वशीभूत हो जाते हैं. यह प्रयोग ग्रहण काल, होली, दीवाली, पूर्णिमा, अमावस्या की रात में यह प्रयोग में करने से बहुत फलदायक होता है.
२. गुंजा के दानों को अभिमंत्रित करके जिस व्यक्ति के पहने हुए कपड़े या रुमाल में बांधकर रख दिया जायेगा वह वशीभूत हो जायेगा. जब तक कपड़ा खोलकर गुंजा के दाने नहीं निकले जायेंगे वह व्यक्ति वशीकरण के प्रभाव में रहेगा.
३. जिस व्यक्ति को नजर बहुत लगती हो उसको गुंजा का ब्रासलेट कलाई पर बांधना चाहिए. किसी सभा में या भीड़ भाद वाली जगह पर जाते समय गुंजा का ब्रासलेट पहनने से दूसरे लोग प्रभावित होते हैं.
४. गुंजा की माला गले में धारण करने से सर्वजन वशीकरण का प्रभाव होता है.
काली गुंजा की विशेषता है कि जिस व्यक्ति के पास होती है, उस पर मुसीबत पड़ने पर इसका रंग स्वतः ही बदलने लगता है ।
रक्तगुंजा: गुंजा का बीज होता है, जो लाल रंग का होता है। इस पर काले रंग का छोटा सा बिंदू बना होता है। लक्ष्मी की प्राप्ति व उसे चिरकाल तक स्थिर रखने हेतु गुंजा का प्रयोग किया जाता है। तंत्रशास्त्र में इसका कई रूपों में प्रयोग होता है।
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गुंजा
a=गुंजा की लता पर लगी फली में बीज
गुंजा या रत्ती (Coral Bead) लता जाति की एक वनस्पति है। शिम्बी के पक जाने पर लता शुष्क हो जाती है। गुंजा के फूल सेम की तरह होते हैं। शिम्बी का आकार बहुत छोटा होता है, परन्तु प्रत्येक में 4-5 गुंजा बीज निकलते हैं अर्थात सफेद में सफेद तथा रक्त में लाल बीज निकलते हैं। अशुद्ध फल का सेवन करने से विसूचिका की भांति ही उल्टी और दस्त हो जाते हैं। इसकी जड़े भ्रमवश मुलहठी के स्थान में भी प्रयुक्त होती है।
गुंजा गुंजा दो प्रकार की होती है।विभिन्न भाषाओं में नामअंग्रेजी Coral Bead हिन्दी गुंजा, चौंटली, घुंघुची, रत्ती संस्कृत सफेद केउच्चटा, कृष्णला, रक्तकाकचिंची बंगाली श्वेत कुच, लाल कुच मराठी गुंजा गुजराती धोलीचणोरी, राती, चणोरी तेलगू गुलुविदे फारसी चश्मेखरुस अरबी हबसुफेद
हानिकारक प्रभाव
पाश्चात्य मतानुसार गुंजा के फलों के सेवन से कोई हानि नहीं होती है। परन्तु क्षत पर लगाने से विधिवत कार्य करती है। सुश्रुत के मत से इसकी मूल गणना है।
गुंजा को आंख में डालने से आंखों में जलन और पलकों में सूजन हो जाती है।
गुण
दोनों गुंजा, वीर्यवर्द्धक (धातु को बढ़ाने वाला), बलवर्द्धक (ताकत बढ़ाने वाला), ज्वर, वात, पित्त, मुख शोष, श्वास, तृषा, आंखों के रोग, खुजली, पेट के कीड़े, कुष्ट (कोढ़) रोग को नष्ट करने वाली तथा बालों के लिए लाभकारी होती है। ये अन्यंत मधूर, पुष्टिकारक, भारी, कड़वी, वातनाशक बलदायक तथा रुधिर विकारनाशक होता है। इसके बीज वातनाशक और अति बाजीकरण होते हैं। गुन्जा से वासिकर्न भि कर सक्ते ही ग्न्जा
अंग्रेजी Coral Bead हिन्दी गुंजा, चौंटली, घुंघुची, रत्ती संस्कृत सफेद केउच्चटा, कृष्णला, रक्तकाकचिंची बंगाली श्वेत कुच, लाल कुच मराठी गुंजा गुजराती धोलीचणोरी, राती, चणोरी तेलगू गुलुविदे फारसी चश्मेखरुस अरबी हबसुफेद
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b=चमत्कारी तंत्र वनस्पति गुंजा
चमत्कारी है गुंजा
तांत्रिक जड़ीबूटियां भाग -9
गुंजा एक फली का बीज है। इसको धुंघची, रत्ती आदि नामों से जाना जाता है। इसकी बेल काफी कुछ मटर की तरह ही लगती है किन्तु अपेक्षाकृत मजबूत काष्ठीय तने वाली। इसे अब भी कहीं कहीं आप सुनारों की दुकानों पर देख सकते हैं। कुछ वर्ष पहले तक सुनार इसे सोना तोलने के काम में लेते थे क्योंकि इनके प्रत्येक दाने का वजन लगभग बराबर होता है करीब 120 मिलीग्राम। ये हमारे जीवन में कितनी बसी है इसका अंदाज़ा मुहावरों और लोकोक्तियों में इसके प्रयोग से लग जाता है।
यह तंत्र शास्त्र में जितनी मशहूर है उतनी ही आयुर्वेद में भी। आयुर्वेद में श्वेत गूंजा का ही अधिक प्रयोग होता है औषध रूप में साथ ही इसके मूल का भी जो मुलैठी के समान ही स्वाद और गुण वाली होती है। इसीकारण कई लोग मुलैठी के साथ इसके मूल की भी मिलावट कर देते हैं।
वहीं रक्त गूंजा बेहद विषैली होती है और उसे खाने से उलटी दस्त पेट में मरोड़ और मृत्यु तक सम्भव है। आदिवासी क्षेत्रों में पशु पक्षी मारने और जंगम विष निर्माण में अब भी इसका प्रयोग होता है।
गुंजा की तीन प्रजातियां मिलती हैं:-
1• रक्त गुंजा: लाल काले रंग की ये प्रजाति भी तीन तरह की मिलती है जिसमे लाल और काले रंगों का अनुपात 10%, 25% और 50% तक भी मिलता है।
ये मुख्यतः तंत्र में ही प्रयोग होती है।
श्वेत गुंजा • श्वेत गुंजा में भी एक सिरे पर कुछ कालिमा रहती है। यह आयुर्वेद और तंत्र दोनों में ही सामान रूप से प्रयुक्त होती है। ये लाल की अपेक्षा दुर्लभ होती है।
काली गुंजा: काली गुंजा दुर्लभ होती है, आयुर्वेद में भी इसके प्रयोग लगभग नहीं हैं हाँ किन्तु तंत्र प्रयोगों में ये बेहद महत्वपूर्ण है।
इन तीन के अलावा एक अन्य प्रकार की गुंजा पायी जाती है पीली गुंजा ये दुर्लभतम है क्योंकि ये कोई विशिष्ट प्रजाति नहीं है किन्तु लाल और सफ़ेद प्रजातियों में कुछ आनुवंशिक विकृति होने पर उनके बीज पीले हो जाते हैं। इस कारण पीली गूंजा कभी पूर्ण पीली तो कभी कभी लालिमा या कालिमा मिश्रित पीली भी मिलती है।
इस चमत्कारी वनस्पति गुंजा के कुछ प्रयोग:-
1• सम्मान प्रदायक :
शुद्ध जल (गंगा का, अन्य तीर्थों का जल या कुएं का) में गुंजा की जड़ को चंदन की भांति घिसें। अच्छा यही है कि किसी ब्राह्मण या कुंवारी कन्या के हाथों से घिसवा लें। यह लेप माथे पर चंदन की तरह लगायें। ऐसा व्यक्ति सभा-समारोह आदि जहां भी जायेगा, उसे वहां विशिष्ट सम्मान प्राप्त होगा।
2• कारोबार में बरकत
किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार के दिन 1 तांबे का सिक्का, 6 लाल गुंजा लाल कपड़े में बांधकर प्रात: 11 बजे से लेकर 1 बजे के बीच में किसी सुनसान जगह में अपने ऊपर से 11 बार उसार कर 11 इंच गहरा गङ्ढा खोदकर उसमें दबा दें। ऐसा 11 बुधवार करें। दबाने वाली जगह हमेशा नई होनी चाहिए। इस प्रयोग से कारोबार में बरकत होगी, घर में धन रूकेगा।
3"• ज्ञान-बुद्धि वर्धक :
(क) गुंजा-मूल को बकरी के दूध में घिसकर हथेलियों पर लेप करे, रगड़े कुछ दिन तक यह प्रयोग करते रहने से व्यक्ति की बुद्धि, स्मरण-शक्ति तीव्र होती है, चिंतन, धारणा आदि शक्तियों में प्रखरता व तीव्रता आती है।
(ख) यदि सफेद गुंजा के 11 या 21 दाने अभिमंत्रित करके विद्यार्थियों के कक्ष में उत्तर पूर्व में रख दिया जाये तो एकाग्रता एवं स्मरण शक्ति में लाभ होता है।
4• वर-वधू के लिए :
विवाह के समय लाल गुंजा वर के कंगन में पिरोकर पहनायी जाती है। यह तंत्र का एक प्रयोग है, जो वर की सुरक्षा, समृद्धि, नजर-दोष निवारण एवं सुखद दांपत्य जीवन के लिए है। गुंजा की माला आभूषण के रूप में पहनी जाती है।
5• पुत्रदाता :
शुभ मुहुर्त में श्वेत गुंजा की जड़ लाकर दूध से धोकर, सफेद चन्दन पुष्प से पूजा करके सफेद धागे में पिरोकर। “ऐं क्षं यं दं” मंत्र के ग्यारह हजार जाप करके स्त्री या पुरूष धारण करे तो संतान सुख की प्राप्ती होती है।
6• वशीकरण -
(क) आप जिस व्यक्ति का वशीकरण करना चाहते हों उसका चिंतन करते हुए मिटटी का दीपक लेकर अभिमंत्रित गुंजा के ५ दाने लेकर शहद में डुबोकर रख दें. इस प्रयोग से शत्रु भी वशीभूत हो जाते हैं. यह प्रयोग ग्रहण काल, होली, दीवाली, पूर्णिमा, अमावस्या की रात में यह प्रयोग में करने से बहुत फलदायक होता है.
(ख) गुंजा के दानों को अभिमंत्रित करके जिस व्यक्ति के पहने हुए कपड़े या रुमाल में बांधकर रख दिया जायेगा वह वशीभूत हो जायेगा. जब तक कपड़ा खोलकर गुंजा के दाने नहीं निकले जायेंगे वह व्यक्ति वशीकरण के प्रभाव में रहेगा.
( गुंजा की माला गले में धारण करने से सर्वजन वशीकरण का प्रभाव होता है.
7• विद्वेषण में प्रयोग :
किसी दुष्ट, पर-पीड़क, गुण्डे तथा किसी का घर तोड़ने वाले के घर में लाल गुंजा - रवि या मंगलवार के दिन इस कामना के साथ फेंक दिये जाये - 'हे गुंजा ! आप मेरे कार्य की सिद्धि के लिए इस घर-परिवार में कलह (विद्वेषण) उत्पन्न कर दो' तो आप देखेंगे कि ऐसा ही होने लगता है।
8• विष-निवारण :
गुंजा की जड़ धो-सुखाकर रख ली जाये। यदि कोई व्यक्ति विष-प्रभाव से अचेत हो रहा हो तो उसे पानी में जड़ को घिसकर पिलायें।
इसको पानी में घिस कर पिलाने से हर प्रकार का विष उतर जाता है।
9• दिव्य दृष्टि :-
(क) अलौकिक तामसिक शक्तियों के दर्शन :
भूत-प्रेतादि शक्तियों के दर्शन करने के लिए मजबूत हृदय वाले व्यक्ति, गुंजा मूल को रवि-पुष्य योग में या मंगलवार के दिन- शुद्ध शहद में घिस कर आंखों में अंजन (सुरमा/काजल) की भांति लगायें तो भूत, चुडैल, प्रेतादि के दर्शन होते हैं।
(ख) गुप्त धन दर्शन :
अंकोल या अंकोहर के बीजों के तेल में गुंजा-मूल को घिस कर आंखों पर अंजन की तरह लगायें। यह प्रयोग रवि-पुष्य योग में, रवि या मंगलवार को ही करें। इसको आंजने से पृथ्वी में गड़ा खजाना तथा आस पास रखा धन दिखाई देता है।
10• शत्रु में भय उत्पन्न :
गुंजा-मूल (जड़) को किसी स्त्री के मासिक स्राव में घिस कर आंखों में सुरमे की भांति लगाने से शत्रु उसकी आंखों को देखते ही भाग खड़े होते हैं।
11• शत्रु दमन प्रयोग :
यदि लड़ाई झगड़े की नौबत हो तो काले तिल के तेल में गुंजामूल को घिस कर, उस लेप को सारे शरीर में मल लें। ऐसा व्यक्ति शत्रुओं को बहुत भयानक तथा सबल दिखाई देगा। फलस्वरूप शत्रुदल चुपचाप भाग जायेगा।
12• रोग - बाधा
(क) कुष्ठ निवारण प्रयोग :
गुंजा मूल को अलसी के तेल में घिसकर लगाने से कुष्ठ (कोढ़) के घाव ठीक हो जाते हैं।
(ख)अंधापन समाप्त :
गुंजा-मूल को गंगाजल में घिसकर आंखों मे लगाने से आंसू बहुत आते हैं।नेत्रों की सफाई होती है आँखों का जाल कटता है।
देशी घी (गाय का) में घिस कर लगाते रहने से इन दोनों प्रयोगों से अंधत्व दूर हो जाता है।
(ग) वाजीकरण:
श्वेत गुंजा की जड को गाय के शुद्ध घृत में पीसकर लेप तैयार करें। यह लेप शिश्न पर मलने से कामशक्ति की वृद्धि के साथ स्तंभन शक्ति में भी वृद्धि होती है।
13: नौकरी में बाधा
राहु के प्रभाव के कारण व्यवसाय या नौकरी में बाधा आ रही हो तो लाल गुंजा व सौंफ को लाल वस्त्र में बांधकर अपने कमरे में रखें।
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c=**दुर्लभ काली गुंजा के कुछ प्रयोग:
1• काली गुंजा की विशेषता है कि जिस व्यक्ति के पास होती है, उस पर मुसीबत पड़ने पर इसका रंग स्वतः ही बदलने लगता है ।
2• दिवाली के दिन अपने गल्ले के नीचे काली गुंजा जंगली बेल के दाने डालने से व्यवसाय में हो रही हानि रूक जाती है।
3• दिवाली की रात घर के मुख्य दरवाज़े पर सरसों के तेल का दीपक जला कर उसमें काली गुंजा के 2-4 दाने डाल दें। ऐसा करने पर घर सुरक्षित और समृद्ध रहता है।
4• होलिका दहन से पूर्व पांच काली गुंजा लेकर होली की पांच परिक्रमा लगाकर अंत में होलिका की ओर पीठ करके पाँचों गुन्जाओं को सिर के ऊपर से पांच बार उतारकर सिर के ऊपर से होली में फेंक दें।
5• घर से अलक्ष्मी दूर करने का लघु प्रयोग-
ध्यानमंत्र :
ॐ तप्त-स्वर्णनिभांशशांक-मुकुटा रत्नप्रभा-भासुरीं ।
नानावस्त्र-विभूषितां त्रिनयनां गौरी-रमाभ्यं युताम् ।
दर्वी-हाटक-भाजनं च दधतीं रम्योच्चपीनस्तनीम् ।
नित्यं तां शिवमाकलय्य मुदितां ध्याये अन्नपूर्णश्वरीम् ॥
मन्त्र :
ॐ ह्रीम् श्रीम् क्लीं नमो भगवति माहेश्वरि मामाभिमतमन्नं देहि-देहि अन्नपूर्णों स्वाहा ।
विधि :
जब रविवार या गुरुवार को पुष्प नक्षत्र हो या नवरात्र में अष्टमी के दिन या दीपावली की रात्रि या अन्य किसी शुभ दिन से इस मंत्र की एक माला रुद्राक्ष माला से नित्य जाप करें । जाप से पूर्व भगवान श्रीगणेश जी का ध्यान करें तथा भगवान शिव का ध्यान कर नीचे दिये ध्यान मंत्र से माता अन्नपूर्णा का ध्यान करें ।
इस मंत्र का जाप दुकान में गल्ले में सात काली गुंजा के दाने रखकर शुद्ध आसन, (कम्बल आसन, या साफ जाजीम आदि ) पर बैठकर किया जाए तो व्यापार में आश्चर्यजनक लाभ महसूस होने गेगा ।
6• कष्टों से छुटकारे हेतु
यदि संपूर्ण दवाओं एवं डाक्टर के इलाज के बावजूद भी यदि घुटनों और पैरों का दर्द दूर नहीं हो रहा हो तो रवि पुष्य नक्षत्र, शनिवार या शनि आमवस्या के दिन यह उपाय करें। प्रात:काल नित्यक्रम से निवृत हो स्नानोपरांत लोहे की कटोरी में श्रद्धानुसार सरसों का तेल भरें। 7 चुटकी काले तिल, 7 लोहे की कील और 7 लाल और 7 काली गुंजा उसमें डाल दें। तेल में अपना मुंह देखने के बाद अपने ऊपर से 7 बार उल्टा उसारकर पीपल के पेड़ के नीचे इस तेल का दीपक जला दें 21 परिक्रमा करें और वहीं बैठकर 108 बार
ऊँ शं विधिरुपाय नम:।।
इस मंत्र का जाप करें। ऐसा 11 शनिवार करें। कष्टों से छुटकारा मिलेगा।
पीली गुंजा:
1• पीले रंग की गुंजा के बीज ,हल्दी की गांठे, सात कौडियों की पूजा अर्चना करके श्री लक्ष्मीनारायण भगवान के मंत्रों से अभिमंत्रित करके पूजा स्थान में रखने से दाम्पत्य सुख एवं परिवार,मे एकता तथा आर्थिक व्यावसायिक सिद्धि मिलती है
2• इसकी माला या ब्रेसलेट धारण करने से व्यक्ति का चित्त शांत रहता है, तनाव से मुक्ति मिलती है।
3• पीत गुंजा की माला गुरु गृह को अनुकूल करती है।
4• अनिद्रा से पीड़ित लोगों को इसकी माला धारण करने से लाभ मिलता है।
5• बड़ी उम्र के जो लोग स्वप्न में डरते हैं या जिन्हें अक्सर ये लगता है की कोई उनका गला दबा रहा है उन्हें इसकी माला या ब्रेसलेट पहनना चाहिए।
अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।
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d=क्या आप जानते है बड़े काम की और चमत्कारी होती है गूंजा
गुंजा या रत्ती (Coral Bead) लता जाति की एक वनस्पति है। शिम्बी के पक जाने पर लता शुष्क हो जाती है। गुंजा के फूल सेम की तरह होते हैं। शिम्बी का आकार बहुत छोटा होता है, परन्तु प्रत्येक में 4-5 गुंजा बीज निकलते हैं अर्थात सफेद में सफेद तथा रक्त में लाल बीज निकलते हैं। अशुद्ध फल का सेवन करने से विसूचिका की भांति ही उल्टी और दस्त हो जाते हैं। इसकी जड़े भ्रमवश मुलहठी के स्थान में भी प्रयुक्त होती है
इसको चिरमिटी, धुंघची, रत्ती आदि नामों से जाना जाता है। इसे आप सुनारों की दुकानों पर देख सकते हैं। इसका वजन एक रत्ती होता है, जो सोना तोलने के काम आती है। यह तीन रंगों में मिलती है। सफेद गुंजा का प्रयोग तंत्र तथा उपचार में होता है, न मिलने पर लाल गुंजा भी प्रयोग में ली जा सकती है। परंतु काली गुंजा दुर्लभ होती है।
गुंजा का प्रयोग अनेक तांत्रिक कार्यों में होता है. यह एक लता का बीज होता है. जो लाल रंग का होता है. सफ़ेद और काले रंग की गुंजा भी मिल सकती है. काली गुंजा बहुत दुर्लभ होती है और वशीकरण के कार्यों में रामबाण की तरह काम करती है. गुंजा के बीजों के अलावा उसकी जड़ को बहुत उपयोगी मन गया है. गुंजा की महिमा कुछ इस प्रकार है -
वर-वधू के लिए : विवाह के समय लाल गुंजा वर के कंगन में पिरोकर पहनायी जाती है। यह तंत्र का एक प्रयोग है, जो वर की सुरक्षा, समृद्धि, नजर-दोष निवारण एवं सुखद दांपत्य जीवन के लिए है। गुंजा की माला आभूषण के रूप में पहनी जाती है। भगवान श्री कृष्ण भी गुंजामाला धारण करते थे। पुत्र की चाह वाली स्वस्थ स्त्री, शुभ नक्षत्र में गुंजा की जड़ को ताबीज में भरकर कमर में धारण करें। ऐसा करने से स्त्री पुत्र लाभ करती है।
विद्वेषण में प्रयोग :
किसी दुष्ट, पर-पीड़क, गुण्डे तथा किसी का घर तोड़ने वाले के घर में लाल गुंजा - रवि या मंगलवार के दिन इस कामना के साथ फेंक दिये जाये - 'हे गुंजा ! आप मेरे कार्य की सिद्धि के लिए इस घर-परिवार में कलह (विद्वेषण) उत्पन्न कर दो' तो आप देखेंगे कि ऐसा ही होने लगता है। विष-निवारण : गुंजा की जड़ धो-सुखाकर रख ली जाये।
यदि कोई व्यक्ति विष-प्रभाव से अचेत हो रहा हो तो उसे पानी में जड़ को घिसकर पिलायें। इसको पानी में घिस कर पिलाने से हर प्रकार का विष उतर जाता है।
सम्मान प्रदायक :
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e=शुद्ध जल (गंगा का, अन्य तीर्थों का जल या कुएं का) में गुंजा की जड़ को चंदन की भांति घिसें। अच्छा यही है कि किसी ब्राह्मण या कुंवारी कन्या के हाथों से घिसवा लें। यह लेप माथे पर चंदन की तरह लगायें। ऐसा व्यक्ति सभा-समारोह आदि जहां भी जायेगा, उसे वहां विशिष्ट सम्मान प्राप्त होगा। पुत्रदाता : पुत्र की चाह वाली स्वस्थ स्त्री, शुभ नक्षत्र में गुंजा की जड़ को ताबीज में भरकर कमर में धारण करें। ऐसा करने से स्त्री पुत्र लाभ प्राप्त करती है। शत्रु में भय उत्पन्न : गुंजा-मूल (जड़) को किसी स्त्री के मासिक स्राव में घिस कर आंखों में सुरमे की भांति लगाने से शत्रु उसकी आंखों को देखते ही भाग खड़े होते हैं।
अलौकिक तामसिक शक्तियों के दर्शन :
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f=भूत-प्रेतादि शक्तियों के दर्शन करने के लिए मजबूत हृदय वाले व्यक्ति, गुंजा मूल को रवि-पुष्य योग में या मंगलवार के दिन- शुद्ध शहद में घिस कर आंखों में अंजन (सुरमा/काजल) की भांति लगायें तो भूत, चुडैल, प्रेतादि के दर्शन होते हैं। ज्ञान-
बुद्धि वर्धक :
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g=कुछ प्रयोग ---
गुंजा-मूल को बकरी के दूध में घिसकर हथेलियों पर लेप करे, रगड़े कुछ दिन तक यह प्रयोग करते रहने से व्यक्ति की बुद्धि, स्मरण-शक्ति तीव्र होती है, चिंतन, धारणा आदि शक्तियों में प्रखरता व तीव्रता आती है। गुप्त धन दर्शन : अंकोल या अंकोहर के बीजों के तेल में गुंजा-मूल को घिस कर आंखों पर अंजन की तरह लगायें। यह प्रयोग रवि-पुष्य योग में, रवि या मंगलवार को ही करें। इसको आंजने से पृथ्वी में गड़ा खजाना तथा आस पास रखा धन दिखाई देता है।
शत्रु दमन प्रयोग : काले तिल के तेल में गुंजामूल को घिस कर, उस लेप को सारे शरीर में मल लें। ऐसा व्यक्ति शत्रुओं को बहुत भयानक तथा सबल दिखाई देगा। फलस्वरूप शत्रुदल चुपचाप भाग जायेगा। कुष्ठ निवारण प्रयोग : गुंजा मूल को अलसी के तेल में घिसकर लगाने से कुष्ठ (कोढ़) के घाव ठीक हो जाते हैं।
अंधापन समाप्त : गुंजा-मूल को गंगाजल में घिसकर आंखों मे लगाने से आंसू बहुत आते हैं। देशी घी (गाय का) में घिस कर लगाते रहने से इन दोनों प्रयोगों से अंधत्व दूर हो जाता है।
१. आप जिस व्यक्ति का वशीकरण करना चाहते हों उसका चिंतन करते हुए मिटटी का दीपक लेकर अभिमंत्रित गुंजा के ५ दाने लेकर शहद में डुबोकर रख दें. इस प्रयोग से शत्रु भी वशीभूत हो जाते हैं. यह प्रयोग ग्रहण काल, होली, दीवाली, पूर्णिमा, अमावस्या की रात में यह प्रयोग में करने से बहुत फलदायक होता है.
२. गुंजा के दानों को अभिमंत्रित करके जिस व्यक्ति के पहने हुए कपड़े या रुमाल में बांधकर रख दिया जायेगा वह वशीभूत हो जायेगा. जब तक कपड़ा खोलकर गुंजा के दाने नहीं निकले जायेंगे वह व्यक्ति वशीकरण के प्रभाव में रहेगा.
३. जिस व्यक्ति को नजर बहुत लगती हो उसको गुंजा का ब्रासलेट कलाई पर बांधना चाहिए. किसी सभा में या भीड़ भाद वाली जगह पर जाते समय गुंजा का ब्रासलेट पहनने से दूसरे लोग प्रभावित होते हैं.
४. गुंजा की माला गले में धारण करने से सर्वजन वशीकरण का प्रभाव होता है.
काली गुंजा की विशेषता है कि जिस व्यक्ति के पास होती है, उस पर मुसीबत पड़ने पर इसका रंग स्वतः ही बदलने लगता है ।
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h=रक्त गुंजा
रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र हो,शुक्र तथा मंगल गोचर में अनुकूल हों अथवा कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हस्त नक्षत्र हो, कृष्ण चतुर्दशी को स्वाति नक्षत्र हो या पूर्णिमा को शतभिषा नक्षत्र हो, तो आधी रात को निमंत्रण पूर्वक रक्त गुंजा की जड़ उखाड़ कर ले आएं। घर में लाकर उसकी मिट्टी हटा कर साफ कर दें फिर दूध से स्नान करवा कर धूप-दीप से पूजा करें। इस जड़ के घर में रहने से सर्प भय नहीं रहता…
गुंजा एक प्रकार का लाल रंग का बीज है जो देखने में बहुत सुंदर लगता है। इसके ऊपरी हिस्से पर छोटा सा काला बिंदु होता है। इसकी बेल जंगलों में वृक्षों पर लिपटी पाई जाती है। इसे रत्ती भी कहते हैं और किसी जमाने में इससे सोने की तौल की जाती थी। गुंजा का एक और प्रचलित नाम घुंघची है। यह दो प्रकार की होती है रक्तगुंजा और श्वेत गुंजा। इसके तांत्रिक प्रयोग निम्न हैं-
1-बकरी के दूध में गुंजा मूल को घिस कर हथेलियों पर रगड़ने से बुद्धि का विकास होता है। मेधा,चिंतन, धारणा, विवेक तथा स्मृति की प्रखरता के लिए यह प्रयोग उत्तम होता है।
2-रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र हो,शुक्र तथा मंगल गोचर में अनुकूल हों अथवा कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हस्त नक्षत्र हो , कृष्ण चतुर्दशी को स्वाति नक्षत्र हो या पूर्णिमा को शतभिषा नक्षत्र हो, तो आधी रात को निमंत्रण पूर्वक रक्त गुंजा की जड़ उखाड़ कर ले आएं। घर में लाकर उसकी मिट्टी हटा कर साफ कर दें फिर दूध से स्नान करवा कर धूप-दीप से पूजा करें। इस जड़ के घर में रहने से सर्प भय नहीं रहता।
3- इसकी जड़ को घिस कर माथे पर तिलक की तरह लगाने से मनुष्य में सम्मोहक शक्ति आ जाती है और हर व्यक्ति उसकी बात मानने को तैयार हो जाता है।
4-कहते हैं कि गुंजा की जड़ को बेल पत्र के साथ घिस कर काजल की तरह लगाने से पिछले जीवन की घटनाएं याद आ जाती हैं।
इसकी जड़ को गाय के दूध में पीस कर शरीर पर लेपन करने से कोई भी तांत्रिक साधना सफल होती है यहां तक कि कभी-कभी अशरीरी आत्माएं भी वश में हो जाती हैं जो हमेशा साधक की सहायता करती हैं और उसे छोड़ कर कहीं नहीं जातीं।
श्वेत गुंजा के तांत्रिक प्रयोग
जिस दिन कृष्ण पक्ष की अष्टमी या चतुर्दशी हो उस दिन निम्न मंत्र पढ़ते हुए जंगल से श्वेत गुंजा की फली और वहीं से मिट्टी खोद कर लावे और अपने बगीचे में बो दे ।
मंत्र-ऊँ श्वेतवर्णे सितपर्वतवसिनि अप्रतिहते मम कार्य कुरु ठःठःस्वाहा।
फली लाने और उसे बोते समय यही मंत्र पढें़। फिर प्रति दिन सायंकाल उसमें पानी डालते रहें और इस मंत्र का जप करते रहें।
ऊँ सितवर्णे श्वेतपर्वतवासिनि सर्व कार्याणि कुरु कुरु अप्रतिहते नमो नमः।
गुंजा के बीजों को किसी वृक्ष के समीप बोना चाहिए तकि वह लता उसका सहारा लेकर चढ़ सके। जब लता बड़ी हो जाए तो उसी वृक्ष के नीचे बैठ कर अंगन्यास करें और उसकी पंचोपचार पूजा कर निम्न मंत्र की 21 माला जाप करें।
ऊँ श्वेत वर्णे पद्म मुखे सर्व ज्ञानमये सर्व शक्तिमिति सितपर्वतवासिनि भगवति हृं मम कार्य कुरु कुरु ठःठःनमः स्वाहा।
किसी भी कामना की पूर्ति के लिए संकल्प ले कर मंत्र जप करने पर कामना पूर्ण होती है।
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i=वे विशेष उपाय हैं जिन्हें आप केवल दीवाली के दिन ही कर सकते हैं और पूरे वर्ष उनका असर बना रहता है। ये बहुत ही सस्ते और आसान हैं और असरदार इतने मानो चमत्कारी हों।
बुरी बलाओं से बचने के लिए
लगभग 100 ग्राम रत्ती या गुंजा या घुंघुची के दाने लें जो लाल रंग के हों। इन दानों को तांबे की कटोरी में रखें। फिर शनि के मंत्र की 11 मालाएं जपें। जप का समय है 23.29 से 1.51 तक। रात का जप ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है। यह जप पूर्ण समर्पण के साथ हो। यह आप के पास एक ऐसी औषधि तैयार हो गई जो आपको इन बातों में मदद करेगी-
ल्ल गुप्त शत्रु की चालों को समाप्त कर देगी।
ल्ल बच्चों को नजर दोष होने पर इसे काले कपड़े में बांधकर उनके गले में पहनाएं।
ल्ल यदि घर में गरीबी अचानक आई हो या संतान गर्भ में ही प्राण त्याग देती हो, तो इसके कुछ दाने अपने घर के कोनों में बिखरा दें।
ल्ल यदि आपने कोई नया घर लिया है जहां आपका मन उखड़ने लगा है या आपका मन अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान से उखड़ रहा है, तो वहां इन दानों को पूजा स्थान में रखें।
अच्छी पढ़ाई व नौकरी में सफलता
दीवाली के दिन शाम 6.14 बजे से लेकर रात 8 बजे के बीच दूब घास, गुंजा तथा शमी अथवा पीपल की छोटी सी लकड़ी लेकर एक तांबे के बर्तन में रखें, फिर गणेश जी की पूजा करें। इसे सदैव पूजा में ही रहने दें। जो लोग पढ़ाई या नौकरी में बहुत संघर्ष कर रहे हैं उन्हें सफलता मिलेगी। इसे अपने बैग या पढ़ने की मेज या कार्य करने वाली मेज पर भी रख सकते हैं।
घबराहट व सिरदर्द की समस्या है तो
इस यंत्र को सादे कागज पर हल्दी का रंग बनाकर लिखें। लिखते समय 'ॐ' का जाप करते रहें। ऐसे कई सारे यंत्र बनाकर रख लें।
जब भी सिरदर्द, घबराहट या तनाव हो, तो इसे सिर पर बांधकर सो जाएं।
संपत्ति प्राप्ति के लिए
अनंतमूल की जड़ लें। उसे 'ॐ अं अंगारकाये नम:' की 11 मालाओं से सिद्ध करें। फिर उसे गले में पहनें। संपत्ति की समस्याएं समाप्त होंगी।
दुर्घटनाओं से बचने के लिए
अनंतमूल की जड़ तथा साबूत सुपारी लें। उसे महामृत्युंजय मंत्र की 11 मालाओं से सिद्ध करें। फिर उसे गले मे पहनें। यदि मारकेश भी लगा हो तो भी अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है, इसे घर में कोई भी व्यक्ति परेशानी या मारकेश के संकट के समय पहन सकता है। इसे उस व्यक्ति को भी जरूर पहनना चाहिए जिसके चोटें बहुत लगती हों।
धन प्राप्ति के लिए
ल्ल काली व सफेद गुंजा के दाने पूजा में रखकर कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें । इसे तीन बार लगातार करना होता है, इन दानों को हमेशा संभाल कर रखें।
ल्ल काली व सफेद गुंजा के दाने पूजा में रखकर 11 मालाएं ' ऊं श्रीं नम:' की जपें।
ल्ल एक और मंत्र देखें
ॐ श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीं क्लीं ॐ वित्तेश्वराय नम:।
शिवजी के सम्मुख बैठकर इस मंत्र का जप सवा लाख बार करें और इस मंत्र को रात 11.39 से 12.30 के बीच में प्रारम्भ करके सवा लाख जाप पूरे होने तक करें, जिसमें कई दिन लगेंगे, पर गरीबी मिटाने में इस मंत्र का जवाब नहीं।
ल्ल बेलपत्र या अशोक या आक या बरगद के 11 पत्तों पर सिंदूर और हल्दी मिलाकर उस पर 'पं दं लं' लिखकर बहते जल में प्रवाहित करें। इसे शाम 6.56 से लेकर 8.13 बजे के बीच करें। ल्ल
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j=गुंजा 'रत्ती' सात सौ रुपए किलो, ढूंढ़ रहे व्यापारी
जिले में अपने आप उगने वाली उपेक्षित सबसे महंगा बीज
विश्वबंधु शर्मा/ सजन बंजारा-जशपुर/कोतबा (निप्र)। जिले में गुंजा जिसे रत्ती भी कहा जाता है, सबसे दुर्लभ वनस्पतियों के नाम के साथ ही सबसे महंगे बीज के रूप में सामने आया है। इस बीज को लेकर पहली बार चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इस बीज को व्यापारी सात सौ रुपए किलो तक खरीदने को तैयार हैं और व्यापारी इस बीज को एडवांस में पैसे देकर भी खरीद रहे हैं।
गुंजा जिसे जिले में गूंज के नाम से लोग जानते हैं। नगरीय क्षेत्र के अधिकांश लोग गुंजा के बारे में जानकारी नहीं रखते, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में गुंजा ग्रामीणों के आय का महत्वपूर्ण हिस्सा बनते जा रहा है। जिले में गुंजा की बिक्री ऊंची कीमतों पर खरीदी जा रही है। गुंजा को मुख्य रूप से तीन प्रजातियों के लिए जाना जाता है, जिसका रंग सफेद, लाल-काला और भूरा रंग से है। सबसे ऊंची कीमत सफेद गुंजा की है, जिसके संकलनकर्ताओं को सात सौ रुपए किलो मिल रहे हैं। गुंजा की तीन प्रजातियां जिले में उपलब्ध हैं, जिसकी अलग-अलग कीमत है। सबसे अधिक कीमत सफेद गुंजा के बीज की है, जिसकी कीमत सात सौ रुपए है। प्रतिस्पर्धा में इसकी कीमत अधिक भी होती है। लाल रंग के गुंज की कीमत 70 रुपए किलो है। तीसरी प्रजाति कुछ काली और भूरे रंग लिए होती है उसकी कीमत तीन सौ रुपए किलो है। स्थानीय व्यापारी विजय ने बताया कि वे 10 साल से खरीदी कर बाहर के व्यापारियों को गुंजा बेच रहे हैं, लेकिन उन्हें नहीं मालूम कि इसका उपयोग क्या है। उन्होंने बताया कि एक बात विचारणीय है कि इसके संकलन और बिक्री करने वाले परंपरागत रूप से ही लगे हैं।
दिसंबर माह में सबसे अधिक व्यवसाय
नवंबर और दिसंबर माह में बीज निकलते हैं और यही समय होता है, जब संकलनकर्ता इस बीज से आय अर्जित करते हैं। बड़े व्यापारियों को जब बीज के कीमत की जानकारी मिल रही है तो कई व्यापारी इस व्यवसाय में खुद को जोड़ने में लगे हैं और स्थिति यह है कि कोतबा, फरसाबहार ब्लाक, पत्थलगांव ब्लाक में व्यापारी ग्रामीणों को एडवांस के रूप में भी पैसे दे रहे हैं, जिससे संग्रहण उनकों मिले। पंड्रीपानी क्षेत्र की स्थिति यह है कि कई किसान अब इसके बीज को लगाने भी लगे हैं। किसान अपने खेतों व आसपास की झाड़ियों के नीचे इसके बीज को लगा रहे हैं। सवाल यह है कि इस बीज का व्यवसाय गुपचुप तरीके से ही क्यों हो रहा है। इस बात को लेकर कई सवाल भी सामने आते हैं, लेकिन कुछ जानकारों का कहना है कि दवाओं के रूप में ही इसका उपयोग होता है, जिसके कारण यह कीमती है। अधिकांश व्यापारियों को इस बात की जानकारी भी नहीं है कि यह कहां जाता है और एक के बाद एक व्यापारियों को यह बीज बेचे जा रहे हैं।
क्या है गुंजा
गुंजा को जिले के पत्थलगांव, फरसाबहार विकासखंड सहित अन्य क्षेत्र में गूंज के नाम से जाना जाता है। मुख्य रूप से इसके क्षेत्रीय व्यापारियों के साथ पत्थलगांव, धरमजयगढ़ व रायगड़ जिले में अधिक व्यापारी हैं। लता जाति की यह वनस्पति है, जिसमें फलियां होती हैं और पकने के बाद फलियां स्वयं फट जाती हैं, जिससे गुंजा का बीज निकलता है और यह बीज काफी कीमती हो रहा है, जिसका कारण इसकी दुर्लभता है। अंग्रेजी नाम कोरल बीड है। हिंदी में इसे गुंजा, चौटली, घुंघची, रत्ती आदि नामों से जाना जाता है। इसके संस्कृत नाम भी कई हैं, जिससे इसकी पौराणिकता भी स्पष्ट होती है। कुछ राज्यों में राज्य की भाषाओं में अलग-अलग नामों से भी यह प्रचलित है। वहीं फारसी में गुंजा को चश्मेखरूस और अरबी में हबसुफेद कहा जाता है। जिले में यह सड़कों के किनारे, निर्गुंडी के पौधों सहित अन्य पौधों और झाड़ियों में लताओं में स्वयं बढ़ता है।
औषधि निर्माण में होता है उपयोग
वनस्पतियों एंव आयर्ुेवेद के जानकार भूपेंद्र थवाईत ने बताया कि आयुर्वेद में गुंजा का विशेष महत्व है और पेट से संबंधित रोगों के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। यह क्षेत्र में अत्यंत दुर्लभ वनस्पतियों में है और विशेष क्षेत्र में होने के कारण ही इसकी ऊंची कीमत है। उन्होंने बताया कि इसके जड़ और पत्तों का भी विशेष महत्व होता है और पत्ते और जड़ भी ऊंचे दामों मे बिकते हैं। पत्थलगांव के व्यापारी मो. हनीफ मेमन ने बताया कि छग में इसके उपयोग संबंधी जानकारी नहीं के बराबर है, लेकिन इसकी दिल्ली व महानगरों में अधिक मांग होती है। सबसे अधिक उपयोग गुंजा का हाजमे की दवा बनाने में किया जाता है और आयुर्वेद की दवा बनाने वाली कंपनियां इसे ऊंची कीमतों में खरीदते हैं।
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k=गुंजा का प्रयोग अनेक तांत्रिक कार्यों में होता है. यह एक लता का बीज होता है. जो लाल रंग का होता है. सफ़ेद और काले रंग की गुंजा भी मिल सकती है. काली गुंजा बहुत दुर्लभ होती है और वशीकरण के कार्यों में रामबाण की तरह काम करती है. गुंजा के बीजों के अलावा उसकी जड़ को बहुत उपयोगी मन गया है. गुंजा की महिमा कुछ इस प्रकार है
-१. आप जिस व्यक्ति का वशीकरण करना चाहते हों उसका चिंतन करते हुए मिटटी का दीपक लेकर अभिमंत्रित गुंजा के ५ दाने लेकर शहद में डुबोकर रख दें. इस प्रयोग से शत्रुभी वशीभूत हो जाते हैं. यह प्रयोग ग्रहण काल, होली, दीवाली, पूर्णिमा, अमावस्या की रात में यह प्रयोग में करने से बहुत फलदायक होता है.
२. गुंजा के दानों को अभिमंत्रित करके जिस व्यक्ति के पहने हुए कपड़े या रुमाल में बांधकर रख दिया जायेगा वह वशीभूत हो जायेगा. जब तक कपड़ा खोलकर गुंजा के दाने नहीं निकले जायेंगे वह व्यक्ति वशीकरण के प्रभाव में रहेगा.
३. जिस व्यक्ति को नजर बहुत लगती हो उसको गुंजा का ब्रासलेट कलाई पर बांधना चाहिए. किसी सभा में या भीड़ भाद वाली जगह पर जाते समय गुंजा का ब्रासलेट पहनने से दूसरे लोग प्रभावित होते हैं.
४. गुंजा की माला गले में धारण करने से सर्वजन वशीकरण का प्रभाव होता है.
काली गुंजा की विशेषता है कि जिस व्यक्ति के पास होती है, उस पर मुसीबत पड़ने पर इसका रंग स्वतः ही बदलने लगता है ।
रक्तगुंजा: गुंजा का बीज होता है, जो लाल रंग का होता है। इस पर काले रंग का छोटा सा बिंदू बना होता है। लक्ष्मी की प्राप्ति व उसे चिरकाल तक स्थिर रखने हेतु गुंजा का प्रयोग किया जाता है। तंत्रशास्त्र में इसका कई रूपों में प्रयोग होता है।
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l=गुंजा की लता पर लगी फली में बीज
गुंजा या रत्ती (Coral Bead) लता जाति की एक वनस्पति है। शिम्बी के पक जाने पर लता शुष्क हो जाती है। गुंजा के फूल सेम की तरह होते हैं। शिम्बी का आकार बहुत छोटा होता है, परन्तु प्रत्येक में 4-5 गुंजा बीज निकलते हैं अर्थात सफेद में सफेद तथा रक्त में लाल बीज निकलते हैं। अशुद्ध फल का सेवन करने से विसूचिका की भांति ही उल्टी और दस्त हो जाते हैं। इसकी जड़े भ्रमवश मुलहठी के स्थान में भी प्रयुक्त होती है।
गुंजा गुंजा दो प्रकार की होती है।विभिन्न भाषाओं में नामअंग्रेजी Coral Bead हिन्दी गुंजा, चौंटली, घुंघुची, रत्ती संस्कृत सफेद केउच्चटा, कृष्णला, रक्तकाकचिंची बंगाली श्वेत कुच, लाल कुच मराठी गुंजा गुजराती धोलीचणोरी, राती, चणोरी तेलगू गुलुविदे फारसी चश्मेखरुस अरबी हबसुफेद
हानिकारक प्रभाव
पाश्चात्य मतानुसार गुंजा के फलों के सेवन से कोई हानि नहीं होती है। परन्तु क्षत पर लगाने से विधिवत कार्य करती है। सुश्रुत के मत से इसकी मूल गणना है।
गुंजा को आंख में डालने से आंखों में जलन और पलकों में सूजन हो जाती है।
गुण
दोनों गुंजा, वीर्यवर्द्धक (धातु को बढ़ाने वाला), बलवर्द्धक (ताकत बढ़ाने वाला), ज्वर, वात, पित्त, मुख शोष, श्वास, तृषा, आंखों के रोग, खुजली, पेट के कीड़े, कुष्ट (कोढ़) रोग को नष्ट करने वाली तथा बालों के लिए लाभकारी होती है। ये अन्यंत मधूर, पुष्टिकारक, भारी, कड़वी, वातनाशक बलदायक तथा रुधिर विकारनाशक होता है। इसके बीज वातनाशक और अति बाजीकरण होते हैं। गुन्जा से वासिकर्न भि कर सक्ते ही ग्न्जा
अंग्रेजी Coral Bead हिन्दी गुंजा, चौंटली, घुंघुची, रत्ती संस्कृत सफेद केउच्चटा, कृष्णला, रक्तकाकचिंची बंगाली श्वेत कुच, लाल कुच मराठी गुंजा गुजराती धोलीचणोरी, राती, चणोरी तेलगू गुलुविदे फारसी चश्मेखरुस अरबी हबसुफेद
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m=चमत्कारी तंत्र वनस्पति गुंजा
चमत्कारी है गुंजा
तांत्रिक जड़ीबूटियां भाग -9
गुंजा एक फली का बीज है। इसको धुंघची, रत्ती आदि नामों से जाना जाता है। इसकी बेल काफी कुछ मटर की तरह ही लगती है किन्तु अपेक्षाकृत मजबूत काष्ठीय तने वाली। इसे अब भी कहीं कहीं आप सुनारों की दुकानों पर देख सकते हैं। कुछ वर्ष पहले तक सुनार इसे सोना तोलने के काम में लेते थे क्योंकि इनके प्रत्येक दाने का वजन लगभग बराबर होता है करीब 120 मिलीग्राम। ये हमारे जीवन में कितनी बसी है इसका अंदाज़ा मुहावरों और लोकोक्तियों में इसके प्रयोग से लग जाता है।
यह तंत्र शास्त्र में जितनी मशहूर है उतनी ही आयुर्वेद में भी। आयुर्वेद में श्वेत गूंजा का ही अधिक प्रयोग होता है औषध रूप में साथ ही इसके मूल का भी जो मुलैठी के समान ही स्वाद और गुण वाली होती है। इसीकारण कई लोग मुलैठी के साथ इसके मूल की भी मिलावट कर देते हैं।
वहीं रक्त गूंजा बेहद विषैली होती है और उसे खाने से उलटी दस्त पेट में मरोड़ और मृत्यु तक सम्भव है। आदिवासी क्षेत्रों में पशु पक्षी मारने और जंगम विष निर्माण में अब भी इसका प्रयोग होता है।
गुंजा की तीन प्रजातियां मिलती हैं:-
1• रक्त गुंजा: लाल काले रंग की ये प्रजाति भी तीन तरह की मिलती है जिसमे लाल और काले रंगों का अनुपात 10%, 25% और 50% तक भी मिलता है।
ये मुख्यतः तंत्र में ही प्रयोग होती है।
श्वेत गुंजा • श्वेत गुंजा में भी एक सिरे पर कुछ कालिमा रहती है। यह आयुर्वेद और तंत्र दोनों में ही सामान रूप से प्रयुक्त होती है। ये लाल की अपेक्षा दुर्लभ होती है।
काली गुंजा: काली गुंजा दुर्लभ होती है, आयुर्वेद में भी इसके प्रयोग लगभग नहीं हैं हाँ किन्तु तंत्र प्रयोगों में ये बेहद महत्वपूर्ण है।
इन तीन के अलावा एक अन्य प्रकार की गुंजा पायी जाती है पीली गुंजा ये दुर्लभतम है क्योंकि ये कोई विशिष्ट प्रजाति नहीं है किन्तु लाल और सफ़ेद प्रजातियों में कुछ आनुवंशिक विकृति होने पर उनके बीज पीले हो जाते हैं। इस कारण पीली गूंजा कभी पूर्ण पीली तो कभी कभी लालिमा या कालिमा मिश्रित पीली भी मिलती है।
इस चमत्कारी वनस्पति गुंजा के कुछ प्रयोग:-
1• सम्मान प्रदायक :
शुद्ध जल (गंगा का, अन्य तीर्थों का जल या कुएं का) में गुंजा की जड़ को चंदन की भांति घिसें। अच्छा यही है कि किसी ब्राह्मण या कुंवारी कन्या के हाथों से घिसवा लें। यह लेप माथे पर चंदन की तरह लगायें। ऐसा व्यक्ति सभा-समारोह आदि जहां भी जायेगा, उसे वहां विशिष्ट सम्मान प्राप्त होगा।
2• कारोबार में बरकत
किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार के दिन 1 तांबे का सिक्का, 6 लाल गुंजा लाल कपड़े में बांधकर प्रात: 11 बजे से लेकर 1 बजे के बीच में किसी सुनसान जगह में अपने ऊपर से 11 बार उसार कर 11 इंच गहरा गङ्ढा खोदकर उसमें दबा दें। ऐसा 11 बुधवार करें। दबाने वाली जगह हमेशा नई होनी चाहिए। इस प्रयोग से कारोबार में बरकत होगी, घर में धन रूकेगा।
3"• ज्ञान-बुद्धि वर्धक :
(क) गुंजा-मूल को बकरी के दूध में घिसकर हथेलियों पर लेप करे, रगड़े कुछ दिन तक यह प्रयोग करते रहने से व्यक्ति की बुद्धि, स्मरण-शक्ति तीव्र होती है, चिंतन, धारणा आदि शक्तियों में प्रखरता व तीव्रता आती है।
(ख) यदि सफेद गुंजा के 11 या 21 दाने अभिमंत्रित करके विद्यार्थियों के कक्ष में उत्तर पूर्व में रख दिया जाये तो एकाग्रता एवं स्मरण शक्ति में लाभ होता है।
4• वर-वधू के लिए :
विवाह के समय लाल गुंजा वर के कंगन में पिरोकर पहनायी जाती है। यह तंत्र का एक प्रयोग है, जो वर की सुरक्षा, समृद्धि, नजर-दोष निवारण एवं सुखद दांपत्य जीवन के लिए है। गुंजा की माला आभूषण के रूप में पहनी जाती है।
5• पुत्रदाता :
शुभ मुहुर्त में श्वेत गुंजा की जड़ लाकर दूध से धोकर, सफेद चन्दन पुष्प से पूजा करके सफेद धागे में पिरोकर। “ऐं क्षं यं दं” मंत्र के ग्यारह हजार जाप करके स्त्री या पुरूष धारण करे तो संतान सुख की प्राप्ती होती है।
6• वशीकरण -
(क) आप जिस व्यक्ति का वशीकरण करना चाहते हों उसका चिंतन करते हुए मिटटी का दीपक लेकर अभिमंत्रित गुंजा के ५ दाने लेकर शहद में डुबोकर रख दें. इस प्रयोग से शत्रु भी वशीभूत हो जाते हैं. यह प्रयोग ग्रहण काल, होली, दीवाली, पूर्णिमा, अमावस्या की रात में यह प्रयोग में करने से बहुत फलदायक होता है.
(ख) गुंजा के दानों को अभिमंत्रित करके जिस व्यक्ति के पहने हुए कपड़े या रुमाल में बांधकर रख दिया जायेगा वह वशीभूत हो जायेगा. जब तक कपड़ा खोलकर गुंजा के दाने नहीं निकले जायेंगे वह व्यक्ति वशीकरण के प्रभाव में रहेगा.
( गुंजा की माला गले में धारण करने से सर्वजन वशीकरण का प्रभाव होता है.
7• विद्वेषण में प्रयोग :
किसी दुष्ट, पर-पीड़क, गुण्डे तथा किसी का घर तोड़ने वाले के घर में लाल गुंजा - रवि या मंगलवार के दिन इस कामना के साथ फेंक दिये जाये - 'हे गुंजा ! आप मेरे कार्य की सिद्धि के लिए इस घर-परिवार में कलह (विद्वेषण) उत्पन्न कर दो' तो आप देखेंगे कि ऐसा ही होने लगता है।
8• विष-निवारण :
गुंजा की जड़ धो-सुखाकर रख ली जाये। यदि कोई व्यक्ति विष-प्रभाव से अचेत हो रहा हो तो उसे पानी में जड़ को घिसकर पिलायें।
इसको पानी में घिस कर पिलाने से हर प्रकार का विष उतर जाता है।
9• दिव्य दृष्टि :-
(क) अलौकिक तामसिक शक्तियों के दर्शन :
भूत-प्रेतादि शक्तियों के दर्शन करने के लिए मजबूत हृदय वाले व्यक्ति, गुंजा मूल को रवि-पुष्य योग में या मंगलवार के दिन- शुद्ध शहद में घिस कर आंखों में अंजन (सुरमा/काजल) की भांति लगायें तो भूत, चुडैल, प्रेतादि के दर्शन होते हैं।
(ख) गुप्त धन दर्शन :
अंकोल या अंकोहर के बीजों के तेल में गुंजा-मूल को घिस कर आंखों पर अंजन की तरह लगायें। यह प्रयोग रवि-पुष्य योग में, रवि या मंगलवार को ही करें। इसको आंजने से पृथ्वी में गड़ा खजाना तथा आस पास रखा धन दिखाई देता है।
10• शत्रु में भय उत्पन्न :
गुंजा-मूल (जड़) को किसी स्त्री के मासिक स्राव में घिस कर आंखों में सुरमे की भांति लगाने से शत्रु उसकी आंखों को देखते ही भाग खड़े होते हैं।
11• शत्रु दमन प्रयोग :
यदि लड़ाई झगड़े की नौबत हो तो काले तिल के तेल में गुंजामूल को घिस कर, उस लेप को सारे शरीर में मल लें। ऐसा व्यक्ति शत्रुओं को बहुत भयानक तथा सबल दिखाई देगा। फलस्वरूप शत्रुदल चुपचाप भाग जायेगा।
12• रोग - बाधा
(क) कुष्ठ निवारण प्रयोग :
गुंजा मूल को अलसी के तेल में घिसकर लगाने से कुष्ठ (कोढ़) के घाव ठीक हो जाते हैं।
(ख)अंधापन समाप्त :
गुंजा-मूल को गंगाजल में घिसकर आंखों मे लगाने से आंसू बहुत आते हैं।नेत्रों की सफाई होती है आँखों का जाल कटता है।
देशी घी (गाय का) में घिस कर लगाते रहने से इन दोनों प्रयोगों से अंधत्व दूर हो जाता है।
(ग) वाजीकरण:
श्वेत गुंजा की जड को गाय के शुद्ध घृत में पीसकर लेप तैयार करें। यह लेप शिश्न पर मलने से कामशक्ति की वृद्धि के साथ स्तंभन शक्ति में भी वृद्धि होती है।
13: नौकरी में बाधा
राहु के प्रभाव के कारण व्यवसाय या नौकरी में बाधा आ रही हो तो लाल गुंजा व सौंफ को लाल वस्त्र में बांधकर अपने कमरे में रखें।
**दुर्लभ काली गुंजा के कुछ प्रयोग:
1• काली गुंजा की विशेषता है कि जिस व्यक्ति के पास होती है, उस पर मुसीबत पड़ने पर इसका रंग स्वतः ही बदलने लगता है ।
2• दिवाली के दिन अपने गल्ले के नीचे काली गुंजा जंगली बेल के दाने डालने से व्यवसाय में हो रही हानि रूक जाती है।
3• दिवाली की रात घर के मुख्य दरवाज़े पर सरसों के तेल का दीपक जला कर उसमें काली गुंजा के 2-4 दाने डाल दें। ऐसा करने पर घर सुरक्षित और समृद्ध रहता है।
4• होलिका दहन से पूर्व पांच काली गुंजा लेकर होली की पांच परिक्रमा लगाकर अंत में होलिका की ओर पीठ करके पाँचों गुन्जाओं को सिर के ऊपर से पांच बार उतारकर सिर के ऊपर से होली में फेंक दें।
5• घर से अलक्ष्मी दूर करने का लघु प्रयोग-
ध्यानमंत्र :
ॐ तप्त-स्वर्णनिभांशशांक-मुकुटा रत्नप्रभा-भासुरीं ।
नानावस्त्र-विभूषितां त्रिनयनां गौरी-रमाभ्यं युताम् ।
दर्वी-हाटक-भाजनं च दधतीं रम्योच्चपीनस्तनीम् ।
नित्यं तां शिवमाकलय्य मुदितां ध्याये अन्नपूर्णश्वरीम् ॥
मन्त्र :
ॐ ह्रीम् श्रीम् क्लीं नमो भगवति माहेश्वरि मामाभिमतमन्नं देहि-देहि अन्नपूर्णों स्वाहा ।
विधि :
जब रविवार या गुरुवार को पुष्प नक्षत्र हो या नवरात्र में अष्टमी के दिन या दीपावली की रात्रि या अन्य किसी शुभ दिन से इस मंत्र की एक माला रुद्राक्ष माला से नित्य जाप करें । जाप से पूर्व भगवान श्रीगणेश जी का ध्यान करें तथा भगवान शिव का ध्यान कर नीचे दिये ध्यान मंत्र से माता अन्नपूर्णा का ध्यान करें ।
इस मंत्र का जाप दुकान में गल्ले में सात काली गुंजा के दाने रखकर शुद्ध आसन, (कम्बल आसन, या साफ जाजीम आदि ) पर बैठकर किया जाए तो व्यापार में आश्चर्यजनक लाभ महसूस होने गेगा ।
6• कष्टों से छुटकारे हेतु
यदि संपूर्ण दवाओं एवं डाक्टर के इलाज के बावजूद भी यदि घुटनों और पैरों का दर्द दूर नहीं हो रहा हो तो रवि पुष्य नक्षत्र, शनिवार या शनि आमवस्या के दिन यह उपाय करें। प्रात:काल नित्यक्रम से निवृत हो स्नानोपरांत लोहे की कटोरी में श्रद्धानुसार सरसों का तेल भरें। 7 चुटकी काले तिल, 7 लोहे की कील और 7 लाल और 7 काली गुंजा उसमें डाल दें। तेल में अपना मुंह देखने के बाद अपने ऊपर से 7 बार उल्टा उसारकर पीपल के पेड़ के नीचे इस तेल का दीपक जला दें 21 परिक्रमा करें और वहीं बैठकर 108 बार
ऊँ शं विधिरुपाय नम:।।
इस मंत्र का जाप करें। ऐसा 11 शनिवार करें। कष्टों से छुटकारा मिलेगा।
पीली गुंजा:
1• पीले रंग की गुंजा के बीज ,हल्दी की गांठे, सात कौडियों की पूजा अर्चना करके श्री लक्ष्मीनारायण भगवान के मंत्रों से अभिमंत्रित करके पूजा स्थान में रखने से दाम्पत्य सुख एवं परिवार,मे एकता तथा आर्थिक व्यावसायिक सिद्धि मिलती है
2• इसकी माला या ब्रेसलेट धारण करने से व्यक्ति का चित्त शांत रहता है, तनाव से मुक्ति मिलती है।
3• पीत गुंजा की माला गुरु गृह को अनुकूल करती है।
4• अनिद्रा से पीड़ित लोगों को इसकी माला धारण करने से लाभ मिलता है।
5• बड़ी उम्र के जो लोग स्वप्न में डरते हैं या जिन्हें अक्सर ये लगता है की कोई उनका गला दबा रहा है उन्हें इसकी माला या ब्रेसलेट पहनना चाहिए।
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n=क्या आप जानते है बड़े काम की और चमत्कारी होती है गूंजा
गुंजा या रत्ती (Coral Bead) लता जाति की एक वनस्पति है। शिम्बी के पक जाने पर लता शुष्क हो जाती है। गुंजा के फूल सेम की तरह होते हैं। शिम्बी का आकार बहुत छोटा होता है, परन्तु प्रत्येक में 4-5 गुंजा बीज निकलते हैं अर्थात सफेद में सफेद तथा रक्त में लाल बीज निकलते हैं। अशुद्ध फल का सेवन करने से विसूचिका की भांति ही उल्टी और दस्त हो जाते हैं। इसकी जड़े भ्रमवश मुलहठी के स्थान में भी प्रयुक्त होती है
इसको चिरमिटी, धुंघची, रत्ती आदि नामों से जाना जाता है। इसे आप सुनारों की दुकानों पर देख सकते हैं। इसका वजन एक रत्ती होता है, जो सोना तोलने के काम आती है। यह तीन रंगों में मिलती है। सफेद गुंजा का प्रयोग तंत्र तथा उपचार में होता है, न मिलने पर लाल गुंजा भी प्रयोग में ली जा सकती है। परंतु काली गुंजा दुर्लभ होती है।
गुंजा का प्रयोग अनेक तांत्रिक कार्यों में होता है. यह एक लता का बीज होता है. जो लाल रंग का होता है. सफ़ेद और काले रंग की गुंजा भी मिल सकती है. काली गुंजा बहुत दुर्लभ होती है और वशीकरण के कार्यों में रामबाण की तरह काम करती है. गुंजा के बीजों के अलावा उसकी जड़ को बहुत उपयोगी मन गया है. गुंजा की महिमा कुछ इस प्रकार है -
वर-वधू के लिए : विवाह के समय लाल गुंजा वर के कंगन में पिरोकर पहनायी जाती है। यह तंत्र का एक प्रयोग है, जो वर की सुरक्षा, समृद्धि, नजर-दोष निवारण एवं सुखद दांपत्य जीवन के लिए है। गुंजा की माला आभूषण के रूप में पहनी जाती है। भगवान श्री कृष्ण भी गुंजामाला धारण करते थे। पुत्र की चाह वाली स्वस्थ स्त्री, शुभ नक्षत्र में गुंजा की जड़ को ताबीज में भरकर कमर में धारण करें। ऐसा करने से स्त्री पुत्र लाभ करती है।
विद्वेषण में प्रयोग :
किसी दुष्ट, पर-पीड़क, गुण्डे तथा किसी का घर तोड़ने वाले के घर में लाल गुंजा - रवि या मंगलवार के दिन इस कामना के साथ फेंक दिये जाये - 'हे गुंजा ! आप मेरे कार्य की सिद्धि के लिए इस घर-परिवार में कलह (विद्वेषण) उत्पन्न कर दो' तो आप देखेंगे कि ऐसा ही होने लगता है। विष-निवारण : गुंजा की जड़ धो-सुखाकर रख ली जाये।
यदि कोई व्यक्ति विष-प्रभाव से अचेत हो रहा हो तो उसे पानी में जड़ को घिसकर पिलायें। इसको पानी में घिस कर पिलाने से हर प्रकार का विष उतर जाता है।
सम्मान प्रदायक :
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